BJP को रोकने के लिए पिता लालू यादव से भी दो कदम आगे निकले तेजस्वी यादव!- tejaswi-yadav-planning-caste-equation

पटना: 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी से दो-दो हाथ करने के लिए विपक्षी पार्टियां नए सिरे से रणनीति बना रहे हैं. लोकसभा सीटों के हिसाब से सबसे बड़े उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी मिलकर अन्य विपक्षी दलों के साथ महागठबंधन बनाने की तैयारी में हैं तो बिहार में मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) भी प्लानिंग में जुट गई है. आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव को सजा होने के बाद से उनके छोटे बेटे तेजस्वी यादव की हाथों में पार्टी की बागडोर है. तेजस्वी की ओर से हाल में लिए गए राजनीतिक फैसलों पर नजर डालें तो संकेत मिलते हैं कि वह लालू यादव से दो कदम आगे बढ़कर जातीय समीकरण बिठाने में जुटे हैं. आइए तेजस्वी यादव की ओर से लिए गए फैसलों के जरिए बिहार की राजनीति में हो रहे बदलाव को समझने की कोशिश करते हैं. MY समीकरण पर निर्भरता खत्म करना चाहते हैं तेजस्वी लालू प्रसाद यादव ने सामाजिक बदलाव के नाम पर अपनी राजनीतिक रसूख हासिल की थी. उनके राजनीतिक स्टाइल पर गौर करें तो पता चलता है कि वह सवर्ण मानसिकता के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहे. साथ ही उन्होंने मुस्लिम+यादव (MY) का एक ऐसा कॉकटेल तैयार किया था, जिसके बूते लंबे समय तक सत्ता में काबिज रहे. बदलते दौर में या यूं कहें कि बीजेपी+नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद बिहार में इस MY समीकरण दरकने लगा. पढ़े-लिखे और पूंजीपति यादवों का एक धड़ा बीजेपी+नीतीश गठबंधन को समर्थन देने लगा है. इसके अलावा कुछ मुसलमान भी नीतीश कुमार के चेहरे पर भरोसा करने लगे. शायद इसी वजह से पिछले 3-4 चुनावों में आरजेडी अकेले दम पर सत्ता हासिल करने में नाकाम साबित रहे.तेजस्वी यादव ने जब से पार्टी की कमान अपने हाथों में ली है तब से वे आरजेडी को 'MY' फॉर्मूले के ठप्पे से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे हैं. शायद वे समझ चुके हैं कि इस MY समीकरण का जितना भी वोट छिटक गया है उसकी भरपाई के लिए दूसरी जाति के लोगों को पार्टी से जोड़ा जाए. ब्राह्मण, राजपूत और भूमिहारों से दोस्ती की पेशकश तेजस्वी यादव ने हाल में लालू यादव राजनीतिक पैटर्न से इतर जाकर उच्च जाति (ब्राह्मण, राजपूत और भूमिहार) के लोगों के साथ दोस्ती की पेशकश की है. उन्होंने परंपरागत समीकरण से अलग जाकर आबादी के हिसाब से सबको प्रतिनिधित्व देने की बात कही है. ब्राह्मण मनोज झा को तेजस्वी यादव ने राज्यसभा भेजा है. रघुनाथपुर के पूर्व विधायक और जदयू नेता विक्रम कुंवर को आरजेडी में लेकर आए हैं. बीजेपी के पूर्व विधायक बबलू देव को भी आरजेडी से जोड़ा है. पिछले विधानसभा चुनाव में आरजेडी ने इस जाति समुदाय के किसी भी प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया था. गैर यादव ओबीसी वोटरों को साथ लाना चाहते हैं तेजस्वी आरएलएसपी प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा सदैव लालू विरोधी राजनीतिक करते रहे हैं. एक वक्त वह विधानसभा में लालू यादव और उनकी पार्टी पर जोरदार हमले किया करते थे. इस वक्त वे एनडीए के घटक दल हैं. साल 2014 के लोकसभा और 2015 के विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार के एनडीए से अलग होने के चलते इसकी भरपाई के लिए बीजेपी ने उपेंद्र कुशवाहा से दोस्ती की थी. अब नीतीश कुमार और बीजेपी एक साथ हैं. ऐसे में इस गठबंधन में उपेंद्र कुशवाहा की अहमियत पहले जैसी नहीं रह गई है. इसी मौके को भांपते हुए तेजस्वी यादव खुले मंच से उपेंद्र कुशवाहा को महागठबंधन में आने का निमंत्रण दे रहे हैं. लालू-राबड़ी के दौर में ओबीसी श्रेणी में आने वाली कुर्मी, कोयरी आदि यादवों से चिढ़ते रहे. अब तेजस्वी इन्हें करीब लाना चाहते हैं. MY समीकरण में दलितों का वोट जोड़ना चाहते हैं तेजस्वी हालिया चुनावों रिजल्ट के आधार पर तेजस्वी यादव समझ चुके हैं कि नरेंद्र मोदी+नीतीश कुमार की जोड़ी के सामने उनका मुस्लिम+यादव समीकरण सत्ता तक पहुंचाने में कारगर नहीं है. ऐसे में तेजस्वी यादव बिहार के करीब 13 फीसदी दलित+महादलित वोटरों को अपने पाले में लाना चाहते हैं. इसी रणनीति के तहत तेजस्वी पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को एनडीए से तोड़कर अपने साथ लाए हैं. इसके अलावा वे जेडीयू के बड़े दलित नेता उदय नारायण चौधरी के बगावती होने पर उन्हें आरजेडी में आने का न्योता दे रहे हैं. तेजस्वी यादव के इन सारे फैसलों से संकेते मिल रहे हैं कि वे लालू प्रसाद यादव की लीक से हटकर अपनी राजनीतिक गाड़ी बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं.
Share on Google Plus

0 comments:

Post a Comment