खतना प्रथा के विरोध में दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है। सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि महिला की जिंदगी केवल पति और बच्चों के लिए नहीं है उसकी और भी इच्छाएं हो सकती हैं। पति के प्रति समर्पण ही महिला का कर्तव्य नहीं है। समाज में ऐसी रूढ़ियों का होना व्यक्तिगत गोपनीयता का उल्लंघन है।
सर्वोच्च न्यायालय ने बोहरा मुस्लिम समुदाय की नाबालिग लड़कियों के खतना करने पर गंभीर सवाल उठाए हैं। याचिका में मांग कि गई है कि खतना को गंभीर अपराधों की श्रेणी में शामिल किया जाए। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपालन ने भी इस याचिका का समर्थन किया है। मामले पर अगली सुनवाई मंगलवार को भी होगी।
उल्लेखनीय है कि पिछली सुनवाई में कोर्ट ने इस प्रथा को बेहद गलत बताते हुए कहा था कि यह धर्म के नाम पर महिलाओं के सम्मान के साथ खिलवाड़ है। कोई भी किसी के निजी अंगों को छू नहीं सकता और न ही उसे काट सकता है।
इस प्रथा का केंद्र सरकार ने भी साफ तौर पर विरोध किया और इसे खत्म करने के लिए अपना पूरा समर्थन देने की बात कही थी। साथ ही केंद्र ने ये भी कहा था कि इस मामले में दंड विधान में सात साल तक की सजा का प्रावधान है।
बता दें कि यह प्रथा बोहरा समाज में आम रिवाज के रूप में प्रचलित है। कोर्ट ने इस प्रथा पर रोक लगाने वाली याचिकाओं पर तेलंगाना और केरल सरकार को नोटिस भी जारी किया था।
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खतना प्रथा पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, कहा- 'महिलाएं केवल शादी और बच्चों के लिए नहीं'- circumcision-custom
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