कोरोना महामारी के मद्देनजर निरंजनी अखाड़े ने महाकुंभ से हटने की घोषणा कर दी है. अगर साधुओं की संख्या की बात की जाए तो निरंजनी अखाड़ा देश के सबसे बड़े और प्रमुख अखाड़ों में है. जूना अखाड़े के बाद उसे सबसे ताकतवर माना जाता है. वो देश के 13 प्रमुख अखाड़ों में एक है. इसका एक परिचय ये भी है कि इसमें सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे साधू हैं, जिसमें डॉक्टर, प्रोफेसर और प्रोफेशनल शामिल हैं.
हरिद्वार महाकुंभ शुरू होने के बाद से 70 के आसपास वरिष्ठ साधू कोरोना पाजिटीव हो चुके हैं. ये संख्या लगातार बढ़ रही है. निरंजनी अखाड़े की हमेशा एक अलग छवि रही है. जानते हैं निरंजनी अखाड़े के बारे में. जिसके बारे में कहा जाता है कि ये हजारों साल पुराना है.
निरंजनी अखाड़ा की स्थापना सन् 904 में विक्रम संवत 960 कार्तिक कृष्णपक्ष दिन सोमवार को गुजरात की मांडवी नाम की जगह पर हुई थी. महंत अजि गिरि, मौनी सरजूनाथ गिरि, पुरुषोत्तम गिरि, हरिशंकर गिरि, रणछोर भारती, जगजीवन भारती, अर्जुन भारती, जगन्नाथ पुरी, स्वभाव पुरी, कैलाश पुरी, खड्ग नारायण पुरी, स्वभाव पुरी ने मिलकर अखाड़ा की नींव रखी. अखाड़ा का मुख्यालय तीर्थराज प्रयाग में है. उज्जैन, हरिद्वार, त्रयंबकेश्वर व उदयपुर में अखाड़े के आश्रम हैं.
एक रिपोर्ट की मानें तो शैव परंपरा के निरंजनी अखाड़े के करीब 70 फीसदी साधु-संतों ने उच्च शिक्षा प्राप्त की है. इनमें से कुछ डॉक्टर, कुछ वकील, प्रोफेसर, संस्कृत के विद्वान और आचार्य शामिल हैं.
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