मॉब लिंचिंग का खौफ, गायों को दान कर भैंस पालेंगे अलवर के मुसलमान- fear-of-mob-leaching

अलवर : राजस्‍थान के अलवर जिले में रहने वाले मोहम्‍मद इस्‍लाम ने अब गाय नहीं पालने का फैसला किया है। इस्‍लाम ने यह फैसला उस समय लिया जब उन्‍हें अपनी गाय को पशुओं के अस्‍पताल ले जाने के लिए एक भी लॉरी ड्राइवर नहीं मिला। गोरक्षकों के डर से हरेक ड्राइवर ने जाने से मना कर दिया। अलवर ही वह जगह है जहां पिछले दिनों गो-तस्‍करी के शक में रकबर खान और पहलू खान की पीट-पीटकर हत्‍या कर दी गई थी। अलवर के पीपरोली गांव की एक दुकान पर बैठे इस्‍लाम शनिवार को रकबर खान की मॉब लिंचिंग की खबर पढ़ने के बाद आशंकाओं से घिर गए। एक गहरी सांस लेते हुए उन्‍होंने कहा, 'एक और, कौन जानता है कि यह कहां जाकर बंद होगा।' उन्‍होंने कहा, 'एक समय की बात है, मेरी एक गाय 24 लीटर दूध देती थी। लेकिन लोगों की निगाहें चढ़ने लगीं तो एक दिन मैंने उसे गौशाला को दान करने का मन बना लिया।' इस्‍लाम ने कहा कि उनकी तरह से कई मियो किसानों ने भैंस खरीदना शुरू कर दिया है। गाय की तुलना में भैंस पालना ज्‍यादा सुरक्षित है। उन्‍होंने बताया कि गाय की तुलना में भैंस काफी मंहगी है और कई किसानों के पास इतना पैसा नहीं है कि वे भैंस खरीद सकें। इस तरह के डर के शिकार पिछली कई पी‍ढ़‍ियों से गाय पालने वाले अकेले इस्‍लाम नहीं हैं।' इलाके में रहने वाले शहाबुद्दीन खान कहते हैं, 'हमने गाय रखना बंद कर दिया है। ये लोग (गोरक्षक) गायों को रखना जानते नहीं हैं और हमें गो-तस्‍कर बोलते हैं।' उन्‍होंने कहा कि अब गाय के साथ किसी मियो परिवार का दिखना बहुत कम हो गया है। गांववालों ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्‍स ऑफ इंडिया से बातचीत में कहा कि कई लोग गोदान करना चाहते हैं लेकिन कोई लेने वाला नहीं मिला। इस बारे में मोहम्‍मद इस्‍लाम ने कहा कि हरेक अपनी जान का डर सता रहा है और वे गोदान भी स्‍वीकार नहीं कर रहे हैं। नारंगी कहते हैं कि पिछले कई वर्षों से रामगढ़ में मियो और हिंदू परिवार एक साथ रहते आए हैं। हिंदू उनके यहां शादियों में आते हैं और निकाह के बाद दूल्‍हा और दुल्‍हन को आशीर्वाद देते हैं। मियो परिवार भी हिंदुओं के यहां उसी शिद्दत के साथ जाते रहे हैं। लेकिन पिछले 4 साल से स्थिति बहुत खराब हो गई है। कई स्‍थानीय गुंडे उन्‍हें जानबूझकर गोमांस खाने वाला प्रचारित करते हैं।
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