क्या चुनावी जुमला हैं यूपी में निवेश के बड़े ऐलान, अलग तस्वीर दिखा रहा है GDP अनुमान- amid-up-investment-pledge-gdp-number

इसी साल फरवरी में यूपी इंवेस्टर समिट के दौरान देश के 80 कारोबारियों ने 1000 से ज्यादा एमओयू किए और वादा किया कि राज्य में वह 4 लाख करोड़ का निवेश करेंगे. अब जुलाई में इनमें से कुछ कारोबारियों ने एक बार फिऱ मंशा जाहिर की है कि वह राज्य में 60,000 करोड़ लेकर आ रहे हैं. सवाल उठ रहे हैं कि यदि राज्य निवेश के लिए इतना ही उपयुक्त है तो आखिर देश का वार्षिक जीडीपी आंकड़ा क्यों इस निवेश को नहीं दर्शा रहा? कहीं ऐसा तो नहीं कि निवेश के नाम पर चुनाव में माहौल बनाने भर के लिए ये कवायद की जा रही है? उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार ने ‘ग्राउंड ब्रेकिंग’ कार्यक्रम करते हुए प्रधानमंत्री व देश के करीब सौ बड़े उद्योगपतियों को 6 महीने के अंदर दूसरी बार एक मंच पर खड़ा कर दिया. जहां फरवरी में प्रधानमंत्री समेत केन्द्र सरकार के आला मंत्रियों और राज्य से मुख्यमंत्री समेत उनकी पूरी कैबिनेट की उपस्थिति में इन उद्योगपतियों ने राज्य सरकार के साथ 1,045 मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिग पर हस्ताक्षर किए. आज 6 महीने बीतने के बाद एक बार फिर ये उद्योगपति उस मंच पर पहुंचकर 60,000 करोड़ रुपये के निवेश की आधारशिला रख रहे हैं. सवाल ये कि यदि बीते एक साल के दौरान उत्तर प्रदेश समेत कई अन्य राज्यों में निजी क्षेत्र के निवेश की स्थिति में सुधार की ऐसी संभावना दिखी है तो क्यों देश के जीडीपी आकलन में निजी क्षेत्र के निवेश के आकलन को नहीं सुधारा गया है? क्या उद्योपतियों के ये वादे महज माहौल बनाने के लिए हैं और फिलहाल देश की वास्तविक आर्थिक स्थिति निजी क्षेत्र के बड़े निवेश के लिए तैयार नहीं है? गौरतलब है कि एनडीए सरकार ने 2014 में मेक इन इंडिया कार्यक्रम की शुरुआत देश के मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ाने के लिए की जिससे देश की जीडीपी ग्रोथ रेट को डबल डिजिट तक पहुंचाया जा सके. इसी क्रम में केन्द्र सरकार ने एक के बाद एक आर्थिक सुधार के कदम उठाए जिनमें इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, एफडीआई सुधार, ईज ऑफ डूईंग बिजनेस समेत इंसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड शामिल हैं. इसके साथ ही केन्द्र सरकार ने पूरे देश को एकीकृत मार्केट में तब्दील करने के लिए जुलाई 2017 में जीएसटी लागू किया जिससे निजी क्षेत्र से निवेश को बढ़ाया जा सके. इन कदमों के बावजूद हाल में आए जीडीपी आंकड़ों पर लगभग सभी आर्थिक जानकारों का दावा रहा कि केन्द्र सरकार की इस फ्लैगशिप योजना को विफल करने में सबसे अहम कारण निजी क्षेत्र की सक्रियता में कमी है. हाल ही में रेटिंग एजेंसी क्राइसिल ने दावा किया कि चालू वित्त वर्ष के दौरान भारत की जीडीपी 7.5 फीसदी से बढ़ सकती है. इस रफ्तार के लिए क्राइसिल ने देश में खपत में हो रहे इजाफे से उम्मीद बांधी हालांकि कच्चे तेल की कीमत में हो रहा इजाफा उसके लिए अर्थव्यवस्था के सामने सबसे बड़ी चुनौती है.
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