खुशियों का क्रिसमस, आगे ... Merry Christmas 2016, Hindi article

भारतवर्ष त्योहारों का देश है, तो यहाँ तमाम वर्ग और समुदाय एक दूसरे से मिल जुलकर सदा से प्रेमपूर्वक रहते आए हैं. देखा जाए तो मनुष्य के जीवन में त्योहारों की बेहद खास भूमिका होती है, क्योंकि प्रतिदिन की भागमभाग से, जीवन की आपाधापी से, रोजमर्रा की समस्याओं से यही त्यौहार हमें राहत देते हैं, मुस्कुराने का मौका देते हैं, तो हमें गौरवशाली अतीत पर दृष्टि डालने का अवसर भी देते हैं. यूं तो ईसाईयत भारत का मूल धर्म नहीं रहा है, किंतु अंग्रेजों के द्वारा जब हम गुलाम बनाए गए तब से इस धर्म का अंग्रेजों और पादरियों द्वारा लालच देकर और कई जगहों पर जोर जबरदस्ती से प्रचार-प्रसार किया गया. जाहिर तौर पर इस तरह के धर्म परिवर्तन को किसी भी तरह जायज नहीं ठहराया जा सकता है, किंतु इतिहास की कटुता के बीच अपने आप को, अपने देशवासियों को अनदेखा करना भी उचित नहीं है. जो ईसाई धर्म को मानने वाले हमारे भाई बंधु हैं, वह भारतवासी हैं और इस नाते उनके सुख दुख में शामिल होना, हर एक नागरिक का मूल कर्तव्य बन जाता है. पिछले दिनों पहली कक्षा में पढ़ने वाले मेरे बेटे ने मुझे अचानक बताया कि पापा स्कूल में सांताक्लाज क्रिसमस को आएंगे और हमें गिफ्ट भी देंगे. निश्चित रूप से समरस संस्कृति के विकास में स्कूलों की अहम भूमिका होती है, जहाँ इस तरह के त्यौहारों को उल्लासपूर्वक मनाया जाता है. शायद सभी बच्चों में जो सहिष्णुता का भाव उत्पन्न होता है, उसमें इन स्कूली कार्यक्रमों का भी काफी हद तक योगदान माना जा सकता है. चूंकि, संस्कारों की पाठशाला कहे जाने वाले हमारे 'संयुक्त परिवार' की परंपरा में काफी हद तक बिखराव हो रहा है, अतः विद्यालयों की पहले से ही महत्वपूर्ण भूमिका और भी महत्वपूर्ण होती जा रही है. Merry Christmas 2016, Hindi article, New, Essay, Religion, Festivals, Poor People Service, Religion changing is bad, Missionaries bad work

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आज पूरे विश्व में चारों ओर मारकाट मची हुई है, लड़ाई नफरत का माहौल है तो ऐसे में तमाम भारतीय समुदाय किस प्रकार प्रेमपूर्वक रहते हैं, एक दूसरे के सुख दुख में सहभागी होते हैं, इसका आदर्श उदाहरण हमारा भारत ही है. पुरातन समय में हमें 'विश्व गुरु' की पदवी तो मिली ही थी, किन्तु आधुनिक समय में भी हमारा सहिष्णु व्यवहार दूसरों के लिए आदर्श ही है. क्रिसमस को धूमधाम से मनाने के बीच कई संगठन ईसाई मिशनरियों द्वारा लालच देकर, बहला-फुसलाकर धर्म परिवर्तन की आलोचना करती रहती है और उनकी आलोचना को सिरे से खारिज भी नहीं किया जा सकता है. यह बात कई खबरों और आंकलनों में सामने आयी है कि आदिवासी और गरीब इलाकों में तमाम प्रोपोगंडा फैलाकर ईसाई धर्म का प्रचार करने को तरजीह दी जाती है. विवाद होने पर, अब तमाम ईसाई मिशनरियां भी जबरदस्ती धर्म प्रचार प्रसार को कुछ हद तक ही सही लगाम लगा रही हैं, किन्तु गरीबों को लालच देकर या दूसरे हथकंडे अपना कर गरीबों आदिवासियों का धर्म परिवर्तन करने का क्रम आज भी भारत के दूर-दराज के क्षेत्रों में जारी है. इससे निश्चित रूप से देश में वैमनस्यता ही बढेगी. कोई भी बाहर से आया धर्म हो उसके प्रचारकों को 'पारसी' धर्म से शिक्षा लेना चाहिए और स्थानीय समाज में 'दूध और चीनी' की तरह मिलकर रहना चाहिए, जिससे दूध का स्वाद मीठा ही हो. निश्चित रूप से क्रिसमस का त्यौहार इस तरह के धर्म परिवर्तन के प्रोपोगंडा की कतई इजाजत नहीं देता है.  Merry Christmas 2016, Hindi article, New, Essay, Religion, Festivals, Poor People Service, Religion changing is bad, Missionaries bad work


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शिक्षा से जो व्यक्ति हीन है, या जो गरीब है उसकी सेवा अवश्य की जानी चाहिए, किंतु उसकी थोड़ी सेवा के बदले उसके पुरखों का धर्म परिवर्तित कर दिया जाए, यह बेहद निंदनीय कृत्य है और निश्चित रूप से ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा मसीह ऐसा कभी नहीं चाहते होंगे. उचित बात यही है कि हर एक की आस्था और धर्म का सम्मान करना हम जानते हैं और इसलिए इकबाल कह गए हैं कि 'यूनान रोम मिश्र सभी की संस्कृति इस जहां से मिट गयी, लेकिन कुछ तो बात है कि हस्ती हमारी नहीं मिटती'! इसके पीछे हमारी सहिष्णुता ही रही है, जो इस्लाम या ईसाइयत जैसे बाहरी धर्मों को भी आत्मसात कर लेती है, किन्तु कई बार भारतीयों की इस सहिष्णुता को उनकी कमजोरी समझा जाता रहा है, जो नहीं होना चाहिए. जहां तक क्रिसमस की बात है तो ईसाई धर्म को मानने वालों के लिए गुड फ्राइडे अगर एक पर्व के रूप में है तो क्रिसमस त्यौहार के रुप में समझा जाता है. ईसा मसीह के जन्म के उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष ठंड के बीच और नववर्ष के आगमन के 6 दिन पहले यह त्यौहार पूरे विश्व में धूमधाम से मनाया जाता है. कहा जाता है कि ईसा मसीह का जन्म अत्यंत विकट परिस्थितियों में हुआ था. जब सारी दुनिया गहरी नींद में सोई थी, तब बेथलहम नाम के एक छोटे से नगर में यूसुफ की पत्नी मरियम ने एक गौशाला में ईसा मसीह को जन्म दिया था. यह घटना आज से लगभग 2000 वर्ष पूर्व घटी थी और तभी से हमारा ईसवी सन का प्रचलन भी हुआ. बेहद साधारण जिंदगी जीने वाले ईसा मसीह क्षेत्र में भेड़ चराने वालों के साथ रहते थे और जन-जन में लोकप्रिय थे, किंतु इस बात से वहां का राजा खुद पर खतरा महसूस करने लगा था और उसने क्रूर आज्ञा दी कि प्रांत के सभी बालको को मार डाला जाए.  Merry Christmas 2016, Hindi article, New, Essay, Religion, Festivals, Poor People Service, Religion changing is bad, Missionaries bad work


कुछ ऐसा ही दृष्टांत हमें भगवान कृष्ण के संदर्भ में भी मिलता है, जब गोकुल में उनके पिता वासुदेव उन्हें नंदजी और यशोदा मैया के पास छोड़ गए थे और तब कंस ने इसी प्रकार का आदेश दिया था कि सभी बच्चों को मार डाला जाए! पर कहते हैं 'जाको राखे साइयां मार सके ना कोय', उसी तरह से भगवान कृष्ण और भगवान की महिमा से ईसा मसीह भी हत्या से बच गए. उन्होंने हमारे सामने प्रेम और सेवा का आदर्श भाव रखा, जो रिश्ते, जाति, धर्म, प्रांत इत्यादि से परे हैं. इसके लिए उन्होंने भले समारी का उदाहरण भी सामने रखा है बताते चलें कि तत्कालीन समय में हमारी और यहूदी लोगों के बीच हमेशा बैर रहा, क्योंकि दोनों अलग वर्ग के थे, किंतु व्यवहारिक उदाहरण देकर लोगों को पड़ोसी प्रेम के प्रति ईसा मसीह जागरुक करते रहे. गरीब, दीन-दुखी, दलित पीड़ित लोग प्यार और सेवा के लायक हैं यह बात वह आजीवन बताते रहे. हालांकि ऐसा इतिहास में कहीं उदाहरण नहीं मिलता है कि अपनी इस सेवा के बदले उन्होंने धर्म परिवर्तन की कोई बात रखी हो, पर कालांतर में जिस तरह से ईसाई मिशनरियां थोड़ी सेवा के बदले गरीब और लाचार लोगों को धर्म परिवर्तित करने पर मजबूर करती हैं, उन्हें ईसा मसीह का संदेश पढ़ने और उससे ज्यादा समझने की आवश्यकता है. शायद इसी से क्रिसमस जैसे त्यौहार की असल महत्ता हम समझ पाएं.

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