विज्ञापन खर्च पर फंसी 'केजरीवाल सरकार'! Aam Aadmi Party Advertisement against Supreme Court Decision, Hindi Article

सच कहूँ तो दिल्ली सरकार की हालत देखकर जबरदस्त ढंग से 'दया भावना' जागृत होती है. बिचारे राजनीति में खूब होहल्ला करके आये कि ये बदल देंगे, वो बदल देंगे और जब 'कुर्सी' मिली तो पता चला कि उस पर लगी 'तौलिया' तक नहीं बदल सकते. यह बात दावे के साथ कही जा सकती है कि 'केजरीवाल एंड पार्टी' ने सत्ता मिलने से पहले केंद्रशासित प्रदेश होने का मतलब बारीकी से नहीं समझ होगा, अन्यथा दिल्ली की बजाय वह हरियाणा या किसी और राज्य के आम आदमियों को पकड़ते. अगर साफगोई से कहा जाए तो ताकत और हनक वाले मामलों में दिल्ली या फिर किसी भी दुसरे केंद्रशासित क्षेत्र की कुछ खास अहमियत है नहीं. हालाँकि, यह केजरीवाल और उनकी टीम (Aam Aadmi Party Advertisement against Supreme Court Decision, Hindi Article, New, Team of Kejriwal, Intelligence) की बुद्धिमानी होती कि वह 'गंभीरता' से कार्य करते रहते ताकि एलजी केंद्रीय गृहमंत्री पर एक विशेष जन दबाव रहता. आखिर 'मुख्यमंत्री' नाम अपने आप में एक बड़ा सिंबल है, किन्तु सबसे बड़ा सच तो ये है कि जो कुछ भी इस पद की थोड़ी बहुत इज्जत या ताकत थी, उसकी छीछालेदर खुद केजरीवाल ने कर दी है. मोदी-विरोध करना केजरीवाल का हक हो सकता है, किन्तु क्या वह दावा कर सकते हैं कि बिहार के सीएम नीतीश कुमार या बंगाल (पहले प. बंगाल) की सीएम ममता बनर्जी से ज्यादा बड़े मोदी-विरोधी हैं? वस्तुतः केजरीवाल पर 'भेड़िया आया, भेड़िया आया' वाली कथा पूरी तरह चरितार्थ होती है. यह कहानी तो हम सब जानते ही हैं कि जंगल में गए चरवाहे ने गाँव वालों को दो चार बार झूठ ही 'भेड़िया आया, भेड़िया आया' चिल्लाकर बुलाया और जब गाँव वाले आते थे तो वह हंसने लगता था. बाद में जब सच में भेड़िया आया तो उस चरवाहे के लाख पुकारने पर भी कोई गाँव वाला सामने नहीं आया. 

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इस कथा में मोदी बेशक 'भेड़िया' हों न हों किन्तु केजरीवाल पूरी तरह वही वाले 'चरवाहे' हैं, जिसका विश्वास वर्तमान में न जनता कर रही है, न बुद्धिजीवी या दुसरे लोग. कोढ़ में खाज़ वाली बात यह निकली है कि केजरीवाल की टीम रोज किसी न किसी स्कैंडल में फंस रही है तो उनकी सरकार के मंत्री दिल्ली को 'डेंगू और चिकनगुनिया' में पीड़ित छोड़ देश-विदेश की सैर कर रहे हैं, जिसे कथित तौर पर वह ज्ञानार्जन की संज्ञा दे देते हैं. इन सबसे इतर केजरीवाल सरकार जिस बड़े विवाद में फंसी नज़र आ रही है, वह है 'विज्ञापन' पर अंधाधुंध खर्च! गौरतलब है कि आम आदमी पार्टी की सरकार को विज्ञापन (Aam Aadmi Party Advertisement against Supreme Court Decision, Hindi Article, New, Ad Gurus) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों के उल्लंघन का दोषी पाया गया है. इस मामले में दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने शिकायत दर्ज कराई थी कि आम आदमी पार्टी अपने विज्ञापनों में सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का उल्लंघन कर रही है. इस सम्बन्ध में छपी ख़बरों के अनुसार केंद्र सरकार की गठित समिति ने आदेश दिया है कि दिल्ली के बाहर छपे विज्ञापनों में खर्च की गई रकम आम आदमी पार्टी को लौटानी होगी. समिति ने यह भी कहा है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सरकार सरकारी खजाने को अपने विज्ञापनों पर पानी की तरह बहा रही है और उन्हें इस पैसों को सरकारी खजाने में जमा करना चाहिए. साफ़ जाहिर है कि इस रिपोर्ट के बाद आम आदमी पार्टी निश्चित रूप से कठघरे में खड़ी हो सकती है. 


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बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त बीबी टंडन की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था, जिसमें जाने-माने विज्ञापन गुरू पीयूष पांडेय और वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा इस समिति के सदस्य हैं. यह भी बेहद दिलचस्प है कि अपने आदेश में समिति ने साफ़ कहा है कि दिल्ली सरकार शिकायतकर्ता के द्वारा की गई नौ शिकायतों में से छह में सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों के उल्लंघन की दोषी है. मतलब मामला दो तिहाई का है और ऐसे में बेहद मुश्किल होगी केजरीवाल को अपना बचाव करने में. नैतिकता का बारम्बार हवाला देने वाली पार्टी (Aam Aadmi Party Advertisement against Supreme Court Decision, Hindi Article, New, Morality of Politics) को इस प्रकार के निर्णयों से निश्चित रूप से झटका लग सकता है. वैसे भी केजरीवाल अंधाधुंध विज्ञापन देने के मामले में पहले से कुख्यात रहे हैं. विचार करने वाली बात है कि इन विज्ञापनों में दिल्ली के बाहर छपे विज्ञापन, ऐसे विज्ञापन जिनमें आम आदमी पार्टी का नाम छपा हो, दूसरे राज्यों की घटनाओं पर मुख्यमंत्री के विचारों का प्रचार और विपक्ष पर निशाना साधने वाले विज्ञापन शामिल किये गए हैं, जिन्हें समिति ने दोषी पाया है. देखना दिलचस्प होगा कि 'कोढ़ में खाज़' वाली स्थिति से अरविन्द केजरीवाल किस प्रकार निपटते हैं, क्योंकि अपनी सफाई में वह लाख कुछ कहें पर उनकी उस 'चरवाहे' वाली इमेज से शायद ही कोई समर्थन में आये. तुर्रा यह कि केजरीवाल की 'जीभ' की लंबाई कम हो गयी है, तो फिर .... !!!

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