आलोचनाओं और विरोध के बाद ‘दंड विधियां संशोधन विधेयक’ को वापस लेगी राजस्थान सरकार - after huge criticism vasundhara raje govt withdraws draconian gag law

नई दिल्ली: आलोचनाओं और विरोध के बाद राजस्थान विधानसभा में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने विवादास्पद ‘दंड विधियां संशोधन विधेयक’ को सदन की प्रवर समिति से वापस लेने की घोषणा की है. विवादास्पद दंड विधियां संशोधन विधेयक को लेकर विपक्ष सहित कई जनसंगठनों ने सरकार पर तीखे प्रहार किये थे. सदन में वसुंधरा राजे द्वारा पेश बजट पर चर्चा का जवाब के दौरान कहा कि जिस विधेयक को हमने प्रवर समिति को भेजा और अध्यादेश की अवधि समाप्त हो गयी. फिर भी हम इसे प्रवर समिति से वापस ले रहें है. राजस्थान सरकार ने 6 सितंबर 2017 को यह अध्यादेश लाई थी और इसे 23 अक्टूबर 2017 को विधेयक विधानसभा में पेश किया गया.


वसुंधरा राजे की सरकार ने विधेयक- राज दंड विधियां संशोधन विधेयक, 2017 और सीआरपीसी की दंड प्रक्रिया सहिंता, 2017 पेश किया था. इस विधेयक में राज्य के सेवानिवृत्त एवं सेवारत न्यायाधीशों, मजिस्ट्रेटों और लोकसेवकों के खिलाफ ड्यूटी के दौरान किसी कार्रवाई को लेकर सरकार की पूर्व अनुमति के बिना उन्हें जांच से संरक्षण देने की बात की गई है. यह विधेयक बिना अनुमति के ऐसे मामलों की मीडिया रिपोर्टिंग पर भी रोक लगाता है. विधेयक के अनुसार, मीडिया अगर सरकार की ओर से जांच के आदेश देने से पहले इनमें से किसी के नामों को प्रकाशित करता है, तो उसके लिए 2 साल की सजा का प्रावधान है.


जज, मजिस्ट्रेट और लोक सेवक के खिलाफ केस दर्ज कराने के लिए सरकार से अभियोजन स्वीकृति लेना जरूरी था. 180 दिन में सरकार या तो अभियोजन स्वीकृति देगी या यह बताएगी कि मामला दर्ज होने योग्य है या नहीं. कोर्ट भी इस्तगासे और प्रसंज्ञान से अनुसंधान का आदेश नहीं दे सकता था. पूर्व में गजटेड अफसर को लोक सेवक माना जाता था लेकिन सरकार ने संशोधित बिल में इस दायरे को बढ़ा दिया था. भारी विरोध के चलते 120 दिनों के भीतर इस विधेयक को सरकार ने वापस ले लिया है. विपक्षी पार्टियां इस बिल को काला कानून बता रहे थे.



विवादित बिल को लेकर सड़क से सदन तक विरोध हो रहा था. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) ने हाईकोर्ट में बिल के खिलाफ सात याचिकाएं लगाई थीं. हालांकि, 4 दिसंबर को अध्यादेश स्वत: समाप्त हो गया था. लेकिन बिल के प्रवर समिति में होने के कारण सरकार को विरोध झेलना पड़ रहा था. इस वजह से सीएम वसुंधरा राजे ने इसके औपचारिक वापसी का ऐलान कर दिया.


7 सितंबर 2017 को सरकार ने दंड प्रक्रिया संहिता (राजस्थान संशोधन) अध्यादेश 2017 को लागू किया था.  23 अक्टूबर 2017 को गृह मंत्री ने विधेयक विधानसभा में रखा. विरोध के बाद उसी दिन प्रवर समिति को भेजा गया था. 27 अक्टूबर 2017 को यह मामला जोधपुर हाई कोर्ट में पहुंचा. 27 नवंबर को कोर्ट ने 4 सप्ताह में सरकार से जवाब मांगा गया. इसके बाद वसुंधरा सरकार ने इस बिल को प्रवर समिति में भेजा, जहां इसका विरोध होने पर सरकार ने इसे वापस लेने का ऐलान कर दिया.


हाल ही में राजस्थान में दो लोकसभा और एक विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुए थे, तीनों सीटों पर बीजेपी को करारी हार झेलनी पड़ी थी. बीजेपी में अंदर ही राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की मांग उठने लगी थी, जिसके बाद से सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया बैकफुट पर नजर आ रही हैं. इस विधेयक के वापस लेने के पीछे भी उपचुनाव के परिणाम से जोड़कर देखे जा रहे हैं.
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