नयी दिल्ली: दो निरंतर वर्ष के सूखे के बाद बेहतर मानसून रहने के कारण वर्ष 2016-17 के दौरान कृषि उत्पादन में फिर तेजी लौटने और उत्पादन रिकॉर्ड स्तर यानी 27 करोड़ टन हो जाने की उम्मीद है। लेकिन नोटबंदी और बिक्री से कम मूल्य प्राप्ति की मार से किसानों को निजात मिलती नहीं दिख रही है।
चालू वित्तवर्ष में कृषि क्षेत्र वृद्धि दर बढ़कर करीब 5% होने का अनुमान है, जो पिछले वर्ष 1.2% ही थी। अधिक वृद्धि दर का अनुमान देश के अधिकांश हिस्सों में बेहतर मानसून के कारण 13.5 करोड टन के रिकॉर्ड खरीफ खाद्यान्न उत्पादन तथा चालू रबी सत्र में भारी उत्पादन होने की संभावना है। कृषि सचिव शोभना पटनायक ने बताया, वर्ष के दौरान कृषि क्षेत्र ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है। हमने सूखे के वर्षों का सामना करने के बाद बेहतर मानूसन देखा है। सामान्य तौर पर खरीफ उत्पादन काफी अच्छा रहा है और रबी बुवाई भी बेहतर है। हमें इस वर्ष भारी उत्पादन होने की पूरी उम्मीद है। हालांकि कृषि विशेषज्ञों ने कुछ नोटों को चलन से बाहर करने के रबी फसल के उत्पादन पर पड़ने वाले प्रभाव और संभावित रूप से सर्दियां कम रहने से गेहूं के उत्पादन पर होने वाले प्रभावों के बारे में चिंता जताई है।
वहीं सचिव ने कहा कि सरकार फसल वर्ष 2016-17 के लिए अपने लक्ष्य को कम करने नहीं जा रही है। उन्होंने कहा, हमारी 27 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य हासिल करने की योजना है जबकि हमारा पिछला सबसे अधिक उत्पादन फसल वर्ष 2013-14 (जुलाई-जून) में 26 करोड़ 50.4 लाख टन का हुआ था। कृषि सचिव पटनायक ने कहा, सूखे के कारण पिछले वर्ष कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर कम थी। लेकिन उस स्तर से हम आगे जायेंगे। कृषि क्षेत्र के विकास के बारे में नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने कहा, दो सूखे के वर्षों का सामना करने के बाद इस बार असाधारण वृद्धि होगी। हमें इस वर्ष 5.5% की वृद्धि की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि तापमान में वृद्धि के कारण अगर पूरे देश भर में गेहूं की उत्पादकता में 3% की कमी आती है तो भी कृषि एवं सहायक क्षेत्रों की वृद्धि दर 5.3% रहेगी। कुछ बड़े नोटों का चलन प्रतिबंधित करने के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में पूछने पर पटनायक ने कहा कि ज्यादा प्रभाव नहीं हुआ है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में उधारी की प्रणाली मजबूत रही है और वर्ष दर वर्ष किसानों में जूझने की क्षमता बढ़ी है।
उन्होंने कहा, हमारे किसानों ने पिछले दो साल सूखे का सामना किया है लेकिन उसके बावजूद वे फिर से सामने आये हैं। मुझे नहीं लगता कि इसके कारण कोई प्रभाव हुआ है। इसके उलट किसान संगठनों के साथ साथ पूर्व कृषि मंत्री शरद पवार ने कुछ नोटों को चलन से बाहर करने के दुष्प्रभावों के बारे में चिंता जताई है। उनका कहना है कि इसके कारण किसान अपनी रबी फसल के लिए गुणवत्ता वाले बीजों और उर्वरकों को खरीद नहीं पाये तथा मांग नदारद होने से वे अपनी फसलों को बेचने में समस्या का सामना कर रहे हैं। चालू वर्ष के खरीफ सत्र में भारी उत्पादन होने और रबी सत्र में अच्छी फसल होने की उम्मीदों के विपरीत घरेलू और वैश्विक जिंसों की कीमतें कमजोर रहने के साथ बिक्री से होने वाली कम मूल्य प्राप्ति के कारण किसानों की स्थिति दयनीय बनी हुई है।
देश में 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर करने से फलों और सब्जियों की घरेलू मांग प्रभावित हुई है जिसके कारण किसानों को काफी कम मूल्य पर इनकी बिक्री करने को बाध्य होना पड़ रहा है। किसानों की समस्याओं के बारे में बात करते हुए कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी ने कहा, इस वर्ष उत्पादन फिर से बढ़ने की संभावना है और यह पिछले वर्ष से कहीं बेहतर रहने की उम्मीद है। हालांकि किसान पहले से ऋण बोझ से दबे हैं। कपास, बासमती चावल, कुछ नोटों के अमान्यीकरण के बाद कई ताजा फलों और सब्जियों के भाव में भी मंदा है। इन सब स्थितियों के कारण अधिक उत्पादन होने के बावजूद किसानों को अधिक लाभ नहीं मिलेगा। वर्ष 2016 की खराब शुरुआत हुई जहां लगातार दूसरे साल सूखे के कारण देश का कुल खाद्यान्न उत्पादन 2015-16 के फसल वर्ष में 25.2 करोड़ टन पर पूर्ववत बना रहा।
दलहन उत्पादन घटकर 1.65 करोड़ टन रह गया जिसके कारण देश के अधिकांश भागों में इसकी अधिक कीमतें बनी रहीं। इस वजह से कीमतों को कम करने एवं उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए विभिन्न पहल करने के लिए सरकार को चाक चौबंद रहना पड़ा। स्थानीय आपूर्ति बढ़ाने के लिए घरेलू खरीद और आयात जैसे उपायों ने तुअर और उड़द की कीमतें 200 रुपये किलो के स्तर से कम करने में मदद की लेकिन चने की कीमतें अभी भी अधिक बनी हुई हैं। सरकारी अनुमान के हिसाब से गेहूं उत्पादन 8.6 करोड़ टन से बढ़कर नौ करोड़ 35.5 लाख टन हो गया लेकिन एफसीआई की खरीद में भारी कमी आई और वर्ष के अंत तक गेहूं और इसके उत्पादों की कीमतें बढ़ने लगीं। सरकार ने घरेलू आपूर्ति को बढ़ाने के लिए गेहूं पर आयात शुल्क को समाप्त कर दिया।
नकदी संकट से प्रभावित किसानों को राहत के लिए सरकार ने किसानों को नवंबर-दिसंबर में बकाया फसल ऋण पर 3% की अतिरिक्त ब्याज सब्सिडी का लाभ लेने के लिए ऋण भुगतान की सीमा दो महीने बढ़ा दी है। इससे पहले सरकार ने किसानों को केंद्र और राज्य की बीज कंपनियों के अलावा आईसीएआर तथा केंद्रीय विश्वविद्यालयों से बीज की खरीद पुराने 500 के नोट से करने की अनुमति दी थी। खाद्य मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के लिए पाम तेल और आलू पर भी आयात शुल्क को कम किया गया। कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए चीनी मिलों पर स्टॉक रखने की सीमा को लागू किया गया। हालांकि चीनी की बढ़ी हुई घरेलू दरों ने चीनी उद्योगों को अपने बकाये को कम करने में मदद की।
वर्ष के दौरान सरकार ने देश भर में सफलतापूर्वक ऐतिहासिक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (एनएफएसए) को लागू किया। किसानों की आय को बढ़ाने के लिए नई फसल बीमा योजना तथा देश की 585 मंडियों को इलेक्ट्रॉनिक व्यापार मंच से जोड़ने वाले ‘ईनाम’ जैसे कार्यक्रमों की घोषणा की गई। इस वर्ष के बजट में सरकार ने कृषि रिण की सीमा को 50,000 करोड़ रुपये बढ़ाते हुए चालू वित्तवर्ष के लिए नौ लाख करोड़ कर दिया तथा कृषि क्षेत्र में तमाम पहलकदमियों के वित्तपोषण करने के लिए सभी करयोग्य सेवाओं पर 0.5% का कृषि कल्याण उपकर (सेस) लगाया।
प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन ने इस नई योजना का स्वागत किया लेकिन इसे सही तरह से लागू करने पर जोर दिया। स्वामीनाथन का कहना है कि सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के तहत उत्पादन लागत से 50% अधिक का भुगतान करना चाहिए। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के पूर्व चेयरमैन गुलाटी ने भी कृषि योजनाओं पर सही अमल नहीं किये जाने के प्रति चिंता जताई और कहा, सरकार को पूरी तरह से कृषि पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिये और कुछ कार्यक्रमों को सही तरीके से लागू करने की कोशिश करनी चाहिये।
मई के महीने में कृषि मंत्रालय ने कपास बीज के बाजार का विनियमन करने के लिए एक अधिसूचना जारी की लेकिन जैव प्रौद्योगिकी कंपनियों के विरोध के कारण उसे इसे वापस लेना पड़ा। दिल्ली विश्वविद्यालय के ‘सेन्टर फॉर जेनेटिक मैनुपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स’ द्वारा विकसित जीन संवर्धित सरसों पूरे साल खबरों में रही। जहां नियामकीय निकाय जीईएसी इसकी वाणिज्यिक खेती के पक्ष में था जबकि हरित कार्यकर्तरआ के साथ साथ आरएसएस समर्थित स्वदेशी जागरण मंच का इसको लेकर घोर विरोध था।
जीएम फसलों की खेती पर सरकार के रख की अनिश्चितताओं के बीच भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक त्रिलोचन महापात्र ने कहा कि शोध के परिप्रेक्ष्य से हमारे द्वारा विकसित ट्रांसजेनिक फसलों को तैयार रखना होगा चाहे सरकार उसके व्यावसायिक खेती को मंजूरी दे अथवा नहीं। उन्होंने कहा कि बैंगन, टमाटर, केला, अरंडी, ज्वार जैसी पांच ट्रांसजेनिक फसलें बड़े पैमाने पर खेत परीक्षण के लिए तैयार हैं और कई जीएम फसल सीमित हिस्से में परीक्षण किये जाने के लिए तैयार हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि नये साल में सरकार का जीएम फसलों खासकर खाद्य फसलों की खेती को अनुमति देने की ओर क्या रख रहता है। मौजूदा समय में सरकार ने बीटी कपास की वाणिज्यिक खेती को अनुमति दी हुई है और हरित कार्यकर्ताओं के विरोध के कारण बीटी बैंगन पर रोक लगी है।
वहीं सचिव ने कहा कि सरकार फसल वर्ष 2016-17 के लिए अपने लक्ष्य को कम करने नहीं जा रही है। उन्होंने कहा, हमारी 27 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य हासिल करने की योजना है जबकि हमारा पिछला सबसे अधिक उत्पादन फसल वर्ष 2013-14 (जुलाई-जून) में 26 करोड़ 50.4 लाख टन का हुआ था। कृषि सचिव पटनायक ने कहा, सूखे के कारण पिछले वर्ष कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर कम थी। लेकिन उस स्तर से हम आगे जायेंगे। कृषि क्षेत्र के विकास के बारे में नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने कहा, दो सूखे के वर्षों का सामना करने के बाद इस बार असाधारण वृद्धि होगी। हमें इस वर्ष 5.5% की वृद्धि की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि तापमान में वृद्धि के कारण अगर पूरे देश भर में गेहूं की उत्पादकता में 3% की कमी आती है तो भी कृषि एवं सहायक क्षेत्रों की वृद्धि दर 5.3% रहेगी। कुछ बड़े नोटों का चलन प्रतिबंधित करने के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में पूछने पर पटनायक ने कहा कि ज्यादा प्रभाव नहीं हुआ है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में उधारी की प्रणाली मजबूत रही है और वर्ष दर वर्ष किसानों में जूझने की क्षमता बढ़ी है।
उन्होंने कहा, हमारे किसानों ने पिछले दो साल सूखे का सामना किया है लेकिन उसके बावजूद वे फिर से सामने आये हैं। मुझे नहीं लगता कि इसके कारण कोई प्रभाव हुआ है। इसके उलट किसान संगठनों के साथ साथ पूर्व कृषि मंत्री शरद पवार ने कुछ नोटों को चलन से बाहर करने के दुष्प्रभावों के बारे में चिंता जताई है। उनका कहना है कि इसके कारण किसान अपनी रबी फसल के लिए गुणवत्ता वाले बीजों और उर्वरकों को खरीद नहीं पाये तथा मांग नदारद होने से वे अपनी फसलों को बेचने में समस्या का सामना कर रहे हैं। चालू वर्ष के खरीफ सत्र में भारी उत्पादन होने और रबी सत्र में अच्छी फसल होने की उम्मीदों के विपरीत घरेलू और वैश्विक जिंसों की कीमतें कमजोर रहने के साथ बिक्री से होने वाली कम मूल्य प्राप्ति के कारण किसानों की स्थिति दयनीय बनी हुई है।
देश में 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर करने से फलों और सब्जियों की घरेलू मांग प्रभावित हुई है जिसके कारण किसानों को काफी कम मूल्य पर इनकी बिक्री करने को बाध्य होना पड़ रहा है। किसानों की समस्याओं के बारे में बात करते हुए कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी ने कहा, इस वर्ष उत्पादन फिर से बढ़ने की संभावना है और यह पिछले वर्ष से कहीं बेहतर रहने की उम्मीद है। हालांकि किसान पहले से ऋण बोझ से दबे हैं। कपास, बासमती चावल, कुछ नोटों के अमान्यीकरण के बाद कई ताजा फलों और सब्जियों के भाव में भी मंदा है। इन सब स्थितियों के कारण अधिक उत्पादन होने के बावजूद किसानों को अधिक लाभ नहीं मिलेगा। वर्ष 2016 की खराब शुरुआत हुई जहां लगातार दूसरे साल सूखे के कारण देश का कुल खाद्यान्न उत्पादन 2015-16 के फसल वर्ष में 25.2 करोड़ टन पर पूर्ववत बना रहा।
दलहन उत्पादन घटकर 1.65 करोड़ टन रह गया जिसके कारण देश के अधिकांश भागों में इसकी अधिक कीमतें बनी रहीं। इस वजह से कीमतों को कम करने एवं उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए विभिन्न पहल करने के लिए सरकार को चाक चौबंद रहना पड़ा। स्थानीय आपूर्ति बढ़ाने के लिए घरेलू खरीद और आयात जैसे उपायों ने तुअर और उड़द की कीमतें 200 रुपये किलो के स्तर से कम करने में मदद की लेकिन चने की कीमतें अभी भी अधिक बनी हुई हैं। सरकारी अनुमान के हिसाब से गेहूं उत्पादन 8.6 करोड़ टन से बढ़कर नौ करोड़ 35.5 लाख टन हो गया लेकिन एफसीआई की खरीद में भारी कमी आई और वर्ष के अंत तक गेहूं और इसके उत्पादों की कीमतें बढ़ने लगीं। सरकार ने घरेलू आपूर्ति को बढ़ाने के लिए गेहूं पर आयात शुल्क को समाप्त कर दिया।
नकदी संकट से प्रभावित किसानों को राहत के लिए सरकार ने किसानों को नवंबर-दिसंबर में बकाया फसल ऋण पर 3% की अतिरिक्त ब्याज सब्सिडी का लाभ लेने के लिए ऋण भुगतान की सीमा दो महीने बढ़ा दी है। इससे पहले सरकार ने किसानों को केंद्र और राज्य की बीज कंपनियों के अलावा आईसीएआर तथा केंद्रीय विश्वविद्यालयों से बीज की खरीद पुराने 500 के नोट से करने की अनुमति दी थी। खाद्य मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के लिए पाम तेल और आलू पर भी आयात शुल्क को कम किया गया। कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए चीनी मिलों पर स्टॉक रखने की सीमा को लागू किया गया। हालांकि चीनी की बढ़ी हुई घरेलू दरों ने चीनी उद्योगों को अपने बकाये को कम करने में मदद की।
वर्ष के दौरान सरकार ने देश भर में सफलतापूर्वक ऐतिहासिक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (एनएफएसए) को लागू किया। किसानों की आय को बढ़ाने के लिए नई फसल बीमा योजना तथा देश की 585 मंडियों को इलेक्ट्रॉनिक व्यापार मंच से जोड़ने वाले ‘ईनाम’ जैसे कार्यक्रमों की घोषणा की गई। इस वर्ष के बजट में सरकार ने कृषि रिण की सीमा को 50,000 करोड़ रुपये बढ़ाते हुए चालू वित्तवर्ष के लिए नौ लाख करोड़ कर दिया तथा कृषि क्षेत्र में तमाम पहलकदमियों के वित्तपोषण करने के लिए सभी करयोग्य सेवाओं पर 0.5% का कृषि कल्याण उपकर (सेस) लगाया।
प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन ने इस नई योजना का स्वागत किया लेकिन इसे सही तरह से लागू करने पर जोर दिया। स्वामीनाथन का कहना है कि सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के तहत उत्पादन लागत से 50% अधिक का भुगतान करना चाहिए। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के पूर्व चेयरमैन गुलाटी ने भी कृषि योजनाओं पर सही अमल नहीं किये जाने के प्रति चिंता जताई और कहा, सरकार को पूरी तरह से कृषि पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिये और कुछ कार्यक्रमों को सही तरीके से लागू करने की कोशिश करनी चाहिये।
मई के महीने में कृषि मंत्रालय ने कपास बीज के बाजार का विनियमन करने के लिए एक अधिसूचना जारी की लेकिन जैव प्रौद्योगिकी कंपनियों के विरोध के कारण उसे इसे वापस लेना पड़ा। दिल्ली विश्वविद्यालय के ‘सेन्टर फॉर जेनेटिक मैनुपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स’ द्वारा विकसित जीन संवर्धित सरसों पूरे साल खबरों में रही। जहां नियामकीय निकाय जीईएसी इसकी वाणिज्यिक खेती के पक्ष में था जबकि हरित कार्यकर्तरआ के साथ साथ आरएसएस समर्थित स्वदेशी जागरण मंच का इसको लेकर घोर विरोध था।
जीएम फसलों की खेती पर सरकार के रख की अनिश्चितताओं के बीच भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक त्रिलोचन महापात्र ने कहा कि शोध के परिप्रेक्ष्य से हमारे द्वारा विकसित ट्रांसजेनिक फसलों को तैयार रखना होगा चाहे सरकार उसके व्यावसायिक खेती को मंजूरी दे अथवा नहीं। उन्होंने कहा कि बैंगन, टमाटर, केला, अरंडी, ज्वार जैसी पांच ट्रांसजेनिक फसलें बड़े पैमाने पर खेत परीक्षण के लिए तैयार हैं और कई जीएम फसल सीमित हिस्से में परीक्षण किये जाने के लिए तैयार हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि नये साल में सरकार का जीएम फसलों खासकर खाद्य फसलों की खेती को अनुमति देने की ओर क्या रख रहता है। मौजूदा समय में सरकार ने बीटी कपास की वाणिज्यिक खेती को अनुमति दी हुई है और हरित कार्यकर्ताओं के विरोध के कारण बीटी बैंगन पर रोक लगी है।
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