राजभाषा पर संसद की समिति की 9वीं रिपोर्ट को मिली राष्ट्रपति की मंजूरी, भारतीय विमानों सेवाओं में भी मिलेगी हिंदी को प्राथमिकता - President accepts committee report of hindi conditioin improve



नई दिल्ली: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की ओर से स्वीकार की गई एक संसदीय समिति की सिफारिशों को यदि लागू कर दिया जाता है तो राष्ट्रपति और मंत्रियों सहित गणमान्य लोगों को जल्द ही हिंदी में भाषण देना पड़ सकता है. प्रणब ने राजभाषा पर संसद की समिति की 9वीं रिपोर्ट में की गई ज्यादातर सिफारिशें मान ली हैं. यह रिपोर्ट 2011 में सौंपी गई थी. एक आधिकारिक आदेश के मुताबिक, समिति की सिफारिश है कि राष्ट्रपति और मंत्रियों सहित सभी गणमान्य व्यक्तियों, खासकर हिंदी पढ़ने और बोलने में सक्षम लोगों, से अनुरोध किया जा सकता है कि वे अपने भाषण या बयान हिंदी में ही दें.

राष्ट्रपति ने कई अन्य सिफारिशें भी स्वीकार की है, जिनमें भारतीय विमानों में पहले हिंदी और फिर अंग्रेजी में घोषणाएं करनी होंगी. प्रणब की ओर से स्वीकार की गई समिति की सिफारिश के मुताबिक, विमानों में आधी अध्ययन सामग्री के तौर पर हिंदी अखबार और पत्रिकाएं होनी चाहिए, क्योंकि ‘‘एयरलाइनों में हिंदी की घोर अनदेखी होती है.’’ नागरिक उड्डयन मंत्रालय से कहा गया है कि वह इन सिफारिशों पर अमल सुनिश्चित करे.

राष्ट्रपति ने समिति की यह सिफारिश भी स्वीकार की है कि एयर इंडिया और पवन हंस हेलीकॉप्टरों के सभी टिकटों पर हिंदी का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित किया जाना चाहिए. मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी (एलबीएसएनएए) में 100 फीसदी प्रशिक्षण सामग्री अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी में भी उपलब्ध कराने की सिफारिश भी राष्ट्रपति ने स्वीकार कर ली है. एलबीएसएनएए में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारियों सहित अन्य सिविल सेवकों को प्रशिक्षण दिया जाता है. समिति ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय से कहा था कि वह पाठ्यक्रमों में हिंदी भाषा को अनिवार्य बनाने के लिए ठोस कदम उठाए. समिति ने अनुशंसा की थी, ‘‘पहले कदम के तौर पर सीबीएसई और केंद्रीय विद्यालय संगठन के सभी स्कूलों में 10वीं कक्षा तक के लिए हिंदी को एक अनिवार्य विषय बनाया जाना चाहिए.’’

आदेश में कहा गया, ‘‘यह सिफारिश सैद्धांतिक तौर पर स्वीकार की जाती है. केंद्र सरकार को राज्य सरकारों के साथ विचार-विमर्श कर एक नीति बनानी चाहिए.’’ राष्ट्रपति की ओर से स्वीकार की गई एक अन्य सिफारिश यह है कि गैर-हिंदी भाषी राज्यों, जहां परीक्षा या इंटरव्यू में शामिल होने के लिए छात्रों को हिंदी का विकल्प नहीं दिया जाता है, के विश्वविद्यालयों एवं उच्च शिक्षण संस्थाओं को हिंदी में उत्तर देने का विकल्प निश्चित तौर पर देना चाहिए.


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