पूर्व
राष्ट्रपति और दिग्गज कांग्रेसी प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
के तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में कहा
कि भारत में राष्ट्रीयता एक भाषा और एक धर्म की नहीं है. प्रणब ने कहा कि
भारत की ताकत उसकी सहिष्णुता में निहित है और देश में विविधता की पूजा की
जाती है. लिहाजा देश में यदि किसी धर्म विशेष, प्रांत विशेष, नफरत और
असहिष्णुता के सहारे राष्ट्रवाद को परिभाषित करने की कोशिश की जाएगी तो
इससे हमारी राष्ट्रीय छवि धूमिल हो जाएगी.
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि वह इस मंच से राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति पर
अपना मत रखने के लिए बुलाए गए हैं. इन तीनों शब्दों को अलग-अलग देखना संभव
नहीं है. इन शब्दों के समझने के लिए पहले हमें शब्दकोष की परिभाषा देखने की
जरूरत है.
प्रणब ने कहा कि भारत एक मुक्त समाज था और पूर्व इतिहास में सिल्क रूट से
सीधे जुड़ा था. इसके चलते दुनियाभर से तरह-तरह के लोगों का यहां आना हुआ.
वहीं भारत से बौद्ध धर्म का विस्तार पूरी दुनिया में हुआ. चीन समेत दुनिया
के अन्य कोनों से जो यात्री भारत आए उन्होंने इस बात को स्पष्ट तौर पर लिखा
कि भारत में प्रशासन सुचारू है और बेहद मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर रहा है.
नालंदा जैसे विश्वविद्यालय छठी सदी से लेकर 1800 वर्षों तक अपनी साख के साथ
मौजूद रहे. चाणक्य का अर्थशास्त्र भी इसी दौर में लिखा गया.
प्रणब ने कहा कि जहां पूरी दुनिया के लिए मैगस्थनीज के विचार पर एक धर्म,
एक जमीन के आधार पर राष्ट्र की परिकल्पना की गई वहीं इससे अलग भारत में
वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा आगे बढ़ी जिसने पूरी दुनिया को एक परिवार के
तौर पर देखा. प्रणब ने कहा कि भारतीय इसी विविधता के लिए जाने जाते हैं और
यहां विविधता की पूजा की जाती है.
इतिहास के पन्नों को खंगालते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भारत में राज्य
की शुरुआत छठी सदी में महाजनपद की अवधारणा में मिलती है. इसके बाद मौर्य,
गुप्त समेत कई वंश का राज रहा और इस अवधारणा पर यह देश आगे बढ़ता रहा. इसके
बाद 12वीं सदी में मुस्लिम आक्रमण के बाद से 600 वर्षों तक भारत में
मुसलमानों का राज रहा. इसके बाद ब्रिटिश हुकूमत आई एक बहुत बड़े हिस्से पर
राज किया. पहले ईस्ट इंडिया कंपनी और फिर ब्रिटिश हुकूमत ने सीधे भारत पर
राज किया.
प्रणब ने कहा कि आधुनिक भारत की परिकल्पना कई लोगों ने की. इसका पहला अंश
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेशन इन द मेकिंग में मिलता है. इसके बाद
नेहरू ने भारत एक खोज में कहा कि भारतीय राष्ट्रीयता केवल हिंदू, मुस्लिम,
सिख, ईसाई के मिलन से ही विकसित होगी. वहीं गांधी के नेतृत्व में भारतीय
राष्ट्रीय कांग्रेस के निरंतर प्रयासों से देश को 1947 में आजादी मिली.
जिसके बाद सरदार पटेल की अथक मेहनत से भारत का एकीकरण किया गया.
प्रणब ने कहा कि आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को देश ने अपने लिए नया
संविधान अंगीकृत किया. इस संविधान ने देश को एक लोकतंत्र के तौर पर आगे
बढ़ाने की कवायद की. हालांकि प्रणब ने कहा कि भारत को लोकतंत्र किसी तोहफे
की तरह नहीं मिला बल्कि एक बड़ी जिम्मेदारी के साथ लोकतंत्र के रास्ते पर
पहल कदम बढ़ाया गया. प्रणब मुखर्जी ने संघ के मंच से ट्रेनिंग लेने वाले
शिक्षार्थियों को कहा कि वह शांति का प्रयास करें और जिन आदर्शों पर नेहरू
और गांधी जैसे नेताओं ने राष्ट्र, राष्ट्रीयता और देशभक्ति की परिभाषा दी
उन्हीं रास्तों पर चलते हुए देश की विविधता को एक सूत्र में पिरोने का काम
करें. प्रणब ने कहा कि बीते कई दशकों की कोशिश के बाद आज भारत दुनिया की
बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शुमार है लेकिन हैपिनेस इंडेक्स में भारत अभी भी
133वें नंबर पर है. लिहाजा, हमारे ऊपर जो दायित्व है उसे निभाते हुए कोशिश
करने की जरूरत कि जल्द से जल्द भारत हैपीनेस इंडेक्स में शीर्ष के देशों
में शुमार हो.
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कक्षा में प्रणब ने पढ़ाया गांधी-नेहरू का राष्ट्रवाद- pranab-mukherjee-rss-programme
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