सेक्शन 497: फिर अपने पिता का फैसला पलटने की ओर बढ़ रहे जस्टिस चंद्रचूड़- chandrachud-runs-into-fathers-ruling-yet-again

नई दिल्ली : भारत की न्याय व्यवस्था के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ जब सुप्रीम कोर्ट + के एक जज ने अपने पिता के ही दो फैसलों को बदला हो। लगता है कि जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ऐसा करने वाले हैं। आपातकाल + के समय में एडीएम जबलपुर के फेमस जजमेंट को पलटने के करीब एक साल बाद चंद्रचूड़ फिर एक बार सेक्शन 497 को वैध बताने वाले अपने पिता वाईवी चंद्रचूड़ के फैसले को पलटने की ओर बढ़ते दिख रहे हैं। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में विवाहेतर संबंधों (अडल्टरी) को अपराध के दायरे में रखने वाली आईपीसी धारा 497 + की वैधता को लेकर बहस चल रही है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने इस मामले की सुनवाई के लिए पांच सदस्यों की संवैधानिक बेंच का गठन किया है। जस्टिस चंद्रचूड़ इस बेंच का हिस्सा हैं। संवैधानिक पीठ का गठन करने के पीछे का एक अहम वजह 27 मई 1985 को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़, जस्टिस आरएस पाठक और एएन सेन का सेक्शन 497 को वैध करार देने का फैसला है। 1971 में लॉ कमिशन ने अडल्टरी के लिए सेक्शन 497 के तहत पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं के लिए भी सजा के प्रावधान की अनुशंसा की। हालांकि संसद सेक्शन 497 में बदलाव करने के लिए राजी नहीं हुई थी। एक बार फिर यह मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने पहुंच गया है। गुरुवार को चीफ जस्टिस दीपका मिश्रा, जस्टिस आरएफ नरीमन और डीवाई चंद्रचूड़ सेक्शन 497 के खिलाफ ज्यादा ही मुखर थे। उन्होंने इसे महिलाओं के सम्मान के खिलाफ बताया और कहा कि यह धारा महिलाओं को पतियों की चल संपत्ति समझती है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने तो 1985 के फैसले पर भी टिप्पणी की और कहा कि हमें अपने फैसलों को आज के हिसाब से प्रासंगिक बनाना होगा। तब सुप्रीम कोर्ट की उस तीन सदस्यीय बेंच ने विवाहेतर संबंधों के अपराध में महिलाओं को भी पुरुषों के बराबर दोषी ठहराने की याचिका खारिज कर दी थी। तब के चीफ जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ ने कहा था कि यह सामान्य तौर पर स्वीकार किया जाता है कि महिला की बजाय पुरुष ही विवाहेतर संबंधों में प्रभावी भूमिका में होता है। उन्होंने कहा था कि हो सकता है कि आने वाले सालों में इस समझ में बदलाव लाए लेकिन यह विधायिका का काम है कि तब के हिसाब से आईपीसी की धारा 497 में संशोधन लाए।
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