नई दिल्ली: पीएम नरेंद्र मोदी के अमेरिकी दौरे से पाकिस्तान को बड़ा झटका लगा है. पाकिस्तान की आस्तीन में पल रहे आतंक के सापों को सबक सिखाने की तैयारी हो चुकी है. अमेरिका ने पाक की सरपरस्ती में पल रहे आतंकी सैयद सलाउद्दीन को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित कर दिया है. इस फैसले को भारत की ब़ड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है. इस फैसले ने पाक में मौजूद आतंक के खौफनाक ट्राएंगल के लिए खतरे की घंटी बजा दी है. पाकिस्तान पर इसका व्यापक असर देखने को मिलेगा.
सैयद सलाउद्दीन उस जमात का चेहरा है, जिसने जेहाद के नाम पर ज़मीन की जन्नत को जहन्नुम बना दिया. लेकिन अब पाकिस्तान की छत्रछाया में पल रहे आतंक के औजारों के लिए खतरे की घंटी बज गई है. मोदी और ट्रंप के हाथ मिलाने से पाकिस्तान में खलबली मचना तय है. परेशानी पाकिस्तीनी हुकुमत की भी बढ़ेगी और उसकी शह पर भारत में मासूमों का ख़ून बहाने वालों की भी. सलाउद्दीन के अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित होते ही अमेरिका में उसकी संपत्तियां जब्त हो जाएंगी.
हिजबुल मुजाहिद्दीन आतंकी संगठन के जरिए सलाउद्दीन और उसके गुर्गे कश्मीर में खूनी खेल खेलते हैं. पाकिस्तान इस खूनी खेल को आतंक की लड़ाई बताता है. हिजबुल कश्मीर युवकों को बरगलाकर आतंक के रास्ते पर धकलता है और पाक इसे आज़ादी की लड़ाई के तौर पर पेश करता है. सलाउद्दीन पर चाबुक से पाक को भी झटका लगा है. इसका असर पाकिस्तान में पल रही आतंक की पूरी ज़मात पर पड़ना तय है. सलाउद्दीन, मसूद अजहर और हाफिज सईद, जिसकी खौफनाक तिकड़ी है.
पाकिस्तान केवल भारत के खिलाफ ही साजिशें नहीं रच रहा बल्कि अफगानिस्तान में हक्कानी नेटवर्क और तालिबान के जरिए भी आतंकी साज़िश को अंजाम दे रहा है. पिछले दिनों अफगानिस्तान में तालिबान पर सबसे बड़ा बम गिरा कर ट्रंप आतंकवाद पर अपने इरादे ज़ाहिर कर चुका है. सलाद्दीन को अंतरराष्ट्रीय घोषित किए जाने से पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे बलोच नेता भी खुश हैं. अमेरिका ने साफ कर दिया है कि आतंक पर वो पाक की दलील नहीं सुनने वाला है.
यहां सवाल यह भी खड़ा किया जा रहा है कि इस ऐलान का फायदा तब है जब इसके मुताबिक एक्शन भी हो. सब जानते हैं हाफिज सईद को भी अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित किया जा चुका है, लेकिन वो खुलेआम भारत और अमेरिका के खिलाफ जहर उगलता है. यदि वाकई आतंक के आकाओं पर नकेल कसनी है, तो ये तभी हो पाएगा जब पाकिस्तान पर दबाव डाला जाए. एक उम्मीद तो बंधी है, लेकिन अभी लंबा रास्ता तय करना है. सलाउद्दीन 2 दशक से ज्यादा समय से भारत के लिए सिरदर्द बना हुआ है.
हिंदुस्तान की ज़मीन पर सलाउद्दीन 27 साल से दहशत के खौफनाक खेल को अंजाम दे रहा है. एक ज़माने में उसने चुनावी मैदान में ताल भी ठोकी थी. लेकिन नाकाम होने के बाद वो पाकिस्तान की गोद में जा बैठा और बेगुनाहों का ख़ून बहाने की नापाक साजिशों का सरगना बन गया. सलाउद्दीन भारत के लिए किसी नासूर से कम नहीं. सीमा पार पाकिस्तान का दामाद बना सलाउद्दीन हर रोज साजिशे रचता है. भारत के लिए गड्ढे खोदता है. उसके लड़ाके सुरक्षाबलों पर हमला करने से कभी पीछे नहीं हटते.
पटानकोर्ट एयरबेस पर आतंकी हमला हो या फिर सेना के कैंप पर अटैक सैय्यद सलाउद्दीन सीमापार से लगातार साजिशें थमती नहीं. पाकिस्तान में उसे कोई रोकने टोकने वाला कोई नहीं. हाफिज सईद के साथ वो खुले मंच से भारत के खिलाफ आग उगलता रहा. हाफिज के नजरबंदी से ठीक पहले लाहौर के पास दोनों एक राग में भारत के खिलाफ जहर उगलते रहे. भारत लंबे वक्त से सयैद सलाउद्दीन के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाने की मांग करता रहा है. इसे पूरा करके अमेरिका ने पाक को साफ संदेश दिया है.
साल 1990 में पाकिस्तान भागने से पहले सैयद सलाहुद्दीन को कश्मीर में यूसुफ शाह के नाम से जाना जाता था. आतंकी बनने से पहले उसने विधायक बनने की नाकाम कोशिश भी की थी. 1987 में मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट की टिकट पर विधानसभा पहुंचने की कोशिश की. हालांकि इसी चुनाव में उसे करारी हार का सामना करना पड़ा. इस हार के साथ ही उसकी विधायक बनने की इच्छा दफन हो गई. तीन साल के अंदर वो सियासी चोला उतार आतंक की दुनिया में पहुंच गया. जहां से कत्लेआम का खेल खेल रहा है.
1987 से 1990 के दौरान कश्मीर में अलगाववादी विचारधारा और पाकिस्तान का एजेंडा चलाने की वजह से उसे कैद कर दिया गया था. जेल से छूटने के बाद वो सुधरने के बजाए और ख़तरनाक हो गया. 5 नवंबर 1990 को वो यूसुफ शाह से सैयद सलाहुद्दीन बन गया. सीमा पार कर पीओके के मुजफ्फराबाद में उसने हिज़्बुल मुजाहिद्दीन नामक संगठन बनाकर जम्मू-कश्मीर में आंतकवादी गतिविधियों की शुरुआत कर दी. सलाउद्दीन ये कहता रहा है कि वो कश्मीर को भारत के फौजियों की कब्रगाह बना देगा.
सैयद सलाउद्दीन उस जमात का चेहरा है, जिसने जेहाद के नाम पर ज़मीन की जन्नत को जहन्नुम बना दिया. लेकिन अब पाकिस्तान की छत्रछाया में पल रहे आतंक के औजारों के लिए खतरे की घंटी बज गई है. मोदी और ट्रंप के हाथ मिलाने से पाकिस्तान में खलबली मचना तय है. परेशानी पाकिस्तीनी हुकुमत की भी बढ़ेगी और उसकी शह पर भारत में मासूमों का ख़ून बहाने वालों की भी. सलाउद्दीन के अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित होते ही अमेरिका में उसकी संपत्तियां जब्त हो जाएंगी.
हिजबुल मुजाहिद्दीन आतंकी संगठन के जरिए सलाउद्दीन और उसके गुर्गे कश्मीर में खूनी खेल खेलते हैं. पाकिस्तान इस खूनी खेल को आतंक की लड़ाई बताता है. हिजबुल कश्मीर युवकों को बरगलाकर आतंक के रास्ते पर धकलता है और पाक इसे आज़ादी की लड़ाई के तौर पर पेश करता है. सलाउद्दीन पर चाबुक से पाक को भी झटका लगा है. इसका असर पाकिस्तान में पल रही आतंक की पूरी ज़मात पर पड़ना तय है. सलाउद्दीन, मसूद अजहर और हाफिज सईद, जिसकी खौफनाक तिकड़ी है.
पाकिस्तान केवल भारत के खिलाफ ही साजिशें नहीं रच रहा बल्कि अफगानिस्तान में हक्कानी नेटवर्क और तालिबान के जरिए भी आतंकी साज़िश को अंजाम दे रहा है. पिछले दिनों अफगानिस्तान में तालिबान पर सबसे बड़ा बम गिरा कर ट्रंप आतंकवाद पर अपने इरादे ज़ाहिर कर चुका है. सलाद्दीन को अंतरराष्ट्रीय घोषित किए जाने से पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे बलोच नेता भी खुश हैं. अमेरिका ने साफ कर दिया है कि आतंक पर वो पाक की दलील नहीं सुनने वाला है.
यहां सवाल यह भी खड़ा किया जा रहा है कि इस ऐलान का फायदा तब है जब इसके मुताबिक एक्शन भी हो. सब जानते हैं हाफिज सईद को भी अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित किया जा चुका है, लेकिन वो खुलेआम भारत और अमेरिका के खिलाफ जहर उगलता है. यदि वाकई आतंक के आकाओं पर नकेल कसनी है, तो ये तभी हो पाएगा जब पाकिस्तान पर दबाव डाला जाए. एक उम्मीद तो बंधी है, लेकिन अभी लंबा रास्ता तय करना है. सलाउद्दीन 2 दशक से ज्यादा समय से भारत के लिए सिरदर्द बना हुआ है.
हिंदुस्तान की ज़मीन पर सलाउद्दीन 27 साल से दहशत के खौफनाक खेल को अंजाम दे रहा है. एक ज़माने में उसने चुनावी मैदान में ताल भी ठोकी थी. लेकिन नाकाम होने के बाद वो पाकिस्तान की गोद में जा बैठा और बेगुनाहों का ख़ून बहाने की नापाक साजिशों का सरगना बन गया. सलाउद्दीन भारत के लिए किसी नासूर से कम नहीं. सीमा पार पाकिस्तान का दामाद बना सलाउद्दीन हर रोज साजिशे रचता है. भारत के लिए गड्ढे खोदता है. उसके लड़ाके सुरक्षाबलों पर हमला करने से कभी पीछे नहीं हटते.
पटानकोर्ट एयरबेस पर आतंकी हमला हो या फिर सेना के कैंप पर अटैक सैय्यद सलाउद्दीन सीमापार से लगातार साजिशें थमती नहीं. पाकिस्तान में उसे कोई रोकने टोकने वाला कोई नहीं. हाफिज सईद के साथ वो खुले मंच से भारत के खिलाफ आग उगलता रहा. हाफिज के नजरबंदी से ठीक पहले लाहौर के पास दोनों एक राग में भारत के खिलाफ जहर उगलते रहे. भारत लंबे वक्त से सयैद सलाउद्दीन के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाने की मांग करता रहा है. इसे पूरा करके अमेरिका ने पाक को साफ संदेश दिया है.
साल 1990 में पाकिस्तान भागने से पहले सैयद सलाहुद्दीन को कश्मीर में यूसुफ शाह के नाम से जाना जाता था. आतंकी बनने से पहले उसने विधायक बनने की नाकाम कोशिश भी की थी. 1987 में मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट की टिकट पर विधानसभा पहुंचने की कोशिश की. हालांकि इसी चुनाव में उसे करारी हार का सामना करना पड़ा. इस हार के साथ ही उसकी विधायक बनने की इच्छा दफन हो गई. तीन साल के अंदर वो सियासी चोला उतार आतंक की दुनिया में पहुंच गया. जहां से कत्लेआम का खेल खेल रहा है.
1987 से 1990 के दौरान कश्मीर में अलगाववादी विचारधारा और पाकिस्तान का एजेंडा चलाने की वजह से उसे कैद कर दिया गया था. जेल से छूटने के बाद वो सुधरने के बजाए और ख़तरनाक हो गया. 5 नवंबर 1990 को वो यूसुफ शाह से सैयद सलाहुद्दीन बन गया. सीमा पार कर पीओके के मुजफ्फराबाद में उसने हिज़्बुल मुजाहिद्दीन नामक संगठन बनाकर जम्मू-कश्मीर में आंतकवादी गतिविधियों की शुरुआत कर दी. सलाउद्दीन ये कहता रहा है कि वो कश्मीर को भारत के फौजियों की कब्रगाह बना देगा.
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