लिंगायत समुदाय को लेकर बड़ा फैसला लिया कर्नाटक सरकार ने - siddaramaiah govt has accepted separate religion for lingayat community

नई दिल्ली: कर्नाटक में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की सरकार ने लिंगायत समुदाय को लेकर बड़ा फैसला लिया है. सरकार ने नागमोहन कमेटी की सिफारिश को मानते हुए लिंगायत समुदाय को धर्म के रूप में मान्यता दे दी है. सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायत समुदाय को अलग धर्म मानकर अल्पसंख्यक का दर्जा दे दिया है. कर्नाटक सरकार की कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद यह अब केंद्र की बीजेपी सरकार के पास भेजी जाएगी. सिद्धारमैया सरकार के इस कदम को बड़ा राजनीतिक फैसला माना जा रहा है. दरअसल, कर्नाटक में करीब 21 फीसदी लिंगायत समुदाय के लोग हैं. साथ ही बीजेपी के मुख्यमंत्री पद दावेदार बीएस येदियुरप्पा लिंगायत समाज से आते हैं.

कर्नाटक की राजनीति में अहम रोल निभाने वाला लिंगायत समुदाय आखिर क्या है और इसे लेकर इतनी राजनीति क्यों हो रही है? भक्तिकाल के दौरान 12वीं सदी में समाज सुधारक बासवन्ना ने हिंदू धर्म में जाति व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था. उन्होंने वेदों को खारिज कर दिया और मूर्तिपूजा का विरोध किया. उन्होंने शिव के उपासकों को एकजुट कर वीरशैव संप्रदाय की स्थापना की.


मान्यता है कि वीरशैव और लिंगायत एक ही हैं, लेकिन लिंगायत लोग ऐसा नहीं मानते. उनका मानना है कि वीरशैव लोगों का अस्तित्व समाज सुधारक बासवन्ना के उदय से भी पहले से था. लिंगायत का कहना है कि वे शिव की पूजा नहीं करते बल्कि अपने शरीर पर इष्टलिंग धारण करते हैं. यह एक गेंदनुमा आकृति होती है, जिसे वे धागे से अपने गले या बाजू पर बांधते हैं.


राजनीतिक विश्‍लेषक लिंगायत को एक जातीय पंथ मानते हैं, ना कि एक धार्मिक पंथ. राज्य में ये अन्य पिछड़े वर्ग में आते हैं. अच्छी खासी आबादी और आर्थिक रूप से ठीकठाक होने की वजह से कर्नाटक की राजनीति पर इनका प्रभावी असर है. 80 के दशक की शुरुआत में रामकृष्ण हेगड़े ने लिंगायत समाज का भरोसा जीता. हेगड़े की मृत्यु के बाद बीएस येदियुरप्पा लिंगायतों के नेता बने. 2013 में बीजेपी ने येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाया तो लिंगायत समाज ने भाजपा को वोट नहीं दिया. नतीजतन, कांग्रेस फिर से सत्ता में लौट आई.

अब बीजेपी फिर से लिंगायत समाज में गहरी पैठ रखने वाले येदियुरप्पा को सीएम कैंडिडेट के रूप में आगे रख रही है. अगर कांग्रेस लिंगायत समुदाय के वोट को तोड़ने में सफल होती है तो यह कहीं न कहीं बीजेपी के लिए नुकसानदेह साबित होगी.
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