सुन्नी वक्फ बोर्ड दावा छोड़ने को तैयार- Loktantra Ki Buniyad

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट को बुधवार को मध्यस्थता पैनल ने अयोध्या में विवादित भूमि पर मुस्लिम पक्ष के दावा छोड़ने की जानकारी दी। पैनल का कहना है, 2.77 एकड़ की विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद का समाधान हो सकता है। बुधवार को मुस्लिम पक्ष के कुछ पार्टियों ने भूमि पर राम मंदिर निर्माण के लिए अपना दावा छोड़ने को तैयार है, लेकिन उनकी कुछ शर्तें हैं। समझौते के लिए क्या शर्तें हैं और समझौते हुआ तो कैसी होंगी परिस्थितियां समझें यहां... सुन्नी वक्फ बोर्ड सेटलमेंट के लिए तैयार टाइम्स ऑफ इंडिया को सूत्रों ने बताया, जिन पार्टियों ने समझौते के लिए सहमति दी है वह हैं- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निरवानी अखाड़ा (निर्मोही अनि का एक प्रतिनिधि, इस संगठन के कुल 8 निर्मोही अखाड़ा हैं), हिंदू महासभा और और राम जन्मस्थान पुनरुद्धार समिति। इस सेटलमेंट में राम मंदिर को उचित स्थान देने के बदले कुछ शर्तों का भी जिक्र किया गया है। सेटलमेंट के अनुसार, 1991 के कानून का सख्ती से पालन किया जाए जिसके तहत 15 अगस्त 1947 से जारी व्यवस्था के अनुसार यह जगह सबके लिए प्रार्थना स्थल के तौर पर प्रयोग होती थी। इसके साथ ही अयोध्या में सभी मस्जिदों की मरम्मत और खास तौर पर दूसरे स्थान पर वक्फ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिए जगह दी जाए। मुख्य पार्टियां किसी समझौते के लिए सहमत नहीं विवादित भूमि पर समझौते से 2 प्रमुख पार्टियों ने अपनी दूरी बना ली है। वीएचपी समर्थित रामजन्मभूमि न्यास और राम लला और जमीयत उलेमा ने समझौते से दूरी बनाई है। सूत्रों का कहना है कि मुस्लिम पार्टियों ने अपना दावा छोड़ दिया है और राम मंदिर निर्माण के लिए सहमति दे दी है। न्यास के लिए यह समझौता हर तरह से फायदे का ही है। सुप्रीम कोर्ट से यदि फैसला पक्ष में आता है तो भी उन्हें अधिकतम जमीन पर मालिकाना हक और मंदिर निर्माण का ही अधिकार मिल सकता है। सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन को सुरक्षा का निर्देश 2 दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जफर अहमद फारूकी को पर्याप्त सुरक्षा देने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त श्रीराम पांचू ने कोर्ट को बताया था कि सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन की जान को खतरा है और उन्हें लगातार धमकियां मिल रही हैं। सेटलमेंट के लिए इन मुद्दों पर बनी है सहमति 1) बोर्ड ने देश के सभी धार्मिक स्थलों की 1947 से पहले वाली स्थिति बरकरार रखने के कानून को लागू करने की मांग की है। 1991 में लागू स्पेशल प्रॉविजन ऐक्ट के तहत धार्मिक स्थलों को दूसरे स्थान में परिवर्तिन न किया जाए। यह ऐक्ट रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद में लागू नहीं होता है। 2) 2.77 एकड़ की विवादित भूमि पर मुस्लिम पक्ष अपना दावा छोड़ेंगे। इसके बदले में सरकार अयोध्या में सभी मस्जिदों के मरम्मत का काम पूरा करे और सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिए दूसरी जगह मुहैया कराई जाएगी। 3) ऑर्कियालॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया मैनेजमेंट मुस्लिमों के प्रार्थना के लिए कुछ मस्जिदों को खोले और कोर्ट द्वारा नियुक्त कमिटी और मुस्लिम पार्टीज इसका फैसला करेंगी कि किन मस्जिदों को पूजा के लिए खोला जाए। सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त मध्यस्थता पैनल के सदस्य जस्टिस कलिफुल्ला, वरिष्ठ वकील पांचू और आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविंशकर ने भी टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा कि जमीयत धड़े के लिए भी इस सेटलमेंट को इनकार करना बहुत मुश्किल होगा।
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