हिंदुत्व विरोधी है समलैंगिकता - सुब्रमण्यम स्वामी, सुप्रीम कोर्ट में आज से सुनवाई-supreme-court-to-hear-petitions-challenging-

नई दिल्ली. समलैंगिकता को अपराध बनाने वाली आईपीसी की धारा 377 खत्म करने के लिए दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट आज से सुनवाई करेगा. इससे पहले केंद्र सरकार ने कहा था कि इस विषय पर उसे हलफनामा दायर करने के लिए और अधिक समय चाहिए, इसलिए सुनवाई को चार सप्ताह टाल दिया जाए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस अनुरोध को ठुकरा दिया. इस बीच भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने समलैंगिकता को 'हिंदुत्व विरोधी' बताते हुए ऐसे रुचि रखने वाले लोगों का इलाज कराने की बात की है. उन्होंने कहा, 'ये सामान्य चीज नहीं है. हम इसका जश्न नहीं मना सकते हैं. ये हिंदुत्व के खिलाफ है. हमें मेडिकल रिसर्च में धन लगाकर पता करना चाहिए कि क्या इसका इलाज हो सकता है.' उन्होंने आगे कहा, 'सरकार को इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि इस बारे में फैसला देने के लिए सात या नौ जब की पीठ हो.' फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ मामले की सुनवाई कर रही है. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंग्टन आर नरीमन, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड और जस्टिस इंदू मल्होत्रा पीठ में शामिल हैं. इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि आपसी सहमति से बने समलैंगिक संबंधों को अपराध नहीं माना जाएगा. हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट इस फैसले को पलटते हुए समलैंगिक संबंधों को आईपीसी की धारा 377 के तरह अवैध घोषित कर दिया. इस बारे में एक याचिका हमसफर ट्रस्ट की ओर दायर की गई है जबकि दूसरी याचिका आरिफ जफर की है. याचिका में कहा गया है कि निजता के अधिकार के फैसले के बाद अब धारा 377 प्रभावी नहीं रह गई है. इसके अलावा हदिया मामले में कोर्ट ने कहा है कि शादीशुदा या गैर शादीशुदा लोगों को अपना पार्टनर चुनने का अधिकार है. इसलिए धारा 377 को रद्द कर देना चाहिए. इस समय धारा 377 के तहत अगर कोई स्‍त्री-पुरुष समलैंगिंक यौन संबंध बनाते हैं तो 10 साल की सजा व जुर्माने का प्रावधान है. धारा-377 एक गैरजमानती अपराध है. ये कानून अंग्रेजों के जमाने में बना था. इसे रद्द करने वाले इस बात की दलील भी देते हैं कि ब्रिटेन में ये कानून खत्म कर दिया गया है, तो फिर भारत में ये कानून अभी तक क्यों है.
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