खेल संघों में प्रशासनिक कमान खिलाड़ियों की बजाय राजनीतिकों के हाथों में - Sports federations

बीते सप्ताह ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में संपन्न हुए 31वें ओलंपिक खेलों की मैराथन दौड़ में हिस्सा लेने वाली भारतीय धाविका ओपी जैशा ने रियो से लौटने के बाद बताया कि वह मैराथन दौड़ पूरी करने के बाद बेहोश हो कर गिर पड़ी और उनकी मौत भी हो सकती थी, क्योंकि किसी भी भारतीय अधिकारी ने रेस के दौरान उन्हें पानी तक मुहैया नहीं करवाया.
जैशा का यह बयान देश में खेल संघों द्वारा बुनियादी जरूरतों की अवहेलना की एक और कहानी बयां करता है. खेल संघों में प्रशासनिक कमान खिलाड़ियों की बजाय राजनीतिकों के हाथों में होने को लेकर पहले भी काफी लिखा जा चुका है. लेकिन इस संबंध में बिल्कुल सही-सही आंकड़े इस प्रकार हैं.
  1.  देश में सिर्फ एक ही खेल संघ (भारतीय एथलेटिक्स महासंघ) ऐसा है जिसकी कमान किसी पूर्व खिलाड़ी के हाथ में है.
  2.  सिर्फ खेल संघों के शासी निकाय में पूर्व या मौजूदा खिलाड़ी शामिल हैं.
  3.  12 खेल संघ तो ऐसे हैं जिन्होंने अपने अध्यक्ष और अन्य सदस्यों के कार्यकाल के बारे में जानकारी तक सार्वजनिक नहीं की है.
  4.  सिर्फ दो खेल संघों के पास भविष्य की कार्ययोजना के संबंध में कोई रूपरेखा तैयार है.
  5.  विभिन्न खेल संघों के शासी निकाय में महिलाओं की भागीदारी दो से आठ फीसदी तक सीमित है. 34 फीसदी महिला भागीदारी के साथ सिर्फ हॉकी इंडिया (एचआई) इस मामले में अपवाद है.
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