फर्जी केस में फंसाने के मामलों में विक्टिम को मुआवजा दिए जाने को लेकर गाइडलाइन के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका (पीआइएल) दायर की गई है। सर्वोच्च अदालत में उत्तर प्रदेश के विष्णु तिवारी केस का हवाला दिया गया है, जिन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बरी करते हुए कहा कि उन्हें आपसी झगड़े के कारण दुष्कर्म के केस में फंसाया गया था। जेल में 20 साल बिताने के बाद उन्हें निर्दोष पाया गया। कोर्ट से गुहार लगाई गई है कि केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया जाए कि वे ऐसे विक्टिम को मुआवजा देने के लिए गाइडलाइन तैयार करें और इस बाबत लॉ कमिशन की रिपोर्ट को लागू करें। यह पीआइएल भाजपा नेता एवं वकील अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 28 जनवरी, 2021 को फैसला सुनाया था, जिसमें दुष्कर्म के आरोपित विष्णु तिवारी को निर्दोष करार दिया गया। मामले में एफआइआर के पीछे जमीन विवाद को कारण पाया गया। इस मामले में विष्णु को 16 सितंबर, 2000 को गिरफ्तार किया गया था। जेल में 20 साल बिताने के बाद उन्हें निर्दोष पाया गया। ऐसे मामलों को ध्यान में रखते हुए पीआइएल में कहा गया है कि शीर्ष अदालत गलत अभियोजन के पीड़ित को मुआवजे के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने के अपने संवैधानिक अधिकार का प्रयोग करे और इस संबंध में विधि आयोग की सिफारिशें सख्ती से लागू हो जाने तक इनके क्रियान्वयन के लिए केंद्र एवं राज्यों को निर्देश दे।
न्याय की व्यवस्था पर पहले प्रश्न उठना चाहिए कि दुष्कर्म की घटना का न्याय देने मे 20 वर्ष कैसे लगे? इसपर शोध ग्रंथ लिखा जाना चाहिए आखिर ऐसा होता क्यों है। क्या न्यायालय अपने बपौती ढर्रे से ही कार्य करेगा?
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