बैंकिंग कंपनियों द्वारा वसूले जा रहे ब्याज दर की समीक्षा कर सकती हैं अदालतें - courts can examine reasonableness of bank interest rate on rural loans

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के प्रावधान जो अदालत को बैंकों के ब्याज दर की समीक्षा से रोकते हैं, वह राज्यों में किसानों को दिए गए ऋण राहत पर लागू नहीं होगा। इस अधिनियम की धारा 21ए के तहत बैंकिंग कंपनियों द्वारा वसूले जा रहे ब्याज दर की समीक्षा अदालत द्वारा इस आधार पर नहीं हो सकती कि उसे अधिक दर से वसूला जा रहा है.



न्यायाधीश रोहिंगटन फली नरीमन और न्यायाधीश नवीन सिन्हा की खंडपीठ ने अपने शुक्रवार के फैसले में कहा, "जहां तक धारा 21 ए का सवाल है, तो यह कृषि ऋणगस्तता को राहत देने में बाधक है। जिन राज्यों में राज्य ऋण राहत अधिनियम लागू है, वहां यह धारा लागू नहीं होगी, जबकि बाकी राज्यों में यह लागू रहेगी."

अदालत ने कहा कि राज्यों की दूसरी श्रेणी जहां राज्य ऋण राहत अधिनियम कुछेक वित्तीय संस्थानों पर लागू होंगे, वहां बैकिंग विनियमन अधिनियम की धारा 21ए किसानों को दिए गए ऋण पर लागू नहीं होगी. अदालत ने भारतीय रिजर्व बैंक के इस तर्क को स्वीकार नहीं किया कि धारा 21 ए विषय केंद्रीय सूची में आती है और यहां तक कि अगर राज्यों द्वारा पारित ऋण राहत कानून पर भी धारा 21ए के कुछ हिस्से को लागू करना चाहिए. इसमें केंद्रीय कानून को ज्यादा महत्व देना चाहिए.



संविधान के अनुच्छेद 246 के हवाले से न्यायाधीश नरीमन ने कहा, "सांविधानिक प्रावधानों के मुताबिक, जब संघीय सूची और राज्य सूची में टकराव हो तो संघीय सूची को प्राथमिकता देनी चाहिए, लेकिन यह अंतिम उपाय है." अदालत ने कहा कि कृषि विशेष रूप से राज्य का विषय है. इसलिए इस मामले में राज्य के कानूनों को प्राथमिकता देनी चाहिए.




शीर्ष अदालत का आदेश जयंत वर्मा, डॉ. बी.डी. शर्मा, देवव्रत विश्वास, बीर सिंह महतो और डॉ. सुनीलम द्वारा दाखिल पीआईएल पर आया है, जिसमें बैकिंग विनियमन अधिनियम 1949 की धारा 21 ए को चुनौती दी गई थी.
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