एससी-एसटी ऐक्ट के विरोध का बीजेपी पर असर नहीं, पार्टी ने कहा- सवर्णों के पास विकल्प नहीं

नई दिल्ली : एससी-एसटी ऐक्ट में संशोधन को लेकर चुनावी राज्यों में सवर्णों के विरोध को लेकर भले ही बीजेपी चिंतित है, लेकिन पार्टी नेताओं को यह यकीन है कि पूरे मसले को संभाल लिया जाएगा। बीजेपी नेताओं ने विरोध कर रहे गुटों को मनाने का प्लान तैयार किया है और भरोसा जताया कि कुछ सप्ताह के भीतर इस मसले को हल कर लिया जाएगा। असल में बीजेपी के रणनीतिकारों का मानना है कि सवर्णों के पास बहुत ज्यादा विकल्प नहीं हैं। मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज और राजस्थान में वसुंधरा राजे को हाल ही में अपनी यात्राओं के दौरान सवर्ण संगठनों के विरोध का सामना करना पड़ा था। बीजेपी नेताओं ने शुरुआत में इस आंदोलन को कांग्रेस प्रायोजित करार दिया था। यही नहीं बीजेपी का कहना था कि सरकार ने इस ऐक्ट में कोई बदलाव नहीं किया है बल्कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से किए गए 'डाइल्यूशन' को खत्म किया है। मध्य प्रदेश और राजस्थान ही नहीं बल्कि कई अन्य हिंदी भाषी राज्यों में सवर्णों के एक वर्ग ने वोटिंग का बहिष्कार करने या फिर नोटा दबाने की बात कही है। हालांकि सवर्णों पर बहुत ज्यादा विकल्प न होने का बात कहते हुए एक मंत्री ने कहा, 'सवर्ण जातियों के मतदाताओं के पास हमें वोट करने के अलावा बहुत ज्यादा विकल्प नहीं हैं। यह अच्छा है कि वह अभी गुस्सा निकाल रहे हैं। लोकसभा चुनाव आने तक यह गुस्सा समाप्त हो जाएगा।' उन्होंने कहा, 'हम उन्हें यह समझाने का प्रयास करेंगे कि एससी-एसटी ऐक्ट को पहले की तरह ही किया गया है बल्कि इसे कड़ा नहीं किया गया है। किसी भी कानून का बेजा इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन उसके लिए भी प्रावधान हैं।' 2019 के लिए दलितों और ओबीसी पर बीजेपी को भरोसा यही नहीं पार्टी के नेताओं का कहना है कि सवर्ण जातियों का आंदोलन दलितों को बीजेपी के पक्ष में ला सकता है। ऐसे में बीजेपी दलित जातियों को लुभाने के अपने अभियान पर आगे बढ़ेगी। पार्टी की इसी रणनीति के तहत अमित शाह अकसर दलितों के घरों का दौरा करते हैं और उनके साथ भोजन करते हैं। बीजेपी को लगता है कि 2019 में ओबीसी और एससी वोटरों के जरिए वह 2019 में भी वापसी कर सकेगी। इसके अलावा आंबेडकर को अपने आइकॉन के तौर पर स्थापित करने का भी प्रयास चल रहा है ताकि दलित मतदाताओं को लुभाया जा सके।
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