नई
दिल्ली :
बुराड़ी में एक ही परिवार के 11 लोगों के एक साथ सूइसाइड का मामला सुलझने
का नाम हीं ले रहा है। पुलिस की तफ्तीश इस ओर इशारा कर रही है कि ललित 11
लोगों के सूइसाइड का मास्टर माइंड था। इसके साथ ही पुलिस का दावा है कि
ललित अक्सर यह कहता था कि उसे अपने पिता की आत्मा दिखाई देती है। वह उनसे
बात करता है, लेकिन क्या सचमुच ऐसा हो सकता है? डॉक्टर इस बात को बिल्कुल
नहीं मानते। उनका कहना है कि ऐसी बातें वही लोग करते हैं, जो मनोरोगी होते
हैं। हालांकि ललित की इस बात को हम 'लगे रहो मुन्ना भाई' और 'भूल-भुलैया'
जैसी फिल्मों से भी जोड़कर देख सकते हैं।
फिल्म 'लगे रहो मुन्ना भाई' में आपने देखा होगा कि संजय दत्त को मुश्किल की
घड़ी में अक्सर महात्मा गांधी नजर आते थे और वह उनसे बात करते थे। वहीं
'भूल-भुलैया' में जब भी विद्या बालन को किसी आत्मा का अहसास होता था, तो
उसकी आवाज पूरी तरह से बदल जाती थी, लेकिन यह सब चीजें केवल लोगों के
एंटरटेनमेंट के लिए थीं। सचाई से इसका कोई लेना-देना नहीं था। ठीक इसी तरह
ललित को भी अपने पिता दिखाई देते थे। वह उनसे बातें करता था। ललित की इस
स्थिति को हलूसनेशन और डेल्यूजन कहा जा सकता है।
इस बारे में इंस्टीट्यूट ऑफ ह्रूमन बिहेवियर ऐंड अलाइड साइंसेज (इहबास) के
डिपार्टमेंट ऑफ साइकेट्री सोशल वर्क के कंसल्टेंट डॉ. हिमांशु सिंह का कहना
है कि ललित और उसके पिता के संबंध के बारे में जो कहा जा रहा है, उसे
हलूसनेशन और डेल्यूजन में रखा जा सकता है। हलूसनेशन एक तरह का गंभीर अहसास
है और इसके तीन प्रकार होते हैं। ऑडिटरी, विजुअल और टैक्टाइल। ऑडिटरी में
इंसान को कई तरह की आवाजें सुनाई देती हैं। तो वहीं विजुअल में उसे वह चीज
दिखाई देती है, जो वास्तव में है ही नहीं। ललित के साथ यही दो चीजें थी।
उसे पिता दिखाई भी देते थे और उनकी आवाजें भी सुनाई देती थीं। यही कहानी
'लगे रहो मुन्ना भाई' में संजय दत्त के साथ भी दिखाई गई है।
इसके अलावा ललित डेल्यूजन का भी शिकार था। यह एक तरीके का विचारों का रोग
है। इसमें व्यक्ति के विचार एक सीमा तक बाध्य हो जाते हैं और वह हमेशा एक
ही चीज के बारे में सोचने लगता है और धीरे-धीरे वह चीज उस पर हावी हो जाती
है।
'भूल-भुलैया' में डिसोसिएटिव डिस्ऑर्डर
डॉ. हिमांशु सिंह का कहना है कि ललित को कहीं न कहीं डिसोसिएटिव डिस्ऑर्डर
भी हो सकता है। जैसा कि फिल्म 'भूल-भुलैया' फिल्म में दिखाया गया है। इसमें
कन्वर्जन रिएक्शन होता है, जिसकी वजह से व्यक्ति की आवाज बदल जाती है। वह
उसी की आवाज अपना लेता है, जो उसे दिखाई देता है या सुनाई देता है। जिस तरह
से पूरा परिवार ललित की बातों पर यकीन करता था और उसे ही मानता था, तो यह
कहा जा सकता है कि वह कभी-कभी अपने पिता की आवाज धारण कर लेता होगा और
परिवार यही सोचता होगा कि उस पर सचमुच पिता का वास है। हालांकि यह एक
मनोरोग है। वास्तव में ऐसा नहीं होता है।
कमांड भी देते हैं
ऑडिटरी और विजुअल के तहत व्यक्ति को इंसान दिखाई देता है या उसकी आवाज
सुनाई देती है। वह कमांड भी देता है और व्यक्ति वही करने को मजबूर हो जाता
है। जैसे की 'लगे रहो मुन्ना भाई' में महात्मा गांधी संजय दत्त को जो कहते
थे, वह वैसा ही करता था और उसे लगता था कि गांधीजी मुझे जो करने के लिए कह
रहे हैं, उससे सबकुछ सही हो रहा है। ललित के साथ भी यही चीज जुड़ी हुई है।
आते हैं ऐसे कई पेशंट
उनका कहना है कि यह एक तरह की बीमारी है। इहबास में इस तरह के कई पेशंट भी
आते हैं। उनकी एक पेशंट हैं, जिन्हें उनका पति आज से 20 साल पहले उसे छोड़
गया था, लेकिन आज भी जब कोई भी उस लेडी के सामने आता है, तो वह उसे अपना
पति मानती है। ऐसा भी कहा जा सकता है कि उसे हर आदमी में अपना पति नजर आता
है।
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