शिया वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, मुसलमानों के हिस्से की जमीन राम मंदिर के लिए दान की जाए- shia-waqf-board

नई दिल्ली केंद्रीय शिया वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वास्तव में अयोध्या में विवादित भूमि में मुसलमानों के शेयर का असल दावेदार वही है क्योंकि बाबरी मस्जिद मीर बाकी ने बनवाई थी, जो एक शिया थे। शुक्रवार को बोर्ड ने कहा कि वह इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा मुसलमानों को दी गई एक तिहाई भूमि को राम मंदिर बनाने के लिए हिंदुओं को दान करना चाहता है। शिया वक्फ बोर्ड की ओर से वरिष्ठ वकील एस. एन. सिंह ने कहा, 'इस महान देश की एकता, अखंडता, शांति और सद्भाव के लिए शिया वक्फ बोर्ड अयोध्या की विवादित भूमि के मुसलमानों के शेयर को राम मंदिर निर्माण के लिए दान करने के पक्ष में है।' आपको बता दें कि शिया वक्फ बोर्ड पहले भी राम मंदिर के लिए मुसलमानों के हिस्से मिली जमीन को दान करने की बात कह चुका है। उधर, मुसलमानों और सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से पेश सीनियर ऐडवोकेट राजीव धवन ने कहा, 'बामियान बुद्ध की मूर्तियों को मुस्लिम तालिबान ने नष्ट किया था और बाबरी मस्जिद को हिंदू तालिबान की ओर से ध्वस्त किया गया।' शिया वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि वे शांतिपूर्ण तरीके से विवाद को सुलझाना चाहते हैं। बोर्ड ने साफ कहा कि बाबरी मस्जिद का संरक्षक एक शिया था और इसलिए सुन्नी वक्फ बोर्ड या कोई और भारत में मुसलमानों के प्रतिनिधि नहीं हैं। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर भूमि विवाद पर जारी सुनवाई में मुस्लिम पक्षों की दलीलें चल रही हैं। इससे पहले चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस ए नजीर की विशेष पीठ ने 17 मई को हिंदू संगठनों की तरफ से पेश दलीलें सुनी थीं, जिनमें उन्होंने मुस्लिमों के इस अनुरोध का विरोध किया था कि मस्जिद को इस्लाम के अनुयायियों द्वारा अदा की जाने वाली नमाज का आंतरिक भाग नहीं मानने वाले 1994 के फैसले को बड़ी पीठ के पास भेजा जाए। अयोध्या मामले में मूल याचिकाकर्ताओं में शामिल और निधन के बाद कानूनी उत्तराधिकारियों द्वारा प्रतिनिधित्व पानेवाले एम सिद्दीकी ने एम इस्माइल फारूकी के मामले में 1994 में आए फैसले के कुछ निष्कर्षों पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने पीठ से कहा था कि अयोध्या की जमीन से जुड़े भूमि अधिग्रहण मामले में की गई टिप्पणियों का, मालिकाना हक विवाद के निष्कर्ष पर प्रभाव पड़ा है। हालांकि हिंदू संगठनों का कहना है कि इस मामले को सुलझाया जा चुका है और इसे फिर से नहीं खोला जा सकता है। शीर्ष अदालत की विशेष पीठ चार दीवानी वादों पर उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर विचार कर रही है। यह है पूरा मामला राम मंदिर के लिए होनेवाले आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था। इस मामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दीवानी मुकदमा भी चला। टाइटल विवाद से संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को अयोध्या टाइटल विवाद में फैसला दिया था। फैसले में कहा गया था कि विवादित लैंड को 3 बराबर हिस्सों में बांटा जाए। जिस जगह रामलला की मूर्ति है उसे रामलला विराजमान को दिया जाए। सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए जबकि बाकी का एक तिहाई लैंड सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए। मुस्लिम पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में 1994 के इस्माइल फारुकी जजमेंट का जिक्र करते हुए कहा कि फैसले में कहा गया है कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है। ऐसे में इस फैसले को फिर से परीक्षण करना चाहिए। मुस्लिम पक्षकारों का कहना है कि इस फैसले ने मुस्लिम पक्ष को कमजोर किया है इसलिए इसे पहले संवैधानिक पीठ को भेजा जाना चाहिए।
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