BJP-JDU में खींचतान के बीच नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद को क्‍यों किया फोन?- nitish-kumar-calls-lalu-prasad-yadav

पटना: 2019 के लोकसभा चुनावों के मसले पर सत्‍तारूढ़ जदयू और बीजेपी के बीच सीट शेयरिंग फॉर्मूले पर खींचतान की आ रही खबरों के बीच मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने धुर विरोधी राजद नेता लालू प्रसाद यादव से फोन पर बात की. मुख्यमंत्री के करीबी सूत्रों के मुताबिक नीतीश ने अपने पुराने सहयोगी से प्रतिद्वंद्वी बने लालू से फोन पर बातकर उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछा. वह मुंबई स्थित एशियन हार्ट इंस्टीट्यूट में फिस्टुला के ऑपरेशन के लिए गत रविवार को भर्ती हुए. बिहार में बदलती सियासी परिस्थितियों के लिहाज से इस फोन कॉल को अहम माना जा रहा है क्‍योंकि पिछले साल महागठबंधन में शामिल राजद और कांग्रेस से नाता तोड़कर बीजेपी नीत राजग में शामिल हुए जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश के अब भाजपा से असहज महसूस करने की अटकलों के बीच यह परिवर्तन देखा जा रहा है. करोड़ों रुपये के चारा घोटाला मामले में सजायाफ्ता लालू को इलाज के लिए वर्तमान में अस्थायी जमानत मिली हुई है.सीट बंटवारे का पेंच अगले लोकसभा चुनावों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की अगुआ बीजेपी सहित बिहार की चार सहयोगी पार्टियों में सीट बंटवारे के लिए जदयू 2015 के राज्य विधानसभा चुनाव के नतीजों को आधार बनाना चाहता है. जदयू ने विधानसभा चुनाव में भाजपा से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया था. साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू को राज्य की 243 सीटों में से 71 सीटें हासिल हुई थीं जबकि बीजेपी को 53 और लोजपा एवं रालोसपा को दो-दो सीटें मिली थीं. जदयू उस वक्त राजद एवं कांग्रेस का सहयोगी था, लेकिन पिछले साल वह इन दोनों पार्टियों से नाता तोड़कर राजग में शामिल हो गया और राज्य में बीजेपी के साथ सरकार बना ली.असली पेंच यहीं है क्‍योंकि बीजेपी चाहती है कि 2014 के लोकसभा चुनावों के नतीजों के आधार पर सीट-शेयरिंग फॉर्मूला तैयार हो. उसमें राज्‍य की 40 सीटों में से बीजेपी को 22, सहयोगी लोजपा को छह और रालोसपा को 3 सीटें मिली थीं. इस तरह एनडीए ने 31 सीटें जीती थीं. उस दौरान जदयू ने एनडीए के खिलाफ चुनाव लड़ा था और पार्टी को महज दो सीटों से संतोष करना पड़ा था.इसी कारण सीट को बंटवारे के मसले पर पेंच फंस गया है. नतीजतन बीजेपी और उसकी दो सहयोगी पार्टियों लोजपा और रालोसपा की ओर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुआई वाले जदयू की मांग पर सहमति के आसार न के बराबर हैं. लेकिन जदयू नेताओं का दावा है कि 2015 का विधानसभा चुनाव राज्य में सबसे ताजा शक्ति परीक्षण था और आम चुनावों के लिए सीट बंटवारे में इसके नतीजों की अनदेखी नहीं की जा सकती. बदल रहे समीकरण बहरहाल 2014 में भाजपा की जोरदार जीत ने समीकरण बदल दिए हैं और एनडीए में अन्य पार्टियों के प्रवेश का मतलब है कि पुराने समीकरण अब प्रासंगिक नहीं रह गए. सीट बंटवारे को लेकर राजग के साझेदारों में अभी बातचीत शुरू नहीं हुई है, लेकिन जदयू ने मोलभाव शुरू कर दिया है. जदयू के नेताओं ने हाल में आयोजित योग दिवस समारोहों में हिस्सा नहीं लिया. पार्टी ने कहा कि वह इस साल के अंत में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में अपने उम्मीदवार उतारेगी. जदयू ने अगले महीने दिल्ली में अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई है जिसमें कई मुद्दों पर पार्टी अपना रुख साफ करेगी. शह-मात का खेल बीजेपी के एक नेता ने जदयू की दलील को ''अवास्तविक'' करार देते हुए कहा कि चुनावों से पहले विभिन्न पार्टियां ऐसी ''चाल'' चलती हैं. उन्होंने दावा किया कि 2015 में लालू प्रसाद की अगुआई वाले राजद से गठबंधन के कारण जदयू को फायदा हुआ था और नीतीश की पार्टी की असल हैसियत का अंदाजा 2014 के लोकसभा चुनाव से लगाया जा सकता है, जब वह अकेले दम पर लड़ी थी और उसे 40 में से महज दो सीटों पर जीत मिली थी. ज्यादातर सीटों पर उसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. जदयू 2013 तक भाजपा का सहयोगी था. उस वक्त वह राज्य में निर्विवाद रूप से वरिष्ठ गठबंधन साझेदार था और लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों में वह हमेशा ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ता था. लोकसभा चुनावों में जदयू 25 और भाजपा 15 सीटों पर चुनाव लड़ती थी. 'बीजेपी चाहे तो सभी 40 सीटों पर चुनाव लड़े' इस बीच बिहार बीजेपी के नेता ने पिछले दिनों बयान दिया था कि पार्टी 2014 की तर्ज पर इस बार भी अपनी जीती हुई सभी 22 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. उस पर पलटवार करते हुए जेडीयू प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा कि बिहार बीजेपी के नेता जो बयानों से मीडिया में छाना चाहते हैं, उन्हें नियंत्रण में रखने की आवश्‍यकता है. उन्होंने कहा कि 2014 और 2019 में काफी अंतर है. संजय सिंह ने कहा कि बीजेपी यह समझती है कि वह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बिना बिहार में जीत नहीं सकती है. साथ ही उन्होंने कहा कि अगर बीजेपी को सहयोगी की आवश्यकता नहीं तो वह सभी 40 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र है.
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