नई दिल्ली: दिल्ली पुलिस द्वारा गुजरात के वडगाम के विधायक जिग्नेश मेवाणी को संसद मार्ग पर युवा हुंकार रैली करने की इजाजत न दिए जाने के बावजूद वह अपने समर्थकों के साथ जंतर-मंतर के पास रैली की. उन्होंने कहा है कि 'मैं विधायक हूं, अपनी बात जरूर कहूंगा'. इस दौरान जिग्नेश के साथ भारी संख्या में उनके समर्थक यहां मौजूद हैं. ऐहतियातन संसद मार्ग पर भारी संख्या में सुरक्षा बल की तैनाती की गई है. सूत्रों का कहना है कि अगर जिग्नेश मार्च करते हैं तो उन्हें हिरासत में लिया जाएगा.
इससेे पहले जिग्नेश के सहयोगी अखिल गोगोई ने कहा कि 'हम रैली करेंगे'. दिल्ली पुलिस ने एनजीटी का हवाला देते हुए उन्हें इजाजत नहीं दी. रैली को दिल्ली पुलिस से इजाजत न मिलने पर जिग्नेश मेवाणी ने न्यूज एजेंसी ANI से कहा कि 'दुर्भाग्यपूर्ण. हम सिर्फ लोकतांत्रिक और शांतिपूर्वक तरीके से प्रदर्शन करने जा रहे थे, लेकिन सरकार हमें निशाना बना रही है. एक निर्वाचित प्रतिनिधि को बोलने की अनुमति नहीं दी जा रही है'.
वहीं, दिल्ली पुलिस के ज्वॉइंट सीपी अजय चौधरी ने कहा कि 'किसी को इजाजत नहीं दी गई है. एनजीटी ने आदेश दिया है कि जंतर-मंतर पर कोई प्रदर्शन नहीं होगा. लिहाजा, हमने आयोजकों से वैकल्पिक स्थान रामलीला मैदान में प्रदर्शन करने को कहा है'.
दरअसल, दिल्ली पुलिस की तरफ से संसद मार्ग पर रैली के लिए वडगाम के विधायक जिग्नेश मेवाणी के अनुरोध को नामंजूर करने के बाद भी दलित नेता और गुजरात से पहली बार विधायक बने जिग्नेश मेवाणी संसद मार्ग से पीएम निवास तक 'युवा हुंकार रैली' रैली करने पर अड़े रहे. जिग्नेश मेवाणी की 'युवा हुंकार रैली' से पहले क्षेत्र में पोस्टर देखे गए.
जिग्नेश मेवाणी ने भी ट्वीट कर बीजेपी को चुनौती दी. जिग्नेश ने लिखा कि 'बांध ले बिस्तर बीजेपी, राज अब जाने को है, ज़ुल्म काफ़ी कर चुके, पब्लिक बिगड़ जाने को है'. दिल्ली पुलिस के डीसीपी ने ट्वीट कर जानकारी दी कि आयोजकों को किसी और जगह पर जाने का सुझाव दिया जा रहा है, लेकिन आयोजक मान नहीं रहे हैं. सामाजिक न्याय’ रैली या ‘युवा हुंकार रैली’ की योजना तैयार की गई थी, जिसे मेवाणी और असम के किसान नेता अखिल गोगोई संबोधित करेंगे.
एनजीटी ने पिछले साल पांच अक्तूबर को अधिकारियों को जंतर मंतर रोड पर धरना, प्रदर्शन, लोगों के जमा होने, भाषण देने और लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल संबंधी गतिविधियां तत्काल रोकने का आदेश दिया था.
आयोजकों में से एक और जेएनयू के छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष मोहित कुमार पांडेय ने कहा, 'इस कार्यक्रम को रोकने के लिए बहुत प्रयास किए जा रहे हैं और यहां तक कि कुछ मीडिया घराने गलत सूचना भी फैला रहे हैं कि रैली के लिए इजाजत नहीं दी गई है'. पांडेय ने बताया कि दो जनवरी को रैली की घोषणा किए जाने के बाद से, 'मेवाणी को एक देशद्रोही और शहरी नक्सली बताने वाले पोस्टरों पर बहुत सारा पैसा खर्च किया गया है'. उन्होंने कहा कि रैली पूर्व निर्धारित समय पर ही होगी. मेवाणी से उनकी प्रतिक्रिया के लिए संपर्क नहीं किया जा सका.
कहा जा रहा है कि दिल्ली पुलिस ने गणतंत्र दिवस को मेवाणी को रैली करने की इजाजत नहीं दी है. पुलिस का कहना है कि यदि जबरदस्ती रैली की गई तो कार्रवाई की जाएगी. गौरतलब है कि जिग्नेश मेवाणी ने पार्लियामेंट स्ट्रीट में 9 जनवरी को सामाजिक न्याय के लिए 'युवा हुंकार रैली व जनसभा' करने का ऐलान करने की घोषणा की थी. मेवाणी की रैली का मकसद देश में दलितों पर हो रहे अत्याचार और भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर को रिहा करने की मांग की गई थी. गणतंत्र दिवस के दौरान पूरे नई दिल्ली इलाके में धारा 144 लगा दी जाती है. इस दौरान किसी भी तरह के कार्यक्रम की इजाजत नहीं दी जाती है. पुलिस ने कहा कि यदि किसी भी तरह धारा 144 को तोड़ा गया तो कानून के तहत कार्रवाई की जाएगी.
आपको बता दें कि जिग्नेश मेवाणी ने भीमा-कोरेगांव में दलितों के कार्यक्रम के दौरान हुई हिंसा के बाद उनपर दर्ज किए गए केस को लेकर बीजेपी और आरएसएस पर निशाना साधा था. 5 जनवरी को दिल्ली में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में मीडिया से बात करते हुए गुजरात की वडगाम विधानसभा सीट से हाल ही में विधायक चुने गए मेवाणी ने प्रधानमंत्री मोदी से अपील की कि वह देश के दलितों के खिलाफ हो रही हिंसा पर चुप्पी तोड़ें.
मेवाणी ने कहा था, 'खुद को आंबेडकरवादी बताने वाले पीएम मोदी चुप क्यों हैं? उन्हें अपना रुख साफ करना चाहिए कि दलितों को शांतिपूर्ण तरीके से रैलियां करने का हक है कि नहीं'. मेवाणी ने बताया था कि 9 जनवरी को आहूत अपनी सामाजिक न्याय के लिए युवा हुंकार रैली के दौरान वह मनुस्मृति एवं संविधान की प्रतियां लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) जाएंगे और मोदी से कहेंगे कि वह दोनों में से किसी एक को चुनें.
गौरतलब है कि बीते 31 दिसंबर को पुणे में भीमा कोरेगांव की लड़ाई के 200 साल पूरे होने की याद में आयोजित कार्यक्रम 'एलगार परिषद' में मेवाणी और जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाने वाले कश्मीरी छात्र उमर खालिद ने हिस्सा लिया था. पुणे के एक निवासी की ओर से दाखिल शिकायत के मुताबिक, उनके ‘‘भड़काऊ’’ भाषणों का मकसद समुदायों के बीच दुर्भावना पैदा करना था, जिसकी वजह से एक जनवरी को भीमा कोरेगांव में हिंसा हुई.
इससेे पहले जिग्नेश के सहयोगी अखिल गोगोई ने कहा कि 'हम रैली करेंगे'. दिल्ली पुलिस ने एनजीटी का हवाला देते हुए उन्हें इजाजत नहीं दी. रैली को दिल्ली पुलिस से इजाजत न मिलने पर जिग्नेश मेवाणी ने न्यूज एजेंसी ANI से कहा कि 'दुर्भाग्यपूर्ण. हम सिर्फ लोकतांत्रिक और शांतिपूर्वक तरीके से प्रदर्शन करने जा रहे थे, लेकिन सरकार हमें निशाना बना रही है. एक निर्वाचित प्रतिनिधि को बोलने की अनुमति नहीं दी जा रही है'.
वहीं, दिल्ली पुलिस के ज्वॉइंट सीपी अजय चौधरी ने कहा कि 'किसी को इजाजत नहीं दी गई है. एनजीटी ने आदेश दिया है कि जंतर-मंतर पर कोई प्रदर्शन नहीं होगा. लिहाजा, हमने आयोजकों से वैकल्पिक स्थान रामलीला मैदान में प्रदर्शन करने को कहा है'.
दरअसल, दिल्ली पुलिस की तरफ से संसद मार्ग पर रैली के लिए वडगाम के विधायक जिग्नेश मेवाणी के अनुरोध को नामंजूर करने के बाद भी दलित नेता और गुजरात से पहली बार विधायक बने जिग्नेश मेवाणी संसद मार्ग से पीएम निवास तक 'युवा हुंकार रैली' रैली करने पर अड़े रहे. जिग्नेश मेवाणी की 'युवा हुंकार रैली' से पहले क्षेत्र में पोस्टर देखे गए.
जिग्नेश मेवाणी ने भी ट्वीट कर बीजेपी को चुनौती दी. जिग्नेश ने लिखा कि 'बांध ले बिस्तर बीजेपी, राज अब जाने को है, ज़ुल्म काफ़ी कर चुके, पब्लिक बिगड़ जाने को है'. दिल्ली पुलिस के डीसीपी ने ट्वीट कर जानकारी दी कि आयोजकों को किसी और जगह पर जाने का सुझाव दिया जा रहा है, लेकिन आयोजक मान नहीं रहे हैं. सामाजिक न्याय’ रैली या ‘युवा हुंकार रैली’ की योजना तैयार की गई थी, जिसे मेवाणी और असम के किसान नेता अखिल गोगोई संबोधित करेंगे.
एनजीटी ने पिछले साल पांच अक्तूबर को अधिकारियों को जंतर मंतर रोड पर धरना, प्रदर्शन, लोगों के जमा होने, भाषण देने और लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल संबंधी गतिविधियां तत्काल रोकने का आदेश दिया था.
आयोजकों में से एक और जेएनयू के छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष मोहित कुमार पांडेय ने कहा, 'इस कार्यक्रम को रोकने के लिए बहुत प्रयास किए जा रहे हैं और यहां तक कि कुछ मीडिया घराने गलत सूचना भी फैला रहे हैं कि रैली के लिए इजाजत नहीं दी गई है'. पांडेय ने बताया कि दो जनवरी को रैली की घोषणा किए जाने के बाद से, 'मेवाणी को एक देशद्रोही और शहरी नक्सली बताने वाले पोस्टरों पर बहुत सारा पैसा खर्च किया गया है'. उन्होंने कहा कि रैली पूर्व निर्धारित समय पर ही होगी. मेवाणी से उनकी प्रतिक्रिया के लिए संपर्क नहीं किया जा सका.
कहा जा रहा है कि दिल्ली पुलिस ने गणतंत्र दिवस को मेवाणी को रैली करने की इजाजत नहीं दी है. पुलिस का कहना है कि यदि जबरदस्ती रैली की गई तो कार्रवाई की जाएगी. गौरतलब है कि जिग्नेश मेवाणी ने पार्लियामेंट स्ट्रीट में 9 जनवरी को सामाजिक न्याय के लिए 'युवा हुंकार रैली व जनसभा' करने का ऐलान करने की घोषणा की थी. मेवाणी की रैली का मकसद देश में दलितों पर हो रहे अत्याचार और भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर को रिहा करने की मांग की गई थी. गणतंत्र दिवस के दौरान पूरे नई दिल्ली इलाके में धारा 144 लगा दी जाती है. इस दौरान किसी भी तरह के कार्यक्रम की इजाजत नहीं दी जाती है. पुलिस ने कहा कि यदि किसी भी तरह धारा 144 को तोड़ा गया तो कानून के तहत कार्रवाई की जाएगी.
आपको बता दें कि जिग्नेश मेवाणी ने भीमा-कोरेगांव में दलितों के कार्यक्रम के दौरान हुई हिंसा के बाद उनपर दर्ज किए गए केस को लेकर बीजेपी और आरएसएस पर निशाना साधा था. 5 जनवरी को दिल्ली में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में मीडिया से बात करते हुए गुजरात की वडगाम विधानसभा सीट से हाल ही में विधायक चुने गए मेवाणी ने प्रधानमंत्री मोदी से अपील की कि वह देश के दलितों के खिलाफ हो रही हिंसा पर चुप्पी तोड़ें.
मेवाणी ने कहा था, 'खुद को आंबेडकरवादी बताने वाले पीएम मोदी चुप क्यों हैं? उन्हें अपना रुख साफ करना चाहिए कि दलितों को शांतिपूर्ण तरीके से रैलियां करने का हक है कि नहीं'. मेवाणी ने बताया था कि 9 जनवरी को आहूत अपनी सामाजिक न्याय के लिए युवा हुंकार रैली के दौरान वह मनुस्मृति एवं संविधान की प्रतियां लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) जाएंगे और मोदी से कहेंगे कि वह दोनों में से किसी एक को चुनें.
गौरतलब है कि बीते 31 दिसंबर को पुणे में भीमा कोरेगांव की लड़ाई के 200 साल पूरे होने की याद में आयोजित कार्यक्रम 'एलगार परिषद' में मेवाणी और जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाने वाले कश्मीरी छात्र उमर खालिद ने हिस्सा लिया था. पुणे के एक निवासी की ओर से दाखिल शिकायत के मुताबिक, उनके ‘‘भड़काऊ’’ भाषणों का मकसद समुदायों के बीच दुर्भावना पैदा करना था, जिसकी वजह से एक जनवरी को भीमा कोरेगांव में हिंसा हुई.
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