जब केंद्र में बैठी कांग्रेस ने ली चुनी हुई सरकारों की बलि- Congress-itself-started-wrong-tradition

कर्नाटक में राज्यपाल के फैसलों के खिलाफ कांग्रेस भले ही बार-बार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा रही हो, लेकिन सच यह भी है कि वह खुद सत्ता का दुरुपयोग कर राज्य सरकारों को बर्खास्त करने, सबसे बड़े दल को सरकार बनाने से रोकने की तमाम कोशिशें कर चुकी है और एक तरह से कहें तो यह परिपाटी भी उसके द्वारा ही शुरू की गई है. गवर्नर के ऑफिस का इस्तेमाल करते हुए विरोधी सरकारों को बर्खास्त करने और विपक्षी दलों को सरकार बनाने से रोकने जैसे कई काम कांग्रेस पहले खुद कर चुकी है. बोम्मई केस: सन 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव राव ने बीजेपी शासित चार राज्यों में सरकारें बर्खास्त कर दी थीं. इससे पहले भी कई राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया जाता रहा जिसमें 1988 में कर्नाटक में एसआर बोम्मई की सरकार की बर्खास्तगी का मामला शामिल है. 1994 में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के सामने इन तमाम मामलों को लेकर सुनवाई हुई, जिसे बोम्मई केस के नाम से जाना जाता है. बोम्मई केस में धारा 356 की जरूरत और गलत इस्तेमाल को लेकर बहस हुई. सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी की सरकारों को बर्खास्त करने के राव सरकार के फैसले को सही बताया. सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि राज्य सरकारों की बर्खास्तगी की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है और अवैध पाए जाने पर न्यायालय बर्खास्त सरकारों को बहाल कर सकता है. साथ ही कोर्ट ने यह व्यवस्था भी दी कि राष्ट्रपति शासन को संसद की स्वीकृति प्राप्त होनी चाहिए. कांग्रेस की केंद्र सरकार के इशारे पर विभिन्न राज्यों में राज्यपालों द्वारा सरकार बर्खास्त करने या गलत निर्णय लेने के कई उदाहरण हैं. मद्रास, 1952: 1952 में पहले आम चुनाव के बाद ही राज्यपाल के पद का दुरुपयोग शुरू हो गया. मद्रास (अब तमिलनाडु) में अधिक विधायकों वाले संयुक्त मोर्चे के बजाय कम विधायकों वाली कांग्रेस के नेता सी. राजगोपालाचारी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया जो उस समय विधायक भी नहीं थे. केरल, 1959: भारत में पहली बार कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार ईएमएस नम्बूदरीपाद के नेतृत्व में साल 1957 में चुनी गई. लेकिन राज्य में कथित मुक्ति संग्राम के बहाने तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 1959 में इसे बर्खास्त कर दिया. यह हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री और आजादी के नायक जवाहर लाल नेहरू का कार्यकाल था. ऐसी तमाम खबरें आईं कि अमेरिका खुफिया एजेंसी सीआईए के दबाव में सरकार ने ऐसा किया. केरल में नम्बूदरीपाद सरकार के खिलाफ सभी परंपरावादी एक हो गए थे. उसका विरोध कांग्रेस से लेकर कैथोलिक चर्च, नायर सर्विस सोसाइटी और भारतीय मुस्लिम लीग तक ने किया. यह भारत की पहली क्षेत्रीय सरकार थी जहां कांग्रेस सत्ता में नहीं थी. हरियाणा, 1982: वर्ष 1979 में हरियाणा में देवीलाल के नेतृत्व में लोकदल की सरकार बनी. 1982 में भजनलाल ने देवीलाल के कई विधायकों को अपने पक्ष में कर लिया. हरियाणा के तत्कालीन राज्यपाल जीडी तवासे ने भजनलाल को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया. राज्यपाल के इस फैसले से नाराज चौधरी देवीलाल ने राजभवन पहुंच कर अपना विरोध जताया था. अपने पक्ष के विधायकों को देवीलाल अपने साथ दिल्ली के एक होटल में ले आए थे, लेकिन ये विधायक यहां से निकलने में कामयाब रहे और भजनलाल ने विधानसभा में अपना बहुमत साबित कर दिया. जम्मू- कश्मीर, 1984: 1984 में जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल बी.के. नेहरू ने केंद्र के दबाव के बावजूद फारूख अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के खिलाफ रिपोर्ट भेजने से इनकार कर दिया. अंततः केंद्र की सरकार ने उनका तबादला गुजरात कर दिया और दूसरा राज्यपाल भेजकर मनमाफिक रिपोर्ट मंगवाई गई. राज्य सरकार को बर्खास्त किया गया.
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