योगेश्वर श्रीकृष्ण का जीवन आज के सन्दर्भ में... Lord Krishna in Present, Hindi Article, Way of Karma, Dharma, Yogeshwar

यूं तो इतिहास में सैकड़ों, हज़ारों की संख्या में महापुरुषों का जीवन-चरित्र रहा है, जिन्होंने काल-विशेष में नागरिकों के जीवन-स्तर को सुधारने का यत्न किया है, किन्तु जिन महापुरुषों का जीवन युगातीत, कालातीत और समयातीत बना है, उसमें योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण का स्थान सर्वोपरि है. एक व्यक्ति, एक सामाजिक व्यक्ति के रास्ते बढ़ते हुए जिसने मानव-चरित्र की पराकाष्ठा को छुआ है वह श्रीकृष्ण ही तो हैं. श्रीकृष्ण की बाललीला, युवावस्था की लीला और योगेश्वर के रूप में उनके द्वारा कही गयी गीता (Lord Krishna in Present, Hindi Article, Way of Karma, Bhagwadgeeta) ने हर युग में मानव-जीवन को राह दिखाई है. हम सबने बचपन से सुना और पढ़ा है कि पृथ्वी पर जब जब अधर्म और पाप बढ़ता और मानवता खतरे में पड़ती है तो उसे बचाने और अधर्मियों का नाश करने के लिए कोई दिव्य शक्ति धरती पर अवतरित होती है, जिसे हम भगवान का अवतार कहते हैं. यह बेहद अजीब बिडम्बना है कि हम उस शक्ति की पूजा अर्चना तो करते हैं, किन्तु उसके द्वारा बताई गयी राह पर चलना भूल जाते हैं. बस पत्थर की मूरत बनाई, उसको अगरबत्ती, धूपबत्ती दिखलाई और हो गयी कर्त्तव्य की 'इतिश्री'! आज के सन्दर्भों की चर्चा हम आगे की पंक्तियों में करेंगे, तो पहले बात करते हैं भगवान श्रीकृष्ण और हिन्दू शास्त्रों के कुछ कथनों, विश्वासों के बारे में. हिन्दू शास्त्रों के अनुसार संसार के पालन की जिम्मेदारी भगवान विष्णु की है और वो हर युग में विभिन्न रूपों में अवतरित होते हैं. 

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भगवान विष्णु के पूर्णावतार को ही भगवान श्रीकृष्ण का रूप माना जाता है और इसलिए उनके चरित्र में हर वह बात समाहित दिखी है, जिसे कोई इंसान सोच सके अथवा जो परिस्थिति किसी इंसान के जीवन में आये! हमारे यहाँ ऐसी मान्यता भी है कि भगवान श्रीकृष्ण मानव जीवन के सभी चक्रों यानि जन्म, मृत्यु, शोक, खुशी आदि  से गुजरे हैं, इसीलिए उन्हें पूर्णावतार कहा जाता है. पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. इसीलिए आज भी सारे भक्तगण आज के दिन ब्रत रख कर भगवान का जन्मोत्सव (Lord Krishna in Present, Hindi Article, Way of Karma, Janmashtami) बड़े  ही धूमधाम से मनाते हैं. भगवान श्रीकृष्ण का जन्म तो देवकी और वासुदेव के यहां हुआ था लेकिन उनका पालन-पोषण माता यशोदा और नंदबाबा ने किया और अपने समस्त जीवन-काल में भगवान ने माता यशोदा का गुणगान किया है. इस से साफ सन्देश जाता है कि चाहे जन्म कोई भी दे लेकिन पालने वाले का स्थान हमेशा ऊँचा रहता है. कुछ-कुछ इसी से मिलता जुलता कांसेप्ट का हमारे यहाँ 'संयुक्त परिवारों' का चलन था, जहाँ बच्चों के लालन-पालन में दादा-दादियों या परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा भी सहयोग किया जाता था, जिससे बच्चों में संकुचन की बजाय 'व्यापकता' का भाव आता था. सहज ही कल्पना की जा सकती है कि आज कल परिवारों की टूटन से ही हमारे यहाँ बच्चों में कुंठा व्याप्त हो जा रही है. 


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यशोदा मैया के पालन के क्रम में ही जब हम आगे बढ़ते हैं तो श्रीकृष्ण के बचपन की तमाम लीलाओं जैसे माखन चुराना, गोपियों के साथ मेल जैसे तमाम घटनाक्रम हमें कोई न कोई सन्देश देते हैं. खासकर यह सब हमें समाज के विभिन्न रूपों का परिचय देते हैं कि सबके बीच में अपनी पवित्रता किस प्रकार बनाई रखी जा सकती है. आज बच्चे तो बच्चे, बड़े भी समाज को विकृत बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. इनसे बचने का उपाय मेल-मिलाप में ही तो है. ठीक इसी प्रकार भगवान कृष्ण के जीवन का एक- एक पल शिक्षाप्रद है. बाल-लीलाओं के पश्चात् उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत (Way of Karma, Dharma, Yogeshwar, Keshaw, Bhagwan, Shri Krishna Janmashtami, Mathura, Dwarka) होती है, जिसमें ग्वालों को संगठित करके वह पापी कंस के खिलाफ लड़ाई छेड़ते हैं तो उसके वध के पश्चात मथुरा और फिर द्वारा नगरी का निर्माण करते हैं. क्या आज के समय के राजनीतिज्ञ श्रीकृष्ण से अन्याय के खिलाफ लड़ने की सीख ले रहे हैं? जवाब आपको सहज ही मिल जायेगा... कि नहीं! आज जनता को संगठित नहीं, बल्कि उसको तोड़ो और राज करो की नीति सर्वाधिक प्रचलन में है. धर्म, जाति और विभिन्न समाजों को जितना आप तोड़ सकते हो, आपकी नेतागिरी उतनी ही चमकने लगेगी. क्या वाकई योगेश्वर श्रीकृष्ण के जीवन से हमें यही सीख मिली है? खैर, भगवान श्रीकृष्ण सिर्फ मथुरा और द्वारका तक ही नहीं रुके, बल्कि उसके बाद अपने जीवन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण अध्याय में उन्होंने प्रवेश किया, जिसे दुनिया महाभारत के नाम से जानती है. 

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तत्कालीन सबसे शक्तिशाली साम्राज्य हस्तिनापुर और दुसरे राजाओं के उत्पातों का जवाब श्रीकृष्ण ने जिस प्रकार कुशल राजनीति से दिया, वह भारत जैसे देश को चीन और पाकिस्तान जैसे दुराचारी देशों के खिलाफ निश्चित रूप से आजमाना चाहिए. पर हमारी ढुलमुल नीति से हम कभी सीमा पर अतिक्रमण का सामना करते हैं तो कई बार छद्म आतंकवाद का शिकार होने पर मजबूर होते हैं. अन्याय और अत्याचार के खिलाफ जिस साहस से भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को खड़ा किया और उनकी विजय-प्राप्ति (Way of Karma, Dharma, Yogeshwar, Keshaw, Bhagwan, Shri Krishna Janmashtami, Mahabharat Prasang) तक उनके साथ जुटे रहे, वह उनके असीम आत्मबल को ही प्रतिबिंबित करता है. क्या वाकई हमारे देश के नेता तमाम छद्म समस्याओं का सामना करने के प्रति योगेश्वर श्रीकृष्ण के सदृश आत्मबल धारण करते हैं? न केवल राजनीति के सन्दर्भ में, बल्कि मानव-जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में जिस मजबूती से, वगैर लिप्त हुआ, वगैर फल की चिंता किये कर्म करने की प्रेरणा भगवान श्रीकृष्ण ने दिया है, वैसा उत्तम उदाहरण कहीं और नहीं दिखता है. तो क्यों न एक बार फिर हम भगवान श्रीकृष्ण की मंदिरों में पूजा-रचना करने के साथ-साथ उनके जीवन चरित्र से सीख लें और अन्याय, अधर्म के खिलाफ समस्त दुर्बलताओं को त्यागकर अपने पुरुषार्थ के सहारे उठ खड़े हों! आखिर श्रीकृष्ण भी तो अर्जुन को यही कहते हैं कि-

क्लैब्यम्, मा, स्म, गमः, पार्थ, न, एतत्, त्वयि, उपपद्यते,
क्षुद्रम् हृदयदौर्बल्यम्, त्यक्त्वा, उत्तिष्ठ, परन्तप।।
(हे अर्जुन! नपुंसकता को मत प्राप्त हो, तुझमें यह उचित नहीं जान पड़ती। हे परंतप! हृदयकी तुच्छ दुर्बलता को त्यागकर युद्धके लिये खड़ा हो जा।)

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