'अनिश्चित
ही निश्चित है', यह मानना है इरफान का। बीमारी की पहचान के बाद सदमे से
लेकर इस चीज का एहसास कि जिंदगी जैसी भी चल रही है उसपर अपना कंट्रोल
नहीं... इरफान ने हमें अपने इसी मौजूदा सफर की एक झलक यहां पेश की है।
लंदन से एक ख़त
एक वक्त गुजर चुका है जब पता चला था कि मैं हाई-ग्रेड न्यूरोएंडोक्राइन
कैंसर से जूझ रहा हूं। यह मेरे शब्दकोश में एक नया नाम है, जिसके बारे में
मुझे बताया गया कि यह एक असाधारण बीमारी है, जिसके कम मामले सामने आते हैं
और जिसके बारे में अपेक्षाकृत कम जानकारी है और इसलिए इसके ट्रीटमेंट में
संदेह की संभावना ज्यादा थी। मैं अब एक प्रयोग का हिस्सा बन चुका था।
मैं एक अलग गेम में फंस चुका था। तब मैं एक तेज ट्रेन राइड का लुत्फ उठा
रहा था, जहां मेरे सपने थे, प्लान थे, महत्वकांक्षाएं थीं, उद्देश्य था और
इन सबमें मैं पूरी तरह से अस्त-व्यस्त था। ...और अचानक किसी ने मेरे कंधे
को थपथपाया और मैंने मुड़कर देखा। वह टीसी था, जिसने कहा, 'आपकी मंजिल आ गई
है, कृपया उतर जाइए।' मैं हक्का-बक्का सा था और सोच रहा था, 'नहीं नहीं,
मेरी मंजिल अभी नहीं आई है। उसने कहा, नहीं, यही है। जिंदगी कभी-कभी ऐसी ही
होती है।' इस आकस्मिक घटना ने मुझे एहसास कराया कि कैसे आप समंदर के तेज
तरंगों में तैरते हुए एक छोटे से कॉर्क की तरह हो! और आप इसे कंट्रोल करने
के लिए बेचैन होते हैं।इस उथल-पुथल, हैरानी, भय और घबराहट में अपने बेटे से
कह रहा था, 'केवल एक ही चीज जो मुझे अपने आप से चाहिए वह यह है कि मुझे इस
मौजूदा परिस्थिति का सामना नहीं करना। मुझे मजबूत बने रहकर अपने पैरों पर
खड़े रहने की जरूरत है, डर और घबराहट मुझ पर हावी नहीं होने चाहिए वरना
मेरी लाइफ तकलीफदेह हो जाएगी।'
और तभी मुझे बहुत तेज दर्द हुआ, ऐसा लगा मानो अब तक तो मैं सिर्फ दर्द को
जानने की कोशिश कर रहा था और अब मुझे उसकी असली फितरत और तीव्रता का पता
चला। उस वक्त कुछ काम नहीं कर रहा था, न किसी तरह की सांत्वना, कोई
प्रेरणा...कुछ भी नहीं। पूरी कायनात उस वक्त आपको एक सी नजर आती है- सिर्फ
दर्द और दर्द का एहसास जो ईश्वर से भी ज्यादा बड़ा लगने लगता है। जैसे ही
मैं हॉस्पिल के अंदर जा रहा था मैं खत्म हो रहा था, कमजोर पड़ रहा था,
उदासीन हो चुका था और मुझे इस चीज तक का एहसास नहीं था कि मेरा हॉस्पिटल
लॉर्ड्स स्टेडियम के ठीक ऑपोजिट था। मक्का मेरे बचपन का ख्वाब था। इस दर्द
के बीच मैंने विवियन रिचर्डस का पोस्टर देखा। कुछ भी महसूस नहीं हुआ,
क्योंकि अब इस दुनिया से मैं साफ अलग था। हॉस्पिटल में मेरे ठीक ऊपर कोमा
वाला वॉर्ड था। एक बार हॉस्पिटल रूम की बालकनी में खड़ा इस अजीब सी स्थिति
ने मुझे झकझोर दिया, जहां जिंदगी और मौत के खेल के बीच बस एक सड़क है,
जिसके एक तरफ हॉस्पिटल है और दूसरी तरफ स्टेडियम। न तो हॉस्पिटल किसी
निश्चित नतीजे का दावा कर सकता है और ना स्टेडियम। इससे मुझे बहुत कष्ट
होता है।
मेरे पास केवल बहुत सारी भगवान की शक्ति और समझ है। मेरे हॉस्पिटल की
लोकेशन भी मुझे प्रभावित करती है। दुनिया में केवल एक चीज निश्चित है और वह
है अनिश्चित। मैं केवल इतना कर सकता हूं कि अपनी पूरी ताकत को महसूस करूं
और अपनी लड़ाई पूरी ताकत से लड़ूं। इस वास्तविकता को जानने के बाद मैंने
नतीजे की चिंता किए बगैर भरोसा करते हुए अपने हथियार डाल दिए हैं। मुझे
नहीं पता कि अब 8 महीने या 4 महीने या 2 साल बाद जिंदगी मुझे कहां ले
जाएगी। मेरे दिमाग में अब किसी चीज के लिए कोई चिंता नहीं है और उन्हें
पीछे छोड़ने लगा हूं।
पहली बार मैंने सही अर्थों में 'आजादी' को महसूस किया है। यह एक उपलब्धि
जैसा लगता है। ऐसा लगता है जैसे मैंने पहली बार जिंदगी का स्वाद चखा है और
इसके जादुई पक्ष को जाना है। भगवान पर मेरा भरोसा और मजबूत हुआ है। मुझे
ऐसा लगता है कि वह मेरे शरीर के रोम-रोम में बस गया है। यह वक्त ही बताएगा
कि आगे क्या होता है लेकिन अभी मैं ऐसा ही महसूस करता हूं।
मेरी पूरी जिंदगी में दुनियाभर के लोगों ने मेरा भला ही चाहा है, उन्होंने
मेरे लिए दुआ की, चाहे मैं उन लोगों को जानता हूं या ना जानता हूं। वे सभी
अलग-अलग जगहों पर दुआ कर रहे थे और मुझे लगा कि ये सभी दुआएं एक बन गईं।
इसमें वैसी ही ताकत थी जैसी पानी की तेज धारा में होती है और यह पूरी
जिंदगी मेरे अंदर बसी रहेगी। यह मेरे भीतर एक नया जीवन उगते हुए देख रहा
हूं जो हर एक दुआ से पैदा हुआ है। इन दुआओं से मेरे भीतर बहुत खुशी और
उत्सुकता पैदा हो गई। वास्तव में आप अपनी जिंदगी को कंट्रोल नहीं कर सकते।
आप धीरे-धीरे प्रकृति के पालने में झूल रहे हैं।
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कैंसर से जूझ रहे इरफान बोले, 'नतीजे की चिंता किए बगैर हथियार डाल दिए'- /i-trust-i-haveve-surrendered-irrespective
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