उत्तर प्रदेश में कैराना और नूरपुर उपचुनाव के गुरुवार को परिणाम आए. दोनों सीटों पर बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा है. इससे पहले गोरखपुर और फूलपुर में भी पार्टी को मात खानी पड़ी थी. उपचुनाव में बीजेपी को एक के बाद एक मिल रही हार यूपी की योगी सरकार और खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बहुत बड़ा झटका है.
जिस यूपी में 2014 के लोकसभा और एक साल पहले 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में बंपर सीटें मिली थी, अब उसी राज्य में बीजेपी मंझधार में फंसी हुई नजर आ रही है.
बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव और पिछले साल 2017 के यूपी विधानसभा बीजेपी को जो प्रचंड वोट मिला था अब उसमें सेंध लगनी शुरू हो गई है. जबकि 2017 के चुनाव में बीजेपी ने यूपी में 14 साल के सत्ता के वनवास को खत्म किया था और 325 सीटों के साथ ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी.बीजेपी के लिए ये करिश्मा पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे की वजह से हुआ था. विधानसभा चुनाव में बीजेपी की ओर से किसी को सीएम पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया गया था, लेकिन नतीजे आने के बाद पीएम मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने सत्ता की कमान योगी आदित्यनाथ को सौंपी.
जातीय संतुलन बिखरा
बीजेपी जिस जातीय संतुलन को साधकर सत्ता में आई थी, योगी आदित्यनाथ उसे साथ लेकर चलने में सफल नहीं हो सके हैं. बीजेपी की जीत में सबसे अहम भूमिका ओबीसी और दलित समुदाय की थी. लेकिन शासन और सत्ता में उन्हें उचित भागीदारी नहीं दी गई. इसके अलावा योगी राज में राजपूत और दलितों के बीच सहारनपुर जैसी हिंसक घटनाएं भी सामने आईं. इसके अलावा सीएम पर एक जाति विशेष को ही बढ़ावा देने का भी आरोप लगे. यही वजह है कि योगी सरकार के कई मंत्रियों ने इस पर सवाल भी खड़े किए हैं.जबकि विपक्ष ने इसका फायदा उठाते हुए ओबीसी और दलित समुदाय को साधने का प्रयास किया, जिसमें वे कामयाब होते दिख रहे हैं.
विकास का इंजन फेल
मोदी यूपी के वाराणसी से सांसद हैं. ऐसे में अवाम को उम्मीद थी कि जिस प्रकार गुजरात में विकास करके दिखाया है, उसी तर्ज पर यूपी में भी विकास होगा. यूपी के पीएम मोदी ने विकास का इंजन बनाने का ऐलान किया था. उन्होंने कहा था कि 2019 से पहले सूबे को देश में विकास के इंजन के तौर पर स्थापित करेंगे.
प्रदेश में बीजेपी सरकार बने एक साल से ज्यादा वक्त गुजर चुका है, लेकिन सरकार के पास विकास के नाम पर गिनाने के लिए कुछ खास नहीं हैं. सपा प्रमुख अखिलेश यादव कहते हैं, ' यूपी का विकास योगी से नहीं होगा, वो सिर्फ पूजा पाठ अच्छा कर सकते हैं.'
लखनऊ-गोरखपुर का सफर
योगी आदित्यनाथ सीएम के साथ-साथ गोरखनाथ मठ के महंत भी हैं. पांच बार वे गोरखपुर लोकसभा से सांसद रहे हैं. यही वजह है कि वे अपने आपको गोरखपुर से बाहर नहीं निकाल पा रहे हैं. महीने में दो से तीन दौरा उनका सिर्फ गोरखपुर का हो रहा है. इसके चलते विपक्ष लगातार सवाल उठा रहा है, कि वे हर सप्ताह तो गोरखनाथ मंदिर में पूजा करने जा रहे हैं.
हिंदुत्व का एजेंडा पीछे
योगी आदित्यनाथ कई वर्षों तक खुद को एक कट्टर हिंदुत्ववादी राजनीति चेहरे थे. सीएम बनने के बाद योगी ने नया अवतार लिया, तो उनका नारा था, 'किसी से भेदभाव नहीं और किसी की मनुहार नहीं.' लेकिन अब वे अपनी छवि से विपरीत नजर आ रहे हैं, जो बीजेपी के कट्टर समर्थकों को रास नहीं आ रहा है. योगी ताजमहल के बाहर झाड़ू लगा रहे हैं, मस्जिद में जाने की बात करते हैं और मदरसों को मॉर्डन बनाने में लगे हैं. योगी की बदली छवि से हिंदुत्व का एजेंडा पीछे छूटता जा रहा है.
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क्या योगी को यूपी का CM बनाना PM मोदी की सबसे बड़ी राजनीतिक भूल थी?-kairana-yogi-adityanath-up-cm
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