क्या प्रणब मुखर्जी ने भाजपा और संघ को 2019 के लिए ब्रह्मास्त्र दे दिया है?- pranab-mukherjee-speech-analysis-bjp-rss-2019

कांग्रेस नेता और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के नागपुर स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यालय जाने के कई लाभ भाजपा और संघ को मिलते दिखाई दे रहे हैं. कहने को तो तर्क दिए जा सकते हैं कि मोहन भागवत और प्रणब मुखर्जी के बीच घनिष्ठता है. वो एक-दूसरे वो व्यक्तिगत रूप से पसंद करते हैं. प्रणब दा ने तो मोहन भागवत को राष्ट्रपति रहते रिसीव करने के लिए प्रोटोकॉल तक तोड़ा है. लेकिन कहानी इतनी भर नहीं है. प्रणब मुखर्जी के जाने की खबर आने के साथ ही कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों, समाजशास्त्रियों ने इस फैसले का विरोध करना शुरू कर दिया था और प्रणब दा को नसीहत दी जा रही थी कि वो कतई संघ के इस कार्यक्रम में शामिल न हों. यहां तक कि उनकी बेटी और कांग्रेस की नेता शर्मिष्ठा मुखर्जी ने अपने पिता को सार्वजनिक रूप से आगाह किया कि उनके संघ के कार्यक्रम में जाने से उन्हें कुप्रचार का सामना करना पड़ेगा. लोग प्रणब दा के भाषण को भूल जाएंगे और उनकी संघ प्रमुख के साथ की तस्वीरें दशकों तक उनका पीछा करती रहेंगी. लेकिन यह भी समझना होगा कि नाहक ही संघ ने प्रणब मुखर्जी को अपने कार्यक्रम में नहीं बुला लिया. यह एक सोची समझी रणनीति के तहत किया गया है. प्रणब को बुलाने का सबसे पहला लाभ तो यह हुआ कि जिस संघ शिक्षा वर्ग की खबर आंचलिक स्तर पर छप कर खप जाती थी, वो दो घंटे तक सभी बड़े मीडिया चैनलों पर लाइव दिखाया गया. प्रणब को संघ के आंगन में दिखाने की उत्सुकता में पूरा देश संघ के प्रशिक्षित स्वयंसेवकों का लाठी चलाना, करतबें करना और पदसंचलन देख रहा था. इसके बाद लोगों ने मोहन भागवत को लाइव सुना. इस पूरे भाषण में हिंदुत्व की बात तो मोहन भागवत ने की ही लेकिन सावधानी से एक सॉफ्ट लाइन लेते भी नज़र आए. संघ और उसके अनुशांगिक संगठनों के कार्यकलापों से विपरीत एक उदार हिंदू छवि को देशभर के सामने बखानने में मोहन भागवत सफल रहे. उन्होंने विविधता में एकता की बात कही. सभी धर्म जातियां एक भारत मां की संतान हैं. यहां पर रहने वाले सभी धर्मों के पूर्वज एक हैं जैसी बातें किसी भी सामान्य हिंदू व्यक्ति को सही और सकारात्मक ही लगी होंगी. गन्ना के सामने जिन्ना का गाना फेल होते देखकर संघ के लिए ज़रूरी है कि वो अधिक उदार और समवेती नज़र आए. इसीलिए भाजपा और संघ संपर्क और संवाद का नारा लेकर प्रचार में निकल चुके हैं. प्रणब दा की उपस्थिति में मोहन भागवत का लाइव भाषण दरअसल 2019 के लिए संघ का खुलकर प्रचार में आने जैसा प्रयास था. इस दृष्टि से संघ अपने प्रणब के बहाने अपने प्रचार और छवि सुधार में सफल रहा.
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