नई दिल्ली: शिक्षा विभाग ने आदेश देते हुए कहा है कि 31 मार्च 2018 तक दिल्ली के सभी गैर मान्यता प्राप्त स्कूल बंद कर दिए जाएं. इस आदेश से इन स्कूलों में पढ़ने वाले करीब 9 लाख बच्चे पर 30 हजार शिक्षकों पर बड़ा संकट आ गया है. बता दें, दिल्ली में करीब 3000 गैर मान्यता प्राप्त स्कूल हैं.
दिल्ली के गैर- मान्यता प्राप्त स्कूलों के खिलाफ याचिका लगाने वाली दिल्ली हाईकोर्ट के वकील अशोक अग्रवाल ने स्कूलों को तुरंत बंद करने के कारण बताते हुए कहा कि, राईट टू एजुकेशन 2009 का एक्ट जो पूरी तरह से 2010 में लागू हुआ था.
उस एक्ट में कहा गया है कि एक्ट लागू होने वाले दिन से 3 साल तक यानी साल 2013 तक दिल्ली के सभी स्कूल मान्यता ले लें. यदि वह स्कूल मान्यता नहीं लेते हैं, तो स्कूलों को बंद कर दिया जाएगा. इसी के साथ दिल्ली सरकार 1 लाख और हर रोज 10 हजार का जुर्माना स्कूलों से ले सकती है. साथ ही वह स्कूलों को सीज़ भी कर सकती है.
वहीं स्कूलों के बंद होने जाने के बाद 9 लाख बच्चों के भविष्य को लेकर माता-पिता चितिंत हैं. यदि स्कूल बंद कर दिए जाते हैं, तो अधिकतर पैरेंट्स ने बताया कि वह अपने बच्चे को सरकारी स्कूलों में पढाना नहीं चाहते. क्योंकि सरकारी स्कूलों में शिक्षा अच्छे से नहीं होती. दरअसल सबसे बडी चिंता सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की है. दिल्ली में ज्यादातर सरकारी स्कूल गेस्ट टीचरों के सहारे चल रहे हैं
- दिल्ली में 5800 सरकारी स्कूल में 50 लाख बच्चे पढ़ते हैं.
- हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में छठी कक्षा तक के आधे बच्चे पढ़ना नहीं जानते.
- कुछ दिन पहले दिल्ली सरकार के स्कूलों में 10वीं प्री बोर्ड में 70% बच्चे फेल हो गए थे.
देश की 40 सेंट्रल यूनिवर्सिटी में 50 फीसदी शिक्षकों के पद खाली
- दिल्ली में इस वक्त 66736 शिक्षकों की सरकारी स्कूल में पद हैं जिसमें से 38926 यानी लगभग 58 प्रतिशत टीचर है.जिसमें 21926 परमानेंट है और बाकी लगभग 17000 टीचर गेस्ट के तौर पर है.
- बाहरी दिल्ली में कई ऐसे स्कूल है जहां पर शिफ्ट के हिसाब से स्कूल चलते हैं.
इन सभी आंकड़ों को देखकर साफ है सरकार चाहे लाख दावे कर लें लेकिन दिल्ली में अभी सरकारी स्कूलों की स्थिति उतनी बेहतर नहीं हुई है जितनी होनी चाहिए.
दिल्ली के गैर- मान्यता प्राप्त स्कूलों के खिलाफ याचिका लगाने वाली दिल्ली हाईकोर्ट के वकील अशोक अग्रवाल ने स्कूलों को तुरंत बंद करने के कारण बताते हुए कहा कि, राईट टू एजुकेशन 2009 का एक्ट जो पूरी तरह से 2010 में लागू हुआ था.
उस एक्ट में कहा गया है कि एक्ट लागू होने वाले दिन से 3 साल तक यानी साल 2013 तक दिल्ली के सभी स्कूल मान्यता ले लें. यदि वह स्कूल मान्यता नहीं लेते हैं, तो स्कूलों को बंद कर दिया जाएगा. इसी के साथ दिल्ली सरकार 1 लाख और हर रोज 10 हजार का जुर्माना स्कूलों से ले सकती है. साथ ही वह स्कूलों को सीज़ भी कर सकती है.
वहीं स्कूलों के बंद होने जाने के बाद 9 लाख बच्चों के भविष्य को लेकर माता-पिता चितिंत हैं. यदि स्कूल बंद कर दिए जाते हैं, तो अधिकतर पैरेंट्स ने बताया कि वह अपने बच्चे को सरकारी स्कूलों में पढाना नहीं चाहते. क्योंकि सरकारी स्कूलों में शिक्षा अच्छे से नहीं होती. दरअसल सबसे बडी चिंता सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की है. दिल्ली में ज्यादातर सरकारी स्कूल गेस्ट टीचरों के सहारे चल रहे हैं
- दिल्ली में 5800 सरकारी स्कूल में 50 लाख बच्चे पढ़ते हैं.
- हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में छठी कक्षा तक के आधे बच्चे पढ़ना नहीं जानते.
- कुछ दिन पहले दिल्ली सरकार के स्कूलों में 10वीं प्री बोर्ड में 70% बच्चे फेल हो गए थे.
देश की 40 सेंट्रल यूनिवर्सिटी में 50 फीसदी शिक्षकों के पद खाली
- दिल्ली में इस वक्त 66736 शिक्षकों की सरकारी स्कूल में पद हैं जिसमें से 38926 यानी लगभग 58 प्रतिशत टीचर है.जिसमें 21926 परमानेंट है और बाकी लगभग 17000 टीचर गेस्ट के तौर पर है.
- बाहरी दिल्ली में कई ऐसे स्कूल है जहां पर शिफ्ट के हिसाब से स्कूल चलते हैं.
इन सभी आंकड़ों को देखकर साफ है सरकार चाहे लाख दावे कर लें लेकिन दिल्ली में अभी सरकारी स्कूलों की स्थिति उतनी बेहतर नहीं हुई है जितनी होनी चाहिए.
0 comments:
Post a Comment