वाजपेयी में संसदीय प्रक्रिया के प्रति बहुत सम्मान का भाव था: सोनिया गांधी - sonia gandhis vision the difference between pm narendra modi and atal bihari vajpayee

मुंबई: कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने स्वीकार किया है कि वह एक नेता के रूप में "अपनी सीमाएं जानती थीं" और सार्वजनिक बोलने में स्वाभाविक नहीं रह पाती थीं. शुक्रवार को इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में सोनिया ने बड़ी साफगोई से अपनी बात कही. उन्होंने अपने विचार  व्यापक नजरिए के साथ लोगों के सामने रखे. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए कहा कि "वाजपेयी में संसदीय प्रक्रिया के प्रति बहुत सम्मान का भाव था."

वर्ष 2014 में बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए से कांग्रेस की हार पर सोनिया गांधी ने कहा “अन्य मुद्दों’’ के अलावा दो बार सत्ता में रहने के कारण यूपीए सरकार को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ा. उन्होंने कहा,  “हम पिछड़ गए थे. नरेंद्र मोदी ने जिस तरह अपना प्रचार किया हम उसकी बराबरी नहीं कर पाए.” मोदी पर उन्होंने कहा, “मैं उन्हें एक व्यक्ति के तौर पर नहीं जानती हूं. अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान हम धुर विरोधी थे. लेकिन हमने सही ढंग से काम किया.”

सोनिया ने कहा कि मोदी सरकार विपक्ष के साथ सामंजस्य की भावना नहीं रखती है. अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान संसद ने ज्यादा सकारात्मक तरीक से काम किया था. सोनिया ने कहा, "मौजूदा स्थिति ऐसी है कि कोई भी सामंजस्य की भावना नहीं है..यह हमारा अधिकार है, यह विपक्ष का अधिकार है. जब वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, तो हमने काफी अच्छे तरीके से काम किया था."


सोनिया गांधी ने इससे पूर्व में आरोप लगाया था कि सरकार ने उनकी पार्टी को दरकिनार कर दिया और करोड़ों रुपये के पीएनबी घोटाले में बोलने का अवसर नहीं दिया गया. उन्होंने कहा, "जब आपके पास चर्चा करने के लिए जरूरी मामले होते हैं, आपको सभी प्रक्रियाओं का पालन करना होता है, लेकिन हमें दरकिनार किया गया. हमें चर्चा करने की इजाजत नहीं दी गई." उन्होंने कहा, "बीते दो-तीन दिनों में हम पीएनबी घोटाले के बारे में चर्चा करना चाहते थे. यह ऐसा मुद्दा था जिससे लोगों उद्वेलित हैं. हमें बोलने नहीं दिया गया." उन्होंने कहा कि संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वार राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान उनकी पार्टी सदस्यों ने नारे लगाए थे क्योंकि उनके पार्टी नेताओं को इससे एक दिन पहले बोलने नहीं दिया गया था.

कांग्रेस की नेत्री से जब पूछा गया कि संसद में मौजूदा गतिरोध कैसे समाप्त होगा, तो उन्होंने कहा, "जिस तरह संसद चलाई जा रही है, उसमें इसका होना मुश्किल है. यह असंभव है क्योंकि वे लोग हमें बोलने नहीं दे रहे है. संसद क्यों होती है? मैं इस बात से अवगत हूं कि लोग कुल मिलाकर कांग्रेस से नाराज हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि हम चिल्ला रहे हैं. लेकिन इसके पीछे काफी गंभीर उद्देश्य हैं. संसदीय नियमों का पालन नहीं हो रहा है."

पीएम मोदी को सलाह दिए जाने के बारे में पूछने पर सोनिया ने कहा, “ मैं उन्हें सलाह देने की हिमाकत नहीं कर सकती. ऐसा करने के लिए उनके पास बहुत से लोग हैं.”

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि उन्होंने साल 2004 में मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के तौर पर इसलिए चुना था क्योंकि उन्हें अपनी सीमाओं का ज्ञान था और वह जानती थीं कि मनमोहन इस पद के लिए एक बेहतर उम्मीदवार हैं. उन्होंने कहा, “मैं अपनी सीमाएं जानती थी. मैं जानती थी कि मनमोहन सिंह मुझसे बेहतर प्रधानमंत्री साबित होंगे.” 2004 में यूपीए के सत्ता में आने के बाद भी प्रधानमंत्री नहीं बनने के फैसले के बारे में पूछे गए सवाल पर उन्होंने यह बात कही.



यूपी के रायबरेली कीं सांसद सोनिया ने कहा कि अगर उनकी पार्टी तय करती है तो वे वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में इसी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगी. 71 वर्षीय सोनिया गांधी 19 वर्षों तक कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं. पिछले साल पार्टी के आंतरिक चुनाव के बाद उनके बेटे राहुल गांधी ने उनकी जगह ली.

सोनिया गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ने के बाद पहली बार सार्वजनिक रूप से गहराई और गंभीरता के साथ आत्मावलोकन के अंदाज में कई मुद्दों पर बातचीत की. इसमें उनके बच्चे, उनकी अपनी कमियां और भारत में लोकतंत्र की भूमिका जैसे मुद्दे शामिल थे.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को सलाह देने के संबध में सवाल पर उन्होंने कहा, “वे अपनी जिम्मेदारी समझते हैं. यदि उन्हें जरूरत होगी तो मैं उनके साथ हूं. मैं आगे बढ़कर सलाह देने की कोशिश नहीं करती. वे पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए वरिष्ठ नेताओं के साथ कुछ नए चेहरों को पार्टी में लाना चाहते हैं.” उन्होंने कहा,  “वे युवा और वरिष्ठों में संतुलन चाहते हैं. लेकिन उन्होंने यह साफ कर दिया है कि वे पार्टी में वरिष्ठ नेताओं की भूमिका और योगदान को महत्व देते हैं.” सोनिया ने कहा कि कांग्रेस को संगठन के स्तर पर लोगों से जुड़ने का नया तरीका विकसित करना होगा. उन्होंने कहा, “हमें यह भी देखना होगा कि हम अपने कार्यक्रमों और नीतियों को किस तरह से सामने रखते हैं.”



सोनिया गांधी ने बहुत ही साफगोई से कहा कि पार्टी अध्यक्ष का पद छोड़ने के बाद उन्हें अपने लिए ज्यादा समय मिलता है. उन्होंने कहा, “मेरे पास अपने लिए ज्यादा वक्त है.. पढ़ने और फिल्में देखने का. मैं, मेरी सास (इंदिरा गांधी) और पति (राजीव गांधी) के पुराने कागजों को सुव्यवस्थित कर रही हूं. मैं उनका डिजिटलीकरण कराऊंगी. ये कागज मेरी सास द्वारा उनके बेटे (राजीव) को लिखे गए पत्र और उनका जवाब हैं. वे मेरे लिए भावनात्मक तौर पर मूल्यवान हैं.”

कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष ने उम्मीद जताई कि उनकी पार्टी 2019 में होने वाले चुनाव में फिर सत्ता में आएगी. उन्होंने कहा, “हम भाजपा/ एनडीए को जीतने नहीं देने वाले हैं.” साल 2019 के चुनावों की कांग्रेस की तैयारी पर उन्होंने कहा कि वह नारों और खोखले वादों की शौकीन नहीं हैं.

प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा, “लोगों से झूठ नहीं बोलें और वह वादे न करें जो पूरे नहीं कर सकते.” उन्होंने कांग्रेस द्वारा “नरम हिंदुत्व” का रवैया अपनाने की बात को खारिज किया. गुजरात चुनाव में राहुल के मंदिर जाने पर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा, “हमारे विरोधी हमें मुस्लिम पार्टी बताते हैं. हम पहले भी मंदिर जाते रहे हैं लेकिन हमने इसका दिखावा नहीं किया है.”

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