नई
दिल्ली : पेट्रोल और डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों को लेकर विपक्ष के
निशाने पर आई मोदी सरकार फिलहाल जनता को कोई राहत देने के मूड में नहीं नजर
आ रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में काफी उछाल आया
है। हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया के सूत्रों के मुताबिक तेल की बढ़ती
कीमतों से सरकार चिंतित तो है लेकिन इसके बावजूद एक्साइज ड्यूटी में कटौती
जैसे कदम उठा कर राहत देने का सरकार का कोई इरादा नहीं है।ऐसा इसलिए है
क्योंकि इससे कल्याणकारी योजनाओं के लिए फंड जुटाने और राजस्व इकट्ठा करने
पर बुरा असर पड़ेगा। इसका महंगाई पर भी प्रतिकूल असर पड़ सकता है, जो
फिलहाल थोड़ा काबू में है। सरकार का मानना है कि बाजार को ध्यान में रखे
बिना ऐसा कोई भी कदम उठाना उचित नहीं होगा। यह भी सही है कि पिछले दो दिनों
के दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में दो डॉलर प्रति
बैरल की गिरावट आई है। ओपेक के अगुआ सऊदी अरब और उसके बाहरी सहयोगी रूस ने
संकेत दिए हैं कि वह दो साल के लिए प्रॉडक्शन में कटौती की डील पर राजी हो
सकते हैं।
कर्नाटक चुनाव के नतीजे आने और वहां नई सरकार के गठन के बाद अब उपभोक्ताओं
को तत्काल राहत देने की कोई सियासी मजबूरी भी नहीं है। राजस्थान, मध्य
प्रदेश और छत्तीसगढ़ में नवंबर में चुनाव होने हैं। ऐसे में सरकार के पास
तेल कीमतों में सुधार होने तक के लिए पर्याप्त समय है।
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, 'यह एक सुखद स्थिति नहीं है लेकिन हमें
इसका सामना करना होगा। कई बार अर्थव्यवस्था के हित और वित्तीय हालात को
देखते हुए कड़े फैसले लेने पड़ते हैं।' इस बीच विपक्ष ने तेल कीमतों में
बढ़ोतरी पर सरकार को निशाने पर लेते हुए कहा है कि तेल कीमतें बढ़ने से
परिवहन भी काफी महंगा हो गया है।
2014 में बीजेपी ने कांग्रेस के खिलाफ बढ़ती तेल कीमतों को मुद्दा बनाया था
लेकिन वर्तमान हालात में बीजेपी सरकार पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर
विपक्ष के तीखे तेवरों का सामना कर रही है। वर्ल्ड बैंक ने इस साल एनर्जी
कमॉडिटीज जैसे कि कच्चा तेल, गैस और कोयले की वैश्विक कीमतों में 20% इजाफे
का अनुमान लगाया है।
चुनाव से पहले सरकार कल्याणकारी योजनाओं में ज्यादा खर्च करने की तैयारी
में है, ऐसे में राजस्व में कटौती का कदम उठाने के लिए वह तैयार नहीं
दिखती। वर्ल्ड बैंक के अप्रैल के आंकड़ों के मुताबिक ओपेक और रूस के
प्रॉडक्शन में कटौती के कदम की वजह से 2018 में कच्चे तेल की कीमतें 65
बैरल प्रति लीटर के आसपास रहीं। ईरान न्यूक्लियर डील से अमेरिका की ओर से
हाथ खींचने के बाद उपभोक्ताओं के लिए स्थिति और बदतर हो गई।
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पेट्रोल कीमतें: राहत देने के मूड में नहीं है मोदी सरकार? अंतरराष्ट्रीय बाजार में मूल्य घटने का इंतजार- petrol-diesel-prices
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