बेंगलुरु में ऐंटी बीजेपी शो, लेकिन विपक्षी एकता की बात कहना अभी जल्दबाजी- anti-bjp-show-in-bengaluru

नई दिल्ली :कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस + गठबंधन की सरकार के शपथ ग्रहण में मंच से विपक्षी एकता भी देखने को मिलेगी। कई क्षेत्रीय दलों के कद्दावर नेता बेंगलुरु में इस शपथ ग्रहण समारोह का हिस्सा होंगे। एक तरफ मोदी सरकार केंद्र में अपने 4 साल पूरे करने जा रही है और उससे ठीक पहले विपक्षी एकता की नींव भी पड़ती दिख रही है। 2019 लोकसभा चुनावों से पहले यह एक तरह से मोदी सरकार के लिए चुनौती की घोषणा है। हालांकि, केंद्र में मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी एकता की यह बानगी लोकसभा चुनावों तक देखने को मिलेगी, यह कहना फिलहाल जल्दबाजी है। कांग्रेस के साथ इस शपथ ग्रहण में एमके स्टालिन, ममता बनर्जी + , चंद्रबाबू नायडू, शरद पवार, सुधाकर रेड्डी, अजित सिंह, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, सीताराम येचुरी के साथ बीएसपी और टीआरएस के प्रतिनिधि इस शपथ ग्रहण समारोह का हिस्सा बनेंगे। विपक्षी नेताओं की एक साथ इतनी बड़ी उपस्थिति को दिल्ली में कुछ नेता 1984 में एनटी रामाराव के शपथ ग्रहण समारोह की तरह देख रहे हैं। हालांकि, उस वक्त जब आंध्र प्रदेश के सीएम पद की शपथ एनटी रामाराव ले रहे थे, तब कांग्रेस नहीं बल्कि जनता परिवार के बड़े नेता, बीजेपी, लेफ्ट और कई क्षेत्रीय पार्टियों के प्रतिनिधि वहां पहुंचे थे। हालांकि, एनटी रामाराव के शपथ ग्रहण की तस्वीर थोड़ी अलग थी और उस वक्त इंदिरा गांधी की केंद्र में सरकार थी। उस वक्त हैदराबाद में ऐंटी-कांग्रेस माहौल की झलक दिखी थी। आज मंच से विपक्षी एकता का जो माहौल दिखेगा, वह कांग्रेस के नेतृत्व में बीजेपी के खिलाफ है। आपको बता दें कि कर्नाटक में बीजेपी की तरफ से येदियुरप्पा ने सीएम पद की शपथ भी ले ली थी, लेकिन वह बहुमत के लिए जरूरी आंकड़े नहीं जुटा पाए। आखिरकार येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा और सरकार बुलाने के लिए न्योता देने को लेकर कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला की आलोचना भी हुई। सीताराम येचुरी विपक्षी एकता के बारे में कहते हैं, 'कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन उत्तर प्रदेश में एसपी-बीएसपी गठबंधन की तरह है। लेफ्ट का विश्वास है कि पहले राज्य में बीजेपी के विरोध में गठबंधन सरकार बने और फिर ऐसी ही गठबंधन एकता की कोशिश 2019 लोकसभा चुनावों के लिए की जाए।' हालांकि, बेंगलुरु में एकता का यह नजारा अपने आप में क्षेत्रीय विरोधाभासों से भरा हुआ है। डीएमके, लेफ्ट, आरजेडी, एनसीपी और जेएमएम जैसी पार्टियां कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी एकता के पक्ष में हैं। दूसरी तरफ बीजेपी के खिलाफ टीएमसी, टीडीपी, टीआरएस जब-तब फेडरल फ्रंट पर जोर देते रहे हैं। लोकतांत्रिक जनता दल के संस्थापक शरद यादव का कहना है कि जैसे-जैसे बीजेपी की आक्रामकता में कमी आ रही है, क्षेत्रीय पार्टियों की निजी महत्वाकांक्षाएं हावी होती जा रही हैं। कुछ छोटी क्षेत्रीय पार्टियों का इतिहास है कि बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने के दावों के बीच कई बार उन्होंने बीजेपी और कांग्रेस दोनों के साथ पाला बदलने का काम किया है। कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन के लिए इस वक्त सबसे जरूरी है कि 2019 तक वह कर्नाटक में स्थायी सरकार चलाएं। बीजेपी की कोशिश रहेगी कि इस सरकार को अपने शुरुआती दौर में ही गिराया जा सके। 2019 लोकसभा चुनावों में अगर विपक्षी एकता संभव है तो उसकी शुरुआत कर्नाटक में गठबंधन सरकार की कुशलता पर भी निर्भर करती है।
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