दानापुर का ढिबरा गांव की महिलाओं ने बनाया पहला महिला बैंड - bihar first female band group sudha vergese dhibra village earn money

पटना: आपने शादी समारोहों में बैंड बाजा बजाते हुए पुरुषों को तो बहुत देखा होगा लेकिन क्या आपने कभी किसी महिला को बैंड बजाते देखा है? नहीं देखा तो बिहार के दानापुर के ढिबरा गांव जाएं, क्योंकि यहां की महिलाओं ने अपना बैंड तैयार किया है. इन महिलाओं के लिए अपना बैंड बनाना कोई आसान काम नहीं था, उन्हें बहुत सारी समस्याएं और समाज के ताने तक सुनने पड़े लेकिन वो कहते हैं ना 'जहां चाह वहां राह.'

महिलाओं को बैंड बनाकर स्वरोजगार की प्रेरणा देने वाली पद्मश्री सुधा वर्गीज ने इस बैड के सरगम नाम दिया है. और इस बैंड की महिलाएं बैड का ऐसा सरगम बजाती हैं कि इनकी डिमांड दूसरे राज्यों में भी होने लगी है.

दानापुर का ढिबरा गांव जहां की महादलित महिलाओं ने यह साबित कर दिया कि जहां चाह होती है वहां कोई राह मुश्किल नहीं होती. कल तक दाने-दाने को मोहताज यहां की महिलाएं अपना पहला महिला बैंड बनाकर बिहार ही नहीं बल्कि बिहार के बाहर भी अपना नाम रौशन कर रही हैं. यह महिलाएं बड़े-बड़े बैंड बाजे को अपने कंधों पर उठाकर बजाती हैं और कमाती हैं.

इस बैंड की महिलाएं बेहतर जिंदगी जीने के साथ-साथ अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में शिक्षा देकर शिक्षित भी कर रही हैं ताकि उनकी आने वाली पीढ़ी को गरीबी ना झेलनी पड़े. एक वक्त था जब इन महिलाओं के पास खाने तक के पैसे नहीं थे और इन्हें आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता था. एक दिन नारी गुंजन चलाने वाली समाजसेवी पद्मश्री सुधा वर्गीस ने इन्हें महिला बैंड बनाने का सुझाव दिया जिसके बाद महिलाएं सीखने को तैयार हुईं और खुद की 'सरगम महिला बैंड' नाम से महिला बैंड तैयार किया.

पहले गांव की 15 महिलाओं ने बैंड सीखाना शुरू किया लेकिन अंत में 10 महिलाएं ही इसे सीख पाईं. बैंड सीखाने के दौरान उऩ्हें अपने घर, परिवार और समाज से ताने सुनने को मिले. गांव के लोगों ने काफी खरी-खोटी भी सुनाई, लेकिन इन महिलाओं ने हार नहीं मानी और आज सीख कर इज्जत और पैसे के साथ-साथ नाम भी कमा रही हैं. महिलाएं अपने हुनर से बैंड बजाकर सामूहित तौर पर हर दिन दस हजार से बीस हजार कमाई कर रही हैं. अब इसका नेतृत्व गांव की ही बेटी सविता देवी अपने गांव कि 9 भाभियों के साथ बिहार के साथ-साथ दूसरे प्रदेश में भी जाकर भी लोगों की खुशी में चार चांद लगाती हैं.



सुधा वर्गीज ने ही ढिबरा गांव की महिलाओं को बैंड पार्टी बनाने और बैंड सीखने की प्रेरणा दी. सुधा वर्गीज ने बताया कि वो एक बार मैंगलोर गई थीं और वहीं पर उन्होंने महिलाओं का बैंड देखा था और उसे देखकर उन्हें भी लगा कि बिहार की गरीब महिलाओं को रोजगार देने के लिए बैंड बजाना सीखना चाहिए ताकि वो स्वाबलंबी बन सकें. फिर क्या था सुधा वर्गीज ने दानापुर के ढिबरा गांव को चुना और वहां की गरीब महादलित महिलाओं को गोलबंद कर उन्हें बैंड सीखाने के लिए प्रेरित करने लगीं और जल्द ही यहां कि बुलंद हौंसले वाली महिलाओं ने देश की पहली 'सरगम महिला बैंड' को जन्म दिया. देखते ही देखते ढिबरा गांव में महादलित महिला बैंड का तान शादी समारोह के साथ-साथ राजनीति पार्टियों के कार्यकर्मों में भी आकर्षण का केंद्र बन गया. महादलित महिलाओं की यह टीम आज बिहार के अलावा दूसरे राज्यों में भी अपने बैंड का प्रदर्शन कर वाहवाही लूट रही हैं.


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