समाज में बदलाव के लिए जरूरी नहीं है कि राजनीति में ही जाएं.: आनंद कुमार - super 30 founder anand kumar shares his struggle

नई दिल्‍ली: बिहार में सुपर '30' के संस्‍थापक आनंद कुमार की प्रेरणा से गरीब, वंचित तबके के सैकड़ों छात्रों की जिंदगी में आमूलचूल बदलाव आया है. उन्‍होंने करीब 450 बच्‍चों को अभी तक गाइड किया है जिसमें से करीब 395 छात्र आईआईटी में चयनित हुए हैं, बाकी एनआईआईटी जैसे पेशेवर संस्‍थानों में चयनित हुए हैं. एक कमजोर पृष्‍ठभूमि से जिंदगी की शुरुआत करने वाले आनंद कुमार की प्रसिद्धि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी रोचक जिंदगी पर सुपर '30' नाम से फिल्‍म बन रही है.

इस फिल्‍म में आनंद कुमार का रोल एक्‍टर रितिक रोशन निभा रहे हैं. इस फिल्‍म की शूटिंग इसी जनवरी में शुरू हो चुकी है और अगले साल 25 जनवरी को यह फिल्‍म रिलीज होगी.

अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए आनंद कुमार ने बताया कि बचपन में उनको साइंस के प्रोजेक्‍ट बनाने का बड़ा शौक था. उसी क्रम में गणित में दिलचस्‍पी बढ़ती गई. उसका नतीजा यह हुआ कि उनको 1994 में कैंब्रिज में पढ़ने का ऑफर मिला लेकिन घर में आर्थिक तंगी के कारण वह नहीं जा सके. पिता रेलवे में पोस्‍टल कर्मचारी थे, उनको इसका गहरा सदमा लगा और दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया.


आनंद कुमार ने बताया कि पिता की मृत्‍यु के बाद अनुकंपा के आधार पर सरकारी नौकरी मिल रही थी लेकिन मां ने कहा कि बेटे आप पढ़ाई करो. लिहाजा मां ने पापड़ बनाने शुरू किए और हम दोनों भाई पापड़ बेचते थे. इस तरह परिवार का गुजारा चलता था. बाद में लोगों के प्रोत्‍साहन पर बच्‍चों को गाइड करना शुरू किया और इस तरह कारवां बनता चला गया. हालांकि जब आनंद कुमार से पूछा गया कि प्रसिद्धि पाने के बाद क्‍या अब वह चुनाव भी लड़ेंगे तो मुस्‍कुराते हुए उन्‍होंने कहा कि समाज में बदलाव के लिए जरूरी नहीं है कि राजनीति में ही जाएं. अपनी क्षमता से समाज की बेहतरी के लिए जो कर पा रहे हैं, उसी से संतोष है. इसके साथ ही जोड़ा कि राजनीति में धर्म, जाति, संप्रदाय के आधार पर भी आंका जाता है और अभी भले ही हमारे काम की सराहना हो रही है लेकिन राजनीति तो काजल की कोठरी है, वहां पर जाने के बाद व्‍यक्ति पर कई लांछन भी लग जाते हैं. इसलिए राजनीति में जाने का इरादा नहीं है.
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