प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपी गई 'एक देश, एक चुनाव' पर रिपोर्ट - bjp study on one nation one election rules out bypolls and mid term elections

नई दिल्ली: 'एक देश, एक चुनाव' के आइडिया पर बीजेपी ने अपनी स्टडी में मध्यावधि और उपचुनाव की प्रक्रिया को खारिज कर दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपी गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में एक साथ चुनाव कराने से अविश्वास प्रस्ताव और सदन भंग करने जैसे मामलों में भी देश को काफी मदद मिलेगी.

देश में एक साथ चुनाव कराने के विचार पर पब्लिक डिबेट की अध्यक्षता करने वाले बीजेपी उपाध्यक्ष विनय सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि बीजेपी और सरकार का मानना है कि सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाते हुए विपक्षी पार्टियों को अगली सरकार के समर्थन में विश्वास प्रस्ताव भी जरूर लाना चाहिए.

उन्होंने कहा, 'ऐसे में समय से पहले सदन भंग होने की स्थिति को टाला जा सकता है. आगे, उपचुनाव के केस में दूसरे स्थान पर रहने वाले व्यक्ति को विजेता घोषित किया जा सकता है, अगर किसी कारणवश सीट खाली होती है.'

पिछले साल नरेंद्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी और अपने काडर से इस बात पर विमर्श खड़ा करने को कहा था कि देश में एक साथ चुनाव कराए जाने चाहिए. एक साथ चुनाव कराने का आशय लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का विचार है.



इसके लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रामभाऊ म्हालगी प्रबोधिनी समूह ने भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के साथ मिलकर एक सेमीनार का आयोजन किया, जिसमें 16 विश्वविद्यालयों और संस्थानों के 29 अकादमी सदस्यों ने इस विषय पर अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए.

सेमीनार में राजनीतिक दलों के 24 प्रतिनिधियों, कानूनी और संविधान विशेषज्ञों ने भी इस विषय पर अपनी राय रखी. एक बीजेपी नेता ने कहा कि 26 राज्यों के 210 डेलीगेट्स ने इस सेमीनार में हिस्सा लिया. इसके साथ ही हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार, संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप, जेडीयू लीडर केसी त्यागी और बीजेडी के पूर्व नेता बैजयंत पांडा भी शामिल हुए.

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत और इसका राजनीतिक माहौल हर समय चुनावी मोड में रहता है. जहां हर साल लगभग 6 राज्यों में चुनाव होते हैं. एक ऐसी स्थिति, जो विकास कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है. साथ ही इसका देश के शासन पर भी काफी असर पड़ता है.



रिपोर्ट में आम चुनाव में होने वाले खर्च का जिक्र करते हुए कहा गया है कि 2009 और 2014 में अनुमान के तौर पर 1,115 करोड़ और 3,875 करोड़ रुपये क्रमशः खर्च हुए. अगर 31 विधानसभाओं में चुनाव हो, तो ये आंकड़ा कई गुना बढ़ सकता है.

हालांकि पैनल का मानना था कि अगर एक साथ चुनाव कराएं तो ये चुनावी खर्च 4,500 करोड़ तक हो सकता है. 2014 में 16वीं लोकसभा के लिए 7 अप्रैल से 12 मई के बीच 9 चरणों में चुनाव कराए गए थे. इसी साल 9 राज्यों में भी विधानसभा के चुनाव हुए. इनमें आंध्र प्रदेश, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, झारखंड, महाराष्ट्र, ओड़िशा, तेलंगाना और सिक्किम शामिल हैं.

सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 16वीं लोकसभा के चुनावों में 1 करोड़ लोग चुनाव अधिकारी के रूप में 9 लाख 30 हजार पोलिंग बूथों पर लगाए गए थे, वहीं, सेंट्रल सिक्योरिटी फोर्स की 1,349 कंपनियों के जवान सुरक्षा में तैनात थे.


बता दें कि नीति आयोग ने भी इस मसले पर अपना विमर्श पत्र रखा. इसे बिबेक देबरॉय और किशोर देसाई ने लिखा था. रिपोर्ट में हर साल होने वाले चुनावों की वजह से पब्लिक लाइफ पर पड़ने वाले असर की कड़े शब्दों में आलोचना की गई है.

रिपोर्ट देश में दो चरणों में चुनाव कराए जाने की सिफारिश करती है. पहला लोकसभा और कम से कम आधे राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ 2019 में कराए जाने का प्रस्ताव है, तो दूसरा 2021 में बाकी के राज्यों में विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने का प्रस्ताव रिपोर्ट में किया गया है.

हालांकि बीजेपी को छोड़ अन्य राजनीतिक पार्टियों कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी और सीपीआई ने एक साथ चुनाव कराए जाने पर आपत्ति जताई है.

गौर करने वाली बात है कि अक्टूबर 2017 में इलेक्शन कमिश्नर ओपी रावत ने कहा था कि चुनाव आयोग सितंबर 2018 तक संसाधनों के स्तर एक साथ चुनाव कराने में सक्षम हो जाएगा. लेकिन ये सरकार पर है कि वो इस बारे में फैसला लें और अन्य कानूनी सुधारों को लागू करे.


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