गठबंधन का अंत नहीं, ये भाजपा के प्रचार की शुरुआत है-behind-kashmir-bjps-game-plan-for-2019

जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ गठबंधन तोड़कर भारतीय जनता पार्टी ने 2019 के लिए चुनाव प्रचार का तेवर तय कर दिया है. भाजपा अच्छे से जानती है कि अल्पसंख्यकों का, खासकर मुसलमानों का वोट उसके हिस्से में आने वाला नहीं है. ऐसे में कबतक कश्मीर में सरकार के बहाने वो अपने गले को बांधे रखती. मुस्लिम बाहुल्य कश्मीर में सरकार में शामिल रहते हुए भाजपा को अक्सर भीतर और बाहर से हमले झेलने पड़ते थे. पीडीपी से नाता तोड़कर भाजपा ने उस मजबूरी से मुक्ति पा ली है. यहां से दो चीज़ें एकदम साफ दिखाई दे रही हैं. पहली यह कि भाजपा को इस बात का आभास है कि केवल विकास के नारे पर 2019 में वोट मिलने वाला नहीं है. दूसरा यह कि क्षेत्रीय दलों के वोट बैंकों को तोड़ने के लिए जातियों को हिंदू पहचान के बुखार तक लाना पड़ेगा. यानी ध्रुवीकरण के ज़रिए ही अपेक्षित वोटों को सुनिश्चित किया जा सकता है. लेकिन कश्मीर में सरकार में रहते हुए हिंदू हित और हिंदू अस्मिता की बात कर पाना आसान नहीं रहता. लिहाजा भाजपा ने बड़े लाभ के लिए छोटे नुकसान को उठाना ज़्यादा फायदेमंद समझा. इसकी पुष्टि इस बात से भी हो जाती है कि इस फैसले के लिए भाजपा ने न तो राज्य में पिछले दिनों अपने तेवर बदले, न विरोध जताया, न महबूबा मुफ्ती को इसकी आहट लगने दी और न ही राज्य स्तर पर भाजपा के पास रूठने के लिए कोई बड़े तर्क हैं. अचानक ही सुरक्षा सलाहकार से परामर्श लेकर जनादेश को राज्यपाल शासन के हवाले कर दिया गया. ऐसा करने वाली यह वही भाजपा है जिसने महीनों मान मुनौवल के बाद महबूबा को गठबंधन के लिए राजी किया था और राज्य में भाजपा-पीडीपी गठबंधन की सरकार बनी थी. तीन साल तक भाजपा इस गठबंधन के साथ सत्ता में बनी रही. विरोध के स्वर कुछ भीतर भी थे और कई बाहर भी. लेकिन भाजपा ने सत्ता में बने रहना मुनासिब समझा और धीरे-धीरे जम्मू क्षेत्र में अपने वर्चस्व और सांगठनिक प्रभाव को और व्यापक करने का काम जारी रखा. इसे भी पढ़ें... समर्थन वापसी के ऐलान के वक्त अपनी ही सरकार की नाकामियां गिनाते रहे राम माधव जब 2019 के चुनाव की दस्तक पार्टी को अपने दरवाजे पर सुनाई देने लगी तो उसने इस गठबंधन को हवन कुंड में डालकर कश्मीरियों और अल्पसंख्यकों के प्रति अपनी नरमी की मजबूरी से मुक्ति पा ली. अब भाजपा खुलकर खेलने के लिए तैयार है. भाजपा की भाषा आने वाले दिनों में बदली हुई सुनाई दे सकती है. दूसरा बड़ा लाभ यह है कि लगातार सीमा पार से गोलीबारी और कश्मीर में बिगड़ते हालात के लिए घेरी जा रही सरकार अब राज्यपाल शासन के बहाने सेना, अर्धसैनिक बलों और विशेषाधिकार कानूनों का मनमाने ढंग से इस्तेमाल कर सकेगी. इससे कश्मीर की स्थिति और बिगड़ेगी. लेकिन उस स्थिति को संभालने के लिए संभावित अतिरिक्त बल प्रयोग सरकार के सख्त और कड़े कदम के तौर पर देशभर में देखा और प्रचारित किया जाएगा. हालांकि यह कश्मीर और भारत के बीच की परिस्थितियों के लिए बुरी खबर है लेकिन इसका बड़ा लाभ भाजपा को देश के अन्य राज्यों में मिलता नज़र आएगा. सेना और सुरक्षाबलों के ज़रिए सरकार की दमनकारी रणनीति को देश के अन्य राज्यों में बहादुरी और कठोर निर्णय के रूप में देखा जाएगा. साथ ही यह ध्रुवीकरण में भी एक अहम भूमिका निभाएगा. भाजपा ने पीडीपी के साथ गठबंधन तोड़कर तुष्टिकरण का पर्दा उतार फेंका है. अब उसे प्रचार में कूदना है और ध्रुवीकरण की धुरी पर आधारित प्रचार के लिए महबूबा से मुक्ति भाजपा के लिए एक बड़ी राहत है. इस तरह भाजपा ने चुनाव प्रचार के अपने पैंतरे और भाषा की बानगी दे दी है. ऐसे समय में जबकि बाकी विपक्षी दल सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर भाजपा से जूझते नजर आ रहे हैं, पार्टी हार्ड हिंदुत्व के ज़रिए विपक्ष से भी निपटेगी और जाति आधारित गठबंधनों से भी. जम्मू-कश्मीर में भाजपा और पीडीपी के ट्रिपल तलाक में सबसे ज़्यादा फायदे में भाजपा है और सबसे ज़्यादा नुकसान में पीडीपी. लेकिन भाजपा के लिए यह फायदा राज्य तक सीमित नहीं है, इसे वो पूरे देश में लेकर जाएगी और 2019 का चुनाव सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का खेल देखेगा, कम से कम ताज़ा सूरतेहाल ऐसे ही नजर आ रही है.
Share on Google Plus

0 comments:

Post a Comment