2019: बिहार में सियासी दांवपेच शुरू, सीट शेयरिंग पर जेडीयू ने बीजेपी के पाले में डाली गेंद, तो कांग्रेस की अलग रणनीति

नई दिल्ली : बिहार में 2019 लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दांवपेच का दौर शुरू हो गया है। खासतौर से बीजेपी, जेडीयू और कांग्रेस ने अपने-अपने हितों को आगे कर रणनीति तैयार करनी शुरू कर दी है। बीजेपी की सहयोगी जेडीयू ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक कर एनडीए के बीच सीटों के बंटवारे के मामले को बीजेपी के पाले में डालने की कोशिश की। दरअसल, पार्टी बिहार में लोकसभा चुनावों के लिए बीजेपी की तरफ से जेडीयू के हिस्से की सीटों को ऑफर किए जाने का इंतजार कर रही है। वहीं, महागठबंधन के दिनों में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के बीच पुल का काम करने वाली कांग्रेस ने अब सेक्युलर गठजोड़ बनाने की कवायद का हिस्सा नहीं बनने का फैसला किया है जबकि बिहार के मुख्यमंत्री का खेमा बीजेपी के साथ पार्टी की 'नाखुशी' को हवा देने में जुटा है। जैसे दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंककर पीता है, उसी तरह पुराने मामले से सबक सीख चुकी कांग्रेस ने प्रदेश के अपने नेताओं के एक धड़े को भी बता दिया है कि वे राजनीतिक दलों के साथ उनकी सौदेबाजी में मोहरा बनने से बचें। बिहार के कांग्रेस प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल इस हफ्ते प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात के लिए पटना में रहेंगे। इससे इस बात को बढ़ावा मिल रहा है कि कांग्रेस नीतीश के बजाय आरजेडी लीडरशिप की भावनाओं का सम्मान करेगी। कांग्रेस आरजेडी और जीतन राम मांझी के मौजूदा गठबंधन को टॉप प्राथमिकता दे रही है। फिलहाल कांग्रेस यह हिसाब लगाने में जुटी है कि मौजूदा हालात में नीतीश उनके लिए राजनीतिक तौर पर कितने अहम हो सकते हैं। 2014 में मोदी लहर में बुरी तरह पिटी और रक्षात्मक हुई आरजेडी और जेडीयू ने विजयरथ पर सवार बीजेपी को रोकने के लिए महागठबंधन बनाया था। तब से अगले चार साल में हुए उपचुनावों में मिली जीत से आरजेडी और कांग्रेस अलायंस खुद को एक उभरते हुए मोर्चे के तौर पर देखने लगा है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान जेडीयू ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव सहित सभी राजनीतिक मुद्दों पर खुद से अपने फैसला लेने का अधिकार दिया। जेडीयू के अलावा राम विलास पासवान की पार्टी- एलजेपी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी भी बिहार में एनडीए की सहयोगी हैं। बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं। जेडीयू सूत्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की मीटिंग के दौरान कई बार इसके संकेत दिए कि 2019 लोकसभा चुनाव में पार्टी को एनडीए में सम्मानजनक सीटें लड़ने के लिए ऑफर की जाएंगी। उधर, कांग्रेस को लगता कि है दिल्ली और बिहार दोनों जगह एनडीए के शासन और आरएसएस की गतिविधियों ने बिहार के ओबीसी, दलितों और मुसलमानों को आरजेडी की अगुआई वाले मोर्चे के साथ एकजुट कर दिया है। नीतीश के खिलाफ समाज के इस वर्ग की नाराजगी बढ़ती ही जा रही है और उन्हें बिहार में संघ परिवार के एजेंडे में सहयोग करने और उसे बढ़ावा देनेवाले नेता माना जाने लगा है। कांग्रेस हाईकमान को नीतीश कुमार के सीमित राजनीतिक आधार की समझ भी हो गई। उसे लगता है कि उनके लिए नीतीश कुमार से ज्यादा उपयोगी कुशवाहा साबित होंगे।
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