संदेश भेजने के लिए इंटरनेट के बजाय 'Darknet' का इस्तेमाल करते थे नक्सल समर्थक!

मुंबई: अर्बन नक्सल मामले में महाराष्ट्र पुलिस ये पहले ही बता चुकी है कि नक्सलियों में आपसी कम्युनिकेशन के लिए कंप्यूटर पर टाइप की गई चिट्ठियों को पासवर्ड प्रोटेक्टेड पेन ड्राइव में सेव कर उसे कूरियर से भेजा जाता था. हालांकि अब पुलिस सूत्रों ने ताज़ा खुलासा ये किया है कि इस मोडस ऑपरेंडी (कार्यप्रणाली) के अलावा कुछ कॉन्फिडेंटिअल अर्जेंट बातों के लिए माओइस्ट कुरियर के बजाय ईमेल का भी इस्तेमाल करते थे. ये ईमेल ट्रेस न हो सके और जांच एजेंसियों की आंखों में धूल झोंकी जा सके और इसलिए इसलिए वे इंटरनेट के बजाय डार्कनेट का इस्तेमाल करते थे. पुलिस सूत्रों का दावा है कि गिरफ्तार कई आरोपियों ने ईमेल भेजने के लिए डार्कनेट की एक वेबसाइट "rise.in" का इस्तेमाल किया. इस ईमेल के ज़रिये आरोपियों ने अपनी साजिश, टारगेट, और फंडिंग से जुड़े कई अहम् कम्युनिकेशन किया. दरअसल डार्कनेट कंप्यूटर जगत का एक गोपनीय हिस्सा है जहां पहचान छिपाकर गैरकानूनी मंसूबों को अंजाम दिया जा सकता है. इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले शख्स को उसके कंप्यूटर के आईपी अड्रेस की मदद से ट्रेस किया जा सकता है लेकिन डार्कनेट इस्तेमाल करनेवाले शख्स तक पहुंच पाना मुश्किल होता है. क्या है डार्कनेट - आप जिस इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं वो कंप्यूटर की दुनिया का सिर्फ 4 फीसदी ही है जबकि 96 फ़ीसदी हिस्सा डीप वेब या डार्क नेट का है. दरअसल इंटरनेट की दुनिया तीन परतों में बंटी हुई है. पहली परत - जो हम चलाते हैं उसे सरफेस वेब कहा जाता है, इसे कोई भी एक्सेस कर सकता है. लेकिन इससे नीचे भी इंटरनेट की दो और परते हैं जो डीप और डार्क वेब कहलाती हैं. डीप वेब यह इंटरनेट की दूसरी परत है और इससे भी नीचे एक और खतरनाक परत है जो डार्क वेब कहलाती है. डार्कनेट को आप आप गूगल क्रोम या फिर मोजिला के जरिए एक्सेस नहीं कर सकते इसलिए इसे इंटरनेट का अदृश्य लोक भी कहा जाता है. डीप और डार्क वेब पर जाने के लिए यूजर्स टोर सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हैं. यह सॉफ्टवेयर आईपी एड्रेस को हाइड कर देता है और यूजर की पहचान को गोपनीय रखता है. 2015 में नेचर मैग्जीन में एक शोध प्रकाशित हुआ था जिसमें कहा गया था कि गूगल पर सिर्फ 1 फीसदी ही इंफोर्मेशन मौजूद है. इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि डीप और डार्क वेब क्या चीज़ है. यहां आपको वो सारी चीज़ें मिल सकती हैं जो गूगल कभी नहीं बताता. sciencemag.org के मुताबिक डीप और डार्क वेब पर 25 हज़ार से ज्यादा लिंक्स और 7 हज़ार से ज्यादा साइट्स मौजूद हैं. ये ऐसी साइट्स हैं जो आपको इंटरनेट पर नहीं मिलेंगी.रिपोर्ट्स के मुताबिक हैकर्स यहां वे सारी चीज़ें बेचते हैं जो खुलेआम नहीं बेची जा सकती हैं. यहां डेबिट कार्ड के पासवर्ड से लेकर कई हजार क्रेडिट कार्ड की इंफोर्मेशन समेत कई ऐसी चीज़ों की बोली लगती है जो आपको हैरान कर देंगी. कहा जाता है यहाँ इंसानी मांस तक बिकता है और सुपारी भी ली जाती है. अगर आप रेडिट पर इस दुनिया के किस्से खोजेंगे तो आपको ऐसा बहुत कुछ मिल जाएगा जो हैरान करने वाला है.
Share on Google Plus

0 comments:

Post a Comment