साइंस टॉपर कल्पना के जरिए फिर सामने आया बिहार बोर्ड का बदनाम चेहरा- bihar-board-examination

बिहार बोर्ड इंटरमीडिएट परीक्षा 2018 के नतीजे बुधवार की शाम घोषित कर दिए गए. विज्ञान संकाय की बात करें तो इस बार की देशभर में NEET टॉपर रही कल्पना कुमारी ने बिहार बोर्ड के 12वीं के विज्ञान संकाय में भी टॉप किया और उसे 434 अंक प्राप्त हुए. हालांकि, कल्पना कुमारी के बिहार बोर्ड के विज्ञान संकाय में टॉप करने की घोषणा के तुरंत बाद एक बड़ा विवाद शुरू हो गया, जिसको लेकर बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने झूठ बोलकर अपनी इज्जत बचाने में बेहतरी समझी. विवाद कल्पना कुमारी के ज्ञान को लेकर कतई नहीं उठा बल्कि बिहार की घटिया शिक्षा व्यवस्था और बिहार बोर्ड को लेकर हुआ है. देश के किसी स्कूल की बात करें तो यह बहुुत आम सी बात है कि अगर आप 10वीं या 12वीं बोर्ड की परीक्षा में बैठते हैं, तो आपको कक्षा में न्यूनतम उपस्थिति होना अनिवार्य होता है. कई जगहों पर छात्रों के लिए न्यूनतम उपस्थिति 75 फीसदी है. बवाल मगर इसलिए उठा है, क्योंकि बिहार बोर्ड ने इस बार एक ऐसी छात्रा को विज्ञान संकाय का टॉपर बना दिया, जिसने कभी अपने स्कूल में क्लास का मुंह तक नहीं देखा. दरअसल, पिछले हफ्ते NEET परीक्षा में टॉप करने के तुरंत बाद कल्पना कुमारी ने कई जगहों पर यह इंटरव्यू में बताया कि वह पिछले 2 साल से लगातार दिल्ली में आकाश इंस्टिट्यूट से मेडिकल की तैयारी कर रही थीं. इसी दौरान बिहार बोर्ड से 12वीं की परीक्षा देने के लिए कल्पना ने अपने गृह जिला शिवहर के तरियानी में स्थित YKJM कॉलेज में दाखिला भी लिया हुुआ था. 12वीं की बोर्ड परीक्षा देने के लिए कल्पना ने इसी कॉलेज से बिहार बोर्ड का फॉर्म भरा था. इस परीक्षा के विज्ञान संकाय में वह टॉप कर गईं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब कल्पना पिछले 2 सालों से दिल्ली में आकाश इंस्टिट्यूट से मेडिकल की तैयारी कर रही थी, तो फिर वह शिवहर के कॉलेज के क्लास में न्यूनतम उपस्थिति कैसे दर्ज करा रही थी? इस पूरे मामले को लेकर विवाद बढ़ा तो बिहार बोर्ड के ऊपर सवाल उठने लगे कि जब किसी स्कूल में किसी छात्र की उपस्थिति न्यूनतम से भी कम है या फिर ना के बराबर है तो फिर ऐसे छात्र को बिहार बोर्ड की परीक्षा में बैठने की अनुमति कैसे दे दी? विवाद को बढ़ता देख बिहार स्कूल परीक्षा समिति के चेयरमैन आनंद किशोर ने एक झूठ बोला और इस पूरे विवाद को खत्म करने की कोशिश की. आनंद किशोर ने आनन-फानन में यह ऐलान कर दिया कि बिहार के स्कूलों में किसी भी छात्र के लिए न्यूनतम उपस्थिति का कोई प्रावधान नहीं है. इसका मतलब यह हुआ कि बिहार के सरकारी स्कूल में या फिर बिहार के बोर्ड से मान्यता प्राप्त किसी भी स्कूल में आप केवल दाखिला ले लीजिए, क्लास मत करिए और आराम से बोर्ड की परीक्षा भी दे दीजिए और टॉप कर जाइए. ऐसे में सवाल उठता है कि जब आनंद किशोर इस बात का एलान कर रहे हैं कि बिहार के स्कूलों में न्यूनतम उपस्थिति का कोई प्रावधान नहीं है. फिर राज्य सरकार ने प्रदेश में 70 हजार से ज्यादा स्कूल क्यों खोले हुए हैं और इन स्कूलों में शिक्षक बहाल करने का क्या मतलब? सवाल यह भी उठता है कि जब न्यूनतम उपस्थिति का कोई प्रावधान छात्रों के लिए है ही नहीं तो फिर हर साल शिक्षा पर करोड़ों रुपए खर्च क्यों होते हैं? बिहार शायद देश का ऐसा इकलौता प्रदेश बन गया है, जहां के सरकारी स्कूलों में छात्र छात्राओं के लिए न्यूनतम उपस्थिति का कोई प्रावधान ही नहीं है. यानी छात्र स्कूल आए ना आए कोई फर्क नहीं पड़ता, बस परीक्षा में बैठ जाइए और टॉप कर जाइए. इस विवाद का निचोड़ यह निकलता है कि कल्पना कुमारी किसी भी तरीके से फर्जी छात्रा नहीं है, बल्कि वह वाकई में टॉपर है, मगर वह बिहार के बदहाल शिक्षा व्यवस्था की पोल एक बार फिर खोल गई. पिछले 2 सालों से लगातार टॉपर घोटाले की वजह से बदनामी झेल रहे बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने इस बार एक ऐसा झूठ बोला है जिसके बाद उसकी और ज्यादा बदनामी हो रही है.
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