कुछ कम्युनल लोगों ने जाकर भड़काई महाराष्ट्र हिंसा - sharad pawar mumbai maharashtra violence

नई दिल्ली: महाराष्ट्र हिंसा पर घमासान रुकने का नाम नहीं ले रहा है. गुरुवार को राज्यसभा में भी हिंसा का मामला उठा. बसपा, एनसीपी, सपा समेत अन्य विपक्षी पार्टियों ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरा.

एनसीपी नेता शरद पवार ने इस मुद्दे पर कहा कि ब्रिटिश की फौज में महार रेजमेंट थी, आज भी है. देश की रक्षा में सहयोग देने वाली रेजमेंट है. इस रेजमेंट ने पेशवा को हराया था. जहां हराया वहां दो साल से अपनी श्रद्धा से दलित समुदाय के लोग अपनी भावना व्यक्त करते हैं. मैं 50 साल से खुद जानता हूं. रास्ते में जितने भी गांव है, गांव वाले मदद करते हैं, सुविधा देते हैं.

शरद पवार ने कहा कि कुछ कम्युनल लोगों ने वहां जाकर, इन दोनों का नाम मैं लेना नहीं चाहता. इनके खिलाफ केस हुआ, जांच हो रही है इसलिए इन पर ज्यादा बोलना ठीक नहीं है. उन्होंने बताया कि दलित शख्स की समाधि पर हमला करने की कोशिश हुई. एक तारीख को लाखों लोगों पर गए, पत्थरबाजी हो गई, अगर सबको मालूम था तो क्यों नहीं ध्यान दिया. इसलिए ये स्थिति पैदा हो गई. मैं अपील करता हूं, जो हो गया हो गया, समाज के दोनों लोगों को शांति लाने के लिए एक साथ आना चाहिए.


शिवसेना के संजय राउत ने कहा कि महाराष्ट्र में जो कुछ हो रहा है दुखद है. जो लोग ज्यादा बातें कर रहे हैं उन्हें इतिहास की जानकारी नहीं है. हालात और भी खराब हो सकते थे लेकिन राज्य सरकार ने प्रभावी तरीके से संभाल लिया. हिंदूवादी संगठनों पर ज्यादा आरोप लग रहे हैं.

उन्होंने कहा कि ब्रिटिश नीति रही है कि डिवाइड एंड रूल रही, उसी पर पुणे में काम किया गया. महाराष्ट्र, मुंबई में जो परिस्थिति बनी, आर्थिक शहर को खत्म करने के लिए साजिश हुई. राज्य सरकार ही नहीं केंद्र को ध्यान देना चाहिए.



बीजेपी सांसद अमर शंकर साबले ने कहा कि जिग्नेश मेवाणी और उमर खालिद ने वहां पर भड़काऊ भाषण दिए हैं, जिसके कारण महाराष्ट्र का वातावरण बिगड़ा है. दलितों को ऊपर जो अत्याचार हुआ है, उसकी निंदा होनी चाहिए.



केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने राज्यसभा में कहा कि 31 तारीख को मैं गया था. दोनों समाज के लोगों में मेल मिलाप हो गया था. लेकिन इस हिंसा के पीछे जो भी हों, उन पर कड़ी कार्रवाई हो, सीएम ने कार्रवाई का भरोसा दिया है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस की सरकार में अत्याचार होते हैं, कोई सरकार अत्याचार करने बोलती है? इस मुद्दे का राजनीतिकरण न होना चाहिए. 45 हजार दलितों पर हर साल अत्याचार होता है, हमें विरोध करना चाहिए.



सीपीआई नेता डी राजा ने कहा कि हम लोग इस घटना की पूरी तरह से निंदा करते हैं. दलितों को महाराष्ट्र में दबाया जा रहा है, कुछ लोगों की नीति दलितों को दबाने वाली है. राज्यसभा में डीएमके की कनिमोझी ने कहा कि सरकार सताए हुए तबकों की सुरक्षा के लिए कोई कदम नहीं उठा रही. महाराष्ट्र हिंसा की न्यायिक जांच होनी चाहिए.





भीमा-कोरेगांव लड़ाई की सालगिरह पर भड़की हिंसा का असर समूचे महाराष्ट्र पर पड़ा. बुधवार को दलित नेता प्रकाश अंबेडकर की अगुवाई में कई संगठनों ने राज्य बंद बुलाया. इस दौरान मुंबई समेत कई इलाकों में हिंसा हुई. मुंबई पुलिस ने कुल 25 लोगों पर एफआईआर दर्ज की है, इसके अलावा कुल 300 लोगों को हिरासत में लिया गया है.



दलित नेता जिग्नेश मेवाणी और छात्र नेता उमर खालिद पर सेक्शन 153(A), 505, 117 के तहत पुणे में एफआईआर दर्ज हुई है. इन दोनों पर पुणे में हुए कार्यक्रम के दौरान भड़काऊ भाषण देने का आरोप है.

आपको बता दें कि हिंसा के बाद बुधवार को दलित संगठनों ने महाराष्ट्र बंद बुलाया था. जो एक तरह से सफल साबित हुआ था, बुधवार को महाराष्ट्र में कई जगह हिंसा हुई, बसों को जलाया गया, धरना प्रदर्शन भी हुए थे. बुधवार को भी महाराष्ट्र के साथ गुजरात में भी कई जगह ऐसा ही देखने को मिला था. राजकोट के धोराजी में कुछ अज्ञात लोगों ने सरकारी बस को आग के हवाले कर दिया था. वापी में भी दलित सेना ने हाइवे जाम किया था.



मालूम हो कि बीते सोमवार को भीमा-कोरेगांव लड़ाई के 200 साल पूरे होने की खुशी में कार्यक्रम आयोजित किया गया था. इस बीच अचानक हिंसा भड़क गई. इस हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी, जिसके बाद यह हिंसा पूरे महाराष्ट्र में फैल गई. पुणे, अकोला, औरंगाबाद और ठाणे से लेकर मुंबई तक में हालात बेकाबू हो गए. इसके बाद राज्य सरकार ने घटना की न्यायिक जांच के आदेश दिए.



भीमा कोरेगांव की लड़ाई एक जनवरी 1818 को पुणे स्थित कोरेगांव में भीमा नदी के पास उत्तर-पू्र्व में हुई थी. यह लड़ाई महार और पेशवा सैनिकों के बीच लड़ी गई थी. अंग्रेजों की तरफ 450 महार समेत कुल 500 सैनिक थे और दूसरी तरफ पेशवा बाजीराव द्वितीय के 28,000 पेशवा सैनिक थे. सिर्फ 500 सैनिकों ने पेशवा की शक्तिशाली 28 हजार मराठा फौज को हरा दिया था.

हर साल नए साल के मौके पर महाराष्ट्र और अन्य जगहों से हजारों की संख्या में पुणे के परने गांव में दलित पहुंचते हैं. यहीं वो जयस्तंभ स्थित है, जिसे अंग्रेजों ने उन सैनिकों की याद में बनवाया था, जिन्होंने इस लड़ाई में अपनी जान गंवाई थी. कहा जाता है कि साल 1927 में डॉ. भीमराव अंबेडकर इस मेमोरियल पर पहुंचे थे, जिसके बाद से अंबेडकर में विश्वास रखने वाले इसे प्रेरणा स्त्रोत के तौर पर देखते हैं.

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