आज सत्य पर असत्य की जीत का सबसे बड़ा त्योहार दशहरा मनाया जा रहा है. विजयदशमी का त्योहार पूरे देश में बहुत धूमधाम के साथ मनाया जाता है. आज के दिन अस्त्र-शस्त्र का पूजन और रावण दहन के बाद बड़ो के पैर छूकर आशीर्वाद लेने की परंपरा सदियों से चली आ रही है.
इसी तरह की कई और बातें हैं जो दशहरे के दिन की जाती है. इनमें से एक है, आज के दिन पान का बीड़ा हनुमानजी के चढ़ाना और उसके बाद इसे खाना. पान हनुमाजी को बहुत पसंद है और इस बार दशहरा मंगलवार को पड़ रहा है इसलिए यह दिन और भी खास हो जाता है.
पान को जीत का प्रतीक माना गया है. पान का 'बीड़ा' शब्द का एक महत्व यह भी है इस दिन हम सही रास्ते पर चलने का 'बीड़ा' उठाते हैं. पान प्रेम का पर्याय है. दशहरे में रावण दहन के बाद पान का बीड़ा खाने की परम्परा है. ऐसा माना जाता है दशहरे के दिन पान खाकर लोग असत्य पर हुई सत्य की जीत की खुशी मनाते हैं.
जानकार कहते हैं कि पान का पत्ता मान और सम्मान का प्रतीक है. इसलिए हर शुभ कार्य में इसका उपयोग किया जाता है. नवरात्रि पूजन के दौरान भी मां को पान-सुपारी चढ़ाने का विधान होता है. इसी के साथ पान के पत्ते का उपयोग विवाह से लेकर कथा पाठ तक हर शुभ काम में किया जाता है.
शारदीय नवरात्रि के समय मौसम बदल रहा होता है. इस समय संक्रामक बीमारियों के फैलने का खतरा सबसे ज्यादा होता है. ऐसे में यह परम्परा लोगों की बीमारियों से रक्षा करती है. नौ दिन के उपवास के बाद लोग अन्न ग्रहण करते हैं जिसके कारण उनकी पाचन की क्रिया प्रभावित होती है. पान का पत्ता पाचन की प्रक्रिया को सामान्य बनाए रखता है.
इसी तरह की कई और बातें हैं जो दशहरे के दिन की जाती है. इनमें से एक है, आज के दिन पान का बीड़ा हनुमानजी के चढ़ाना और उसके बाद इसे खाना. पान हनुमाजी को बहुत पसंद है और इस बार दशहरा मंगलवार को पड़ रहा है इसलिए यह दिन और भी खास हो जाता है.
पान को जीत का प्रतीक माना गया है. पान का 'बीड़ा' शब्द का एक महत्व यह भी है इस दिन हम सही रास्ते पर चलने का 'बीड़ा' उठाते हैं. पान प्रेम का पर्याय है. दशहरे में रावण दहन के बाद पान का बीड़ा खाने की परम्परा है. ऐसा माना जाता है दशहरे के दिन पान खाकर लोग असत्य पर हुई सत्य की जीत की खुशी मनाते हैं.
जानकार कहते हैं कि पान का पत्ता मान और सम्मान का प्रतीक है. इसलिए हर शुभ कार्य में इसका उपयोग किया जाता है. नवरात्रि पूजन के दौरान भी मां को पान-सुपारी चढ़ाने का विधान होता है. इसी के साथ पान के पत्ते का उपयोग विवाह से लेकर कथा पाठ तक हर शुभ काम में किया जाता है.
शारदीय नवरात्रि के समय मौसम बदल रहा होता है. इस समय संक्रामक बीमारियों के फैलने का खतरा सबसे ज्यादा होता है. ऐसे में यह परम्परा लोगों की बीमारियों से रक्षा करती है. नौ दिन के उपवास के बाद लोग अन्न ग्रहण करते हैं जिसके कारण उनकी पाचन की क्रिया प्रभावित होती है. पान का पत्ता पाचन की प्रक्रिया को सामान्य बनाए रखता है.
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